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मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

तड़पे ओजहीन हो..

 नवगीत:2

तड़पे ओजहीन हो वसुधा 


तड़पे ओजहीन हो वसुधा 

रसमय स्नेह सुधा बरसाना 

निर्दयता हृदय में धरकर 

बिसरे सुरभित कुसुम खिलाना


1

छालों से आहत अंतस है

उलझन में है कटता जीवन

सुखद पवन आँधी बन आई

उजड़ गए हैं मन के उपवन

दुष्चक्रों की अग्नि लटा में 

छोड़ो अब हमको झुलसाना

तड़पे ओजहीन हो वसुधा......


2


अँधियारे ने पाँव पसारे

आशा की नहीं दिखे उजास

पतझड़ का चहुँ ओर राज है

लुप्त है क्यों मेरा आकाश

काल चक्र निर्धारित करके

भूल चुके क्या याद दिलाना

तड़पे ओजहीन हो वसुधा......


3

मानवता विधि पर रोती है

अब उसका अस्तित्व बचा ना

लोभ मोह माया में फँसकर

मक्कारी का गाये गाना

क्यों ये खेल रचाया विधना

सद्कर्मों की राह सुझाना

तड़पे ओजहीन हो वसुधा......


सुधा सिंह 'व्याघ्र'




रविवार, 1 नवंबर 2020

जी करता है... नवगीत

 


जी करता है बनकर तितली 

उच्च गगन में उड़ जाऊँ 

बादल को कालीन बना कर 

सैर चांद की कर आऊँ 


दूषित जग की हवा हुई है 

विष ने पाँव पसारे हैं 

अँधियारे की काली छाया 

घर को सुबह बुहारे है 


तमस रात्रि को सह न सकूँ अब 

उजियारे से मिल आऊँ 

बादल को कालीन बना कर 

सैर चांद की कर आऊँ 


अपने मग के अवरोधों को

ठोकर मार गिराऊँगी

शक्ति शालिनी दुर्गा हूँ मैं 

चंडी भी बन जाऊँगी 


इसकी उसकी बात सुनूँ ना

मस्ती में बहती जाऊँ 

बादल को कालीन बना कर 

सैर चांद की कर आऊँ 

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

इस गगन से परे

 गीत :इस गगन से परे (10,12)


इस गगन से परे, 

है मेरा एक गगन  

झूमते ख्वाब हैं  

नाचे चित्त हो मगन 

1

अपनी पीड़ा को 

खुद से परे कर दिया 

दीप उम्मीद का  

देहरी पर धर दिया 

अब धधकती नहीं 

मेरे चित्त में अगन ...इस गगन से... 

2

प्यारी खुशियों से 

वो जगमगाता सदा 

चंदा तारों से 

हरदम रहे जो लदा 

नाचती कौमुदी 

होता मन का रंजन .... इस गगन से...

3

हुआ उज्ज्वल धवल 

मेरे मन का प्रकोष्ठ 

गाल पर लालिमा 

मुस्कुराते हैं ओष्ठ

हर्ष से झूमता 

फिर से मेरा तन मन.... इस गगन से...


 



 

शुक्रवार, 29 मई 2020

शिव शंकर ,हे औघड़दानी (भजन)

भजन (16,14)


शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।
भव अम्बुधि से, पार है जाना, 
अब उद्धार करो मेरा।। 

काम, क्रोध, व लोभ में जकड़ा, 
मैं   मूरख  , अज्ञानी हूँ ।।
स्वारथ का पुतला हूँ भगवन
मैं पामर अभिमानी हूं।।

भान नहीं है, सही गलत का,
करता  मैं, तेरा मेरा।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।

माया के चक्कर में उलझा 
मैंने कइयों पाप किये ।
लोगों पर नित दोष मढ़ा अरु 
कितने ही आलाप किये ।।

जनम मरण के छूटे बंधन 
मिट जाए शिव अंधेरा।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।

 मैं याचक तेरे द्वारे का 
भोले संकट दूर करो ।
क्षमा करो गलती मेरी शिव 
अवगुण मेरे चित न धरो ।।

रहना चाहूँ शरण तुम्हारी 
रुद्र बना लो तुम चेरा।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।

