IBlogger interview
सोमवार, 28 मई 2018
माँ भारती
1:गरिमा गान
माँ भारती महान
हमारी शान
2:खूबसूरत
जननी जन्म भूमि
तेरी मूरत
3:सारे जहाँ में
सदा झंडा लहरे
तेरी शान में
4: आग भरी हो
भारतीय रगों में
गद्दारी न हो
5:चाह है यही
हो भारत से दूर
भूख गरीबी
6:माथे पे मेरे
तेरी माटी चमके
संझा सबेरे
7:गाँधी बनूँ या
सुभाष बन जाऊँ
तो मोक्ष पाऊँ
8:कर दे हम
निछावर तुझी पे
जान सनम
9:जज्बा हमारा
तिरंगे के नीचे हो
संसार सारा
शनिवार, 19 मई 2018
संभल जाओ..
वत्स,आज तुम फिर आ गए मेरे पास
विनाश की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने.
अपने ही हाथों से अपना सर्व नाश कराने.
कब समझोगे मेरे ही अस्तित्व में निहित है
तुम्हारा भविष्य सुनहरा.
फिर भी चोट कर - करके धरा को तुमने कर दिया है अधमरा.
कैसे हो सकते हो तुम इतने कृतघ्न!
क्या तुम्हें बिल्कुल भी नहीं स्मरण!
कि मेरे ही फलों से तुममें होता है ऊर्जा का स्फूरण.
मेरी प्रक्षेपित वायु से होता है तुम्हारे प्राणों में स्पंदन .
मेरे रंगीं पुष्पों को देख तुम्हारे चेहरों पर आती है मुस्कान.
फिर भी क्यों हो तुम अपने भयावह भविष्य से अनजान.
संग मेरे जब खेलती है गिलहरियां
तो क्या वो तुम्हें चिढ़ाती हैं.
मेरी ओट में कोयल जब पंचम सुर लगाती है
तो क्या तुम्हें डराती हैं.
मेरी बाहों में झूला डाल झूलती हैं जब ललनाएँ
तो क्या तुम्हें नहीं भाता है.
नन्हें मुन्ने जब खेलते हैं चढ़के मुझपर
तो क्या वह भी तुम्हें खलता है.
इस वसुधा का हरा रंग तो तुम्हें खूब लुभाता है
मेरी छाँव तले विश्राम भी तुम्हें खूब भाता है
आज से नहीं युगयुगांतर से मेरा तुम्हारा नाता है .
फिर भी तुम्हें क्यों कुछ समझ नहीं आता है.
मैं ही तो बादलों को बुलाकर वर्षा करवाती हूँ.
मैं ही तो तुम्हें सूर्य के भीषण ताप से बचाती हूँ
बिन मेरे तुम कितने क्षण बिता पाओगे
बिन श्वास के क्या तुम जी पाओगे
विकास के इस अंध प्रवाह में
फिर क्यों तुम दौड़ लगा रहे हो!
भावी पीढ़ी के लिए आखिर
कौनसा उपहार छोड़े जा रहे हो!
समय है अब भी संभाल जाओ!
मुझपर कुल्हाड़ी न चलाओ!
याद रहे सामने तुम्हारे चुनौती बड़ी है.
अब मेरी निस्वार्थ सेवा का फल देने की घड़ी है
अपनी भावी पीढ़ी के शत्रु तुम न बनो.
उनके अच्छे भविष्य की नीव धरो.
कम से कम अपने जन्मदिन
पर ही वृक्षारोपण करो.
विनाश की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने.
अपने ही हाथों से अपना सर्व नाश कराने.
कब समझोगे मेरे ही अस्तित्व में निहित है
तुम्हारा भविष्य सुनहरा.
फिर भी चोट कर - करके धरा को तुमने कर दिया है अधमरा.
कैसे हो सकते हो तुम इतने कृतघ्न!
क्या तुम्हें बिल्कुल भी नहीं स्मरण!
कि मेरे ही फलों से तुममें होता है ऊर्जा का स्फूरण.
मेरी प्रक्षेपित वायु से होता है तुम्हारे प्राणों में स्पंदन .
मेरे रंगीं पुष्पों को देख तुम्हारे चेहरों पर आती है मुस्कान.
फिर भी क्यों हो तुम अपने भयावह भविष्य से अनजान.
संग मेरे जब खेलती है गिलहरियां
तो क्या वो तुम्हें चिढ़ाती हैं.
मेरी ओट में कोयल जब पंचम सुर लगाती है
तो क्या तुम्हें डराती हैं.
मेरी बाहों में झूला डाल झूलती हैं जब ललनाएँ
तो क्या तुम्हें नहीं भाता है.
नन्हें मुन्ने जब खेलते हैं चढ़के मुझपर
तो क्या वह भी तुम्हें खलता है.
इस वसुधा का हरा रंग तो तुम्हें खूब लुभाता है
मेरी छाँव तले विश्राम भी तुम्हें खूब भाता है
आज से नहीं युगयुगांतर से मेरा तुम्हारा नाता है .
फिर भी तुम्हें क्यों कुछ समझ नहीं आता है.