दुष्टों से पीड़ित यह धरती  
करती भोले त्राहिमाम ।। 
व्यथित हृदय को उसके समझो 
प्रभु लेती तुम्हारा नाम ।।

हे सोमेश्वर ,हे डमरूधर  
कष्टों ने आकर घेरा ।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।

बुधवार, 27 मई 2020

बीत गई पतझड़ की घड़ियाँ

नवगीत(16,14)



बीत गई पतझड़ की घड़ियाँ 
बहार ऋतु में आएगी 
पेड़ों की मुरझाई शाखें 
अब खिल खिल मुस्काएँगी 

नवकिसलय अब तमस कोण से  
अँगड़ाई जब जब लेगा
अमराई के आलिंगन में 
नवजीवन तब खेलेगा।

कोकिल भी पंचम स्वर में फिर
अपना राग सुनाएगी 
पेड़ों की मुरझाई शाखें 
अब खिल खिल मुस्काएँगी


सतगुण हो संचारित मन में 
दीप जले फिर आशा का 
तमस आँधियाँ शोर करें ना 
रोपण हो अभिलाषा का 

पुरवाई लहरा लहराकर 
गालों को छू जाएगी 
पेड़ों की मुरझाई शाखें 
अब खिल खिल मुस्काएँगी


तेरा दुख जब मेरा होगा 
मेरा दुख हो जब तेरा
जीवन में समरसता होगी 
होगा फिर सुखद सवेरा 

हरे भरे अँचरा को ओढ़े
वसुधा भी लहराएगी 
पेड़ों की मुरझाई शाखें 
अब खिल खिल मुस्काएँगी 

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

मंगलवार, 19 मई 2020

अंतर के पट खोल...



नवगीत: 

अंतर के पट खोल (16 ,11) 

       
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अंतर के पट खोल तभी तो
                   मन होवे उजियार।
मानव योनि मिली है हमको 
                इसे न कर बेकार  ।।

अंतस में हो अँधियारा जब, 
             दिखता सबकुछ स्याह ।
मन अधीर हो अकुलाए अरु ,
                   दिखे नहीं तब राह।।

दुर्गम जब भी लगे मार्ग तब ,
                       शत्रु लगे संसार ।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                     मन होवे उजियार। ।

जीवन में संघर्ष भरा है,
                     इसका ना पर्याय ।
उद्यम ही कुंजी है इसकी ,
                    दूजा नहीं उपाय।।

घड़ी परीक्षण की जब आए ,
                      मान न मनवा हार।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                      मन होवे उजियार।।

अपनों का जब साथ मिले तो,
                        जीवन हो रंगीन।
दुख की बदरी भी छँट जाए ,
                     समाँ न हो गमगीन।।

निज हित के भावों को त्यागें,
                   कर लें कुछ उपकार।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                      मन होवे उजियार।।

सुधा सिंह 'व्याघ्र✍️





सोमवार, 18 मई 2020

सामाजिक संचार

 गीत :(16,14)


सामाजिक संचार तंत्र ने ,
सबको अपना दास किया ।
ज्ञानवान मानव ने तब से, 
खुद को कारावास दिया ।।

कक्ष रोते, रोती रसोई ,  
स्वच्छता का भान नहीं ।
उनको बनना टिक -टॉक  स्टार ,
घर में बिलकुल ध्यान नहीं ।। 
इंस्टाग्राम सजाने खातिर, 
पत्नी ने अवकाश लिया।

मुखपोथी, टिक टॉक, लाइकी ,
अब तो घर में राज करें  ।
खिंचवाकर सुंदर तस्वीर , 
हम तो खुद पर नाज करें।। 
कम लाइक जब मिले देखकर, 
धक -धक , धक -धक करे जिया ।

स्वास्थ्य की अब नहीं है चिन्ता ,
तन को देखो स्थूल भए।
आभासी दुनिया से जुड़कर, 
रिश्ते -नाते भूल गए ।।
गोदी में संतान की जगह, 
लैपटॉप ने स्थान लिया ।।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

शनिवार, 16 मई 2020

हे कोरोना वीरों...


हे कोरोना वीरों, 
तुम्हें शत- शत प्रणाम ।
दाँव लगाकर प्राणों को , 
करते हो तुम काम।।

कड़ी धूप में स्वेद से तर ,
वर्दी का तुम मान हो रखते।
घुप्प अँधेरी रातों में भी  ,
अपने फ़र्ज का भान हो रखते।।
तुम रखते हो अनुशासन का,
खयाल आठों याम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।।

अस्पताल के खुले कक्ष में,
शौच किया बेशरमों ने।।
थूका तुम पर,पत्थर मारे,
धृष्ट हुए बेरहमों ने।
फिर भी अपने धर्म को तुमने ,
दिया सदा अंजाम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।।

स्नेही जनों को पीछे छोड़
तुम अपना कर्तव्य निभाते।
खाद्य अन्न कहीं कम न पड़े,
वाहन  दिन -रात चलाते।।
राष्ट्र की खातिर पीछे छोड़ा,
तुमने अपना धाम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।

विपदा ऎसी देश में आई,
हर मन है घबराया -सा।
उहापोह में बीत रहे दिन,
हर चेहरा मुरझाया -सा।।
ऐसे संकट काल में खबरें,
पहुँचाते तुम सुबह- शाम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।।


शुक्रवार, 8 मई 2020

संबंधों के बंध न छूटें...


गीत/नवगीत ::संबंधों  के  बंध न छूटें
मुखड़ा:16,16
अंतरा:16,14
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

संबंधों  के  बंध न छूटें ,
    आओ कुछ पल संवाद करें ।
माँ धरा को प्रेम से भर दें ,
      हर हृदय को आबाद करें ।।
                     1
 इर्ष्या की आँधी ने देखो
              सब पर घेरे डाले हैं ।
नहीं जुझारू डरे कभी भी
            वो तो हिम्मत वाले हैं।।
नफरत की आँधी रुक जाए
       आओ कुछ ऐसा नाद करें ।
                     2
लोभ मोह अरु मद मत्सर का
              जग सारा ही चेरा है।
असमंजस में रहे अहर्निश
                करता तेरा मेरा है।।
प्रेम सरित की धार बन बहें
        उर में इतना आल्हाद भरें ।
                       3
दीन -दुखी का बनें सहारा
           कर्तव्यों का भान करें।
तिरस्कार का शूल चुभे ना
         हर प्राणी का मान करें । ।
संतुष्टि की पौध को रोपें,
       अब कोई ना उन्माद करे।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

संध्या की बेला

नवगीत 
मापनी:16,14

बीते मेरे दिवस सुनहरे 
संध्या की बेला आई 
दिन भी क्या दिन थे वे मेरे 
कली कली थी मुसकाई 

1:
रिमझिम रिमझिम बरसातें भी 
माँ सम लोरी गाती थी 
सूरज की गरमी भी तन में 
जोश नया भर जाती थी 
संघर्षों की काली बदली 
मन को डिगा नहीं पाई 

बीते मेरे दिवस सुनहरे 
संध्या की बेला आई 

2:
उसकी मीठी मीठी  बोली 
मिसरी सी घुल जाती थी 
उसके पायल की रुनझुन भी 
दिल घायल कर जाती थी 
सपनों की रानी वो मेरे 
ढूँढू उसकी परछाईं 

बीते मेरे दिवस सुनहरे 
संध्या की बेला आई 

3  :
श्रांत शिथिल बैठा हूँ मैं 
पढ़ता हूँ उसकी पाती 
पथ मैं उसका रोज निहारूँ 
ओह! व‍ह फिर लौट आती 
जीवन की वो साथी मेरी 
कभी नहीं व‍ह घबराई 

बीते मेरे दिवस सुनहरे 
संध्या की बेला आई 

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

तुझे माना खुदा अपना

गीत 
 मापनी 14, 15


तुझे माना खुदा अपना 
तू ही मेरा सितारा है 
बिना तेरे नहीं जीना  
मेरे दिल ने पुकारा है 

1:
तुझे चाहा तुझे पूजा 
तेरी ख्वाहिश सदा की है 
तेरे ही वास्ते मैंने 
सदा रुसवाईयां ली हैं
फँसी है नाव तूफ़ाँ में 
तू ही मेरा किनारा है 