मैं ही तो बादलों को बुलाकर वर्षा करवाती हूँ.
मैं ही तो तुम्हें सूर्य के भीषण ताप से बचाती हूँ
बिन मेरे तुम कितने क्षण बिता पाओगे
बिन श्वास के क्या तुम जी पाओगे
विकास के इस अंध प्रवाह में
फिर क्यों तुम दौड़ लगा रहे हो!
भावी पीढ़ी के लिए आखिर
कौनसा उपहार छोड़े जा रहे हो!
समय है अब भी संभाल जाओ!
मुझपर कुल्हाड़ी न चलाओ!
याद रहे सामने तुम्हारे चुनौती बड़ी है.
अब मेरी निस्वार्थ सेवा का फल देने की घड़ी है
अपनी भावी पीढ़ी के शत्रु तुम न बनो.
उनके अच्छे भविष्य की नीव धरो.
कम से कम अपने जन्मदिन
पर ही वृक्षारोपण करो.
गुरुवार, 17 मई 2018
विलुप्त की खोज
संवेदनाओं के भँवर में तैरते - तैरते
जाना मैंने कि मूरख हूँ मैं.
समझदारों की इस भीड़ में
इंसानों की खोज में हूँ मैं.
हाँ! इंसान की ,
जो कभी 'हुआ' करते थे
कब हुए वो लुप्त, अज्ञात है ये बात.
डायनासोर, डोडो पक्षी
या जैसे लुप्त हुई
कई अन्य प्राणियों की जात .
शायद भगवान से
खो गया है वह सांचा
जिसमें बनते थे इन्सां.
या फिर टूट गई है
वो सीढी जिससे
नीचे उतरते थे इन्सां.
छानी पुस्तकें कई ,
दिया गूगल बाबा को भी काम.
पर अफसोस... अपनी इस खोज में
सदा रहा नाकाम.
नहीं मिली कोई भी जानकारी
कि कब हुआ वह ग़ायब.
न जाने ईश्वर की वह नायाब रचना
फिर जन्म लेगी कब.
हाँ, इंसान के समरूप मुखड़े,
वैसी ही काठी और कद वाले
पुतले देखती हूँ मैं रोज.
जब करते हैं बातें भी वे समझदारी वाली
तब लगता है यूरेका.......
सफल हुई मेरी खोज.
पर मेरी समझ से
परे हैं ये समझदार.
गच्चा देने में सचमुच
माहिर हैं ये कलाकार.
पता ही नहीं लगता
कि हर एक को समझते हैं
वो अपना प्रतिद्वंद्वी.
लेकिन मैं किसी भी अंधी दौड़ में
शामिल नहीं ,
मैं हूँ एकदम फिसड्डी.
उन जैसी बातें भी
कभी मैं कर नहीं पाता हूँ .
इसलिए समझदारों की दुनिया में
मैं खुद को मूरख ही पाता हूँ.
रविवार, 13 मई 2018
प्यारी माँ
अदृश्य सी वह शक्ति जो सदैव मेरे साथ है
पता है मुझे माँ, कि वह तेरा ही आशीर्वाद है
तेरा प्यार,तेरी ममता, तेरा स्नेह माँ निर्विवाद है
तू मेरी संगी,मेरी साथी ,मेरी ईश्वर प्रदत्त मुराद है
तू मेरा बल, संबल, मेरे जीवन का आल्हाद है
तू गीत है, संगीत है , मेरे जीवन का नाद है
मेरा घर, परिवार, मेरा संसार तुझसे आबाद है
तू पूजा ,अराधना, तू ईश्वर से साधा मेरा संवाद है
माँ, तू है तो जीवन में खुशी है, हर्ष है,उन्माद है
तू मेरे चेतन, अचेतन, मेरे अस्तित्व की बुनियाद है
शनिवार, 12 मई 2018
बेदाम मोहब्बत
रातें कटती हैं करवटों में मेरी नींदें भी हराम हुई
न वो इकरार करते हैं न ही इनकार करते हैं
उल्फत में क्यू जफा ही मेरे नाम हुई
दिल की तड़प भी उन्हें दिखी नहीं या - खुदा
उनकी बेवफ़ाईयां ही क्यों मेरा ईनाम हुई
किस सिम्त उन्हें ढूंढे, वो चार सू नजर आते हैं
तलाश में उनकी मेरी मोहब्बत बदनाम हुई
दीदार से जिनके, मेरी रूह सुकूं पाती थी
महफिल से गए वो ऐसे कि कोई दुआ न सलाम हुई
देखके जिन्हें बज उठती थी सरगम दिल की
दिल की वो तारें भी अब गुमनाम हुई
इंतजार, इज़हार, गुलाब, ख़्वाब, वफ़ा, नशा
जुनून-ए -इश्क में बेकार सरेआम हुई
ऐसे तड़पना छोड़ दे तू ऎ दिल - ए - नादान
अब ये बेशकीमती मुहब्बत भी बेदाम हुई.
शुक्रवार, 4 मई 2018
वक्त हूँ मैं
वक्त हूँ मैं
मेरा इंतजार न करना
लौटता नहीं मैं कभी किसी के लिए
देखता हूँ समदृष