2:
नहीं तुझसे जुदा होना 
मेरे दिल ने यही ठाना 
कभी मत छोड़ कर जाना 
मैंने सबकुछ तुझे माना 
मिरी खातिर ज़मीं पर ही 
खुदा ने तुझे उतारा है 

3:
अब तलक तो हम अकेली 
राहों में ही भटकते थे 
आँसुओं की बारिशों में 
सदा ही भीगा करते थे 
कि इस जालिम जमाने से 
इश्क़ हरदम ही हारा है 













रविवार, 23 फ़रवरी 2020

याद हमें भी कर लेना.... नवगीत

नवगीत 

विधा :कुकुभ छंद (मापनी16,14) 




पल पल हम हैं साथ तुम्हारे *
वरण हमारा कर लेना *
परम लक्ष्य संधान करो जब,*
याद हमें भी कर लेना*

साथ मिले जब इक दूजे का, *
कुछ भी हासिल हो जाए ।*
शूल राह से दूर सभी हो, *
घने तिमिर भी छँट जाएँ।। *
मुट्ठी में उजियारा भर कर, *
दूर अँधेरा कर देना। *
परम लक्ष्य संधान करो जब, *
याद हमें भी कर लेना ।। *

नहीं सूरमा डरे कभी भी, *
कठिनाई कितनी आई। *
रहे जूझते जो लहरों से,
ख्याति कीर्ति उसने पाई।। *
कष्टों से भयभीत न होना, *
बात गांठ यह कर लेना। *
परम लक्ष्य संधान करो जब, *
याद हमें भी कर लेना।। *

अभी उजाला हुआ, सखे हे! *
मानव हित कुछ कर जाना। *
पथ में बैरी खड़े मिलेंगे, *
मत पीछे तुम हट जाना।। *
जब जब मुल्क पुकारे तुमको,
कलम छोड़ शर धर लेना।
परम लक्ष्य संधान करो जब, *
याद हमें भी कर लेना ।। *

पल पल हम हैं साथ तुम्हारे *
वरण हमारा कर लेना *
परम लक्ष्य संधान करो जब,*
याद हमें भी कर लेना*






बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

तेरी यादों में रोया हूँ...




एक ग़ज़ल नुमा रचना

तेरी यादों में रोया हूँ....


हँसा हूँ तेरी बातों पे ,तेरी यादों में रोया हूँ
प्यार है बस तुझी से तो,प्यार के बीज बोया हूँ।

खटकता हूँ सदा तुझको, मुझे य़ह बात है मालूम ,
मगर सपने तेरे देखे ,तेरी यादों में खोया हूँ।

मेरी आँखों के अश्रु भी, तुझे पिघला सके न क्यों
तेरी नफ़रत की गठरी को, दिवस और रात ढोया हूँ।

कदर तुझको नहीं मेरी, तेरी खातिर सहा कितना,
मिली रुस्वाइयाँ फिर भी, प्रीत - माला पिरोया हूँ ।

गए हो लौटकर आना, कभी दिल से भुलाना ना,
नहीं मैं बेवफा दिलबर, वफ़ा में मैं भिगोया हूँ ।
सुधा सिंह 'व्याघ्र'



शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

क्या चलोगे साथ मेरे...नवगीत


विषय- नवगीत
****************************
*क्या चलोगे साथ मेरे*
                  *उस गगन के पार*
****************************

क्या चलोगे साथ मेरे,उस गगन के पार
आपसे है प्रीत हमको, करना न इनकार


साजन बाधा विघ्नों में , मैं न जाऊँ काँप
आपका है हाथ थामा , साथ देना आप
आपसे ही आस मेरी , आप हैं संसार
क्या चलोगे साथ मेरे,
उस गगन के पार

सपने हमने देखे जो, पूरे हो मनमीत
हर्ष का वरदान पाएँ , रचें स्नेहिल गीत
प्यार का बंधन हमारा, ये नहीं व्यापार
क्या चलोगे साथ मेरे,
उस गगन के पार

रात काली कट गई है ,आ गई शुभ भोर
स्वप्न ढेरों सज गए हैं , नाचे मन विभोर
बज उठा मन का मृदंगा, छेड़ हिय के तार
क्या चलोगे साथ मेरे,
उस गगन के पार

सुधा सिंह व्याघ्र

©®सर्वाधिकार सुरक्षित

सोमवार, 27 जनवरी 2020

कैसी ये प्यास है! (गीत )




कैसी ये प्यास है!! (गीत)
धुन :हुई आँख नम और ये दिल मुस्कुराया



मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!
क्यों ये बुझती नहीं, कैसी ये प्यास है!!

बंद दरवाजे हैं, बंद हैं खिड़कियाँ!
ले रहा है कोई, मन में ही सिसकियाँ!!
क्यों घुटन है भरी, कैसी उच्छ्वास है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!!

प्रेम भूले सभी, मिलती रुसवाइयाँ!
भीड़ में बढ़ रही देखो तन्हाइयाँ!!
कोई अपना कहाँ, अब कहो पास है!
मैं न जानू सनम, कैसा अहसास है!!

है बहारों का मौसम बता दो कहाँ!
ठंडी पुरवाइयां चलके ढूंढे वहाँ!!
यूँ लगे मिल गया, जैसे वनवास है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!!

खेल किस्मत का कोई भी समझा नहीं!
परती धरती हमेशा से परती रही!!
ढ़ो रही मनुजता, अपनी ही लाश है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है !!

सुधा सिंह 'व्याघ्र' ✍️









मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

अबकी केवल खुशियाँ लाना

Abki kewal khushiyan lana

अबकी केवल खुशियाँ लाना.....

नया वर्ष तेरे आगत में,
खड़े हैं हम तेरे स्वागत में,
शोक, निराशा, दुख की बदरी,
असफलता ,रोगों की गठरी,
खोद के माटी तले दबाना।
अबकी केवल खुशियाँ लाना।।

नया हर्ष ,उत्कर्ष नया हो।
नए भोर का स्पर्श नया हो।
मुरझाईं कलियाँ न हों।
अंधियारी गलियाँ न हों।
निविड़ तमस का शोर मिटाना।
अबकी केवल खुशियाँ लाना।

छुआछूत का भेद मिटे।
भाईचारा प्रेम बढ़े।।
मार -काट ,दंगे नहीं होवें।
कोई भूखे पेट न सोवे।।
मन में तुम सौहार्द्र जगाना।
अबकी केवल खुशियाँ लाना।।


शिखर प्रतिष्ठा शान मिले।
सबको उचित सम्मान मिले।।
पग -डग सबके हो आसान।
मन में तनिक न हो अभिमान।।
माया मोह और दम्भ मिटाना।
अबकी केवल खुशियाँ लाना।।

मेरे परम सनेही  साथियों व सभी भाई बंधुओं को
नव वर्ष 2020 की हार्दिक शुभकामनाएँ।

रविवार, 17 नवंबर 2019

मौन ही करता रहा मौन से संवाद

मौन 


नवगीत :

मौन ही करता रहा ,मौन से संवाद।
ख्वाब भीगे अश्रु से , हुए धूमिल नाद।।

प्रिय तुम्हारी याद में ,रहा विकल ये मन ।
न कोई उम्मीद थी ,ना आस की किरण ।
मिली हमको जिन्दगी, दुख जहांँ आबाद ।
मौन ही करता रहा , मौन से संवाद।।

आसमां में चाँद भी ,रो रहा दिन रात।
ओस की हर एक बूंद ,सह रही आघात।।
न कोई उल्लास अब ,न कोई अनुनाद।
मौन ही करता रहा मौन से संवाद ।

दूर अब प्रिय ना रहो, मन सदा अकुलाय।
प्यार में बदनामियां, अब सही न जाए।।
क्या उन्हें समझाएँ, क्यों करें प्रतिवाद।
मौन ही करता रहा, मौन से संवाद ।।

सुधा सिंह 🦋




    

रविवार, 3 नवंबर 2019

आस.... (विधा :गीत )




आस
आस 
विधा :गीत
 दिनांक :2.11.19
 विषय :आस


 पलकों में सपने सजाए, आस मन पलती रही ।
 मन उजाला भर गया, और धुंध भी छटती रही ।।

 वो मिलेगा एक दिन, चाहा था जिसको ऐ सखी ।
 थाम कर उम्मीद का दामन, चली मैं उस गली ।।
पांँव में छाले पड़े, और याद में तिल - तिल जली।
पलकों में सपने सजाए, आस मन पलती रही ।।

 उनकी मीठी बातों ने, पल पल हँसाया था मुझे ।
 ख्वाबों ने आ आके, नींदों में जगाया था मुझे।।
 जिन्दगी सुख दुख के पंखे, से सदा झलती रही।
 पलकों में सपने सजाए, आस मन पलती रही ।।

 आज खुशियों के गगन में, सुख का सूरज है उगा।
 निविड़ तम को भेद करके, भोर भी है अब जगा।।
 प्रिय मिलन की प्यास मेरी , आज है बुझती रही।
 पलकों में सपने सजाए, आस मन पलती रही ।।


 सुधा सिंह 🦋 

रविवार, 27 अक्तूबर 2019

खुशियांँ अनलॉक करो(दिवाली गीत )



पैक हुई लाॅकर मे, खुशियाँ अनलॉक करो।
पैक हुई लाॅकर मे, खुशियाँ अनलॉक करो।
बुझे , बुझे मत रहो, थोड़ा तो रॉक करो।
बुझे , बुझे मत रहो, थोड़ा तो रॉक करो।

आई है दिवाली देखो जगमग संसार है... ,
हाँ जगमग संसार है।
हर ओर दीप जले , प्यारा त्योहार है....
हाँ ये प्यारा त्योहार है।
हंसो, गाओ, खेलो, कूदो और थोड़ा माॅक करो।
हंसो, गाओ, खेलो, कूदो और थोड़ा माॅक करो।

पैक हुई लाॅकर मे, खुशियां अनलॉक करो।
पैक हुई लाॅकर मे, खुशियां अनलॉक करो।
बुझे , बुझे मत रहो, थोड़ा तो राॅक करो।
बुझे , बुझे मत रहो, थोड़ा तो राॅक करो।

चकली खाओ, चिवडा खाओ, फूलझड़ी भी खूब जलाओ।
हाँ फूलझड़ी भी खूब जलाओ।
अंधियारे दिलों में भी प्रेम की एक लौ जलाओ।
हाँ प्रेम की एक लौ जलाओ।
बंद दरवाजे पर खुशियों संग नाॅक करो।
बंद दरवाजे पर खुशियों संग नाॅक करो।

पैक हुई लाॅकर मे, खुशियां अनलॉक करो।
पैक हुई लाॅकर मे, खुशियां अनलॉक करो।
बुझे , बुझे मत रहो, थोड़ा तो राॅक करो।
बुझे , बुझे मत रहो, थोड़ा तो राॅक करो।


गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

हे साईं... साईं वंदना


हे साईं.. हे साईं... 
तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं - 2
मोहपाश में फँसा हूँ मैं
मेरा कर दे तू उद्धार.... हे साईं.. हे साईं - 2

तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं  - 2

दुखियों का तू तारण हारा. - 2
जन जन पर तेरा अधिकार... हे साईं.. हे साईं
तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं

भूख ग़रीबी लाचारी में
जीवन मेरा बीत रहा है
मन की आशाओं का घट भी
साईं अब तो रीत रहा है
न मुझको यूँ दुत्कार.... हे साईं.. हे साईं

तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं

भटक रहा हूँ दर दर मैं तो
सभी पराए लगते अब तो
मुझको तू दाता अपना ले
है तू ही मेरा करतार... हे साईं.. हे साईं

तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं

तेरी चौखट पर आया हूँ
मन मुरादें मैं लाया हूँ
खाली झोली भर दे मेरी
कर दे तू उपकार... हे साईं.. हे साईं

तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं

तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं
मोहपाश में फँसा  हूँ मैं
मेरा कर दे तू उद्धार.... हे साईं.. हे साईं - 2

हे साईं... हे साईं .... हे साईं..... हे साईं
मेरा कर दे तू उद्धार.... हे साईं .. हे साईं- 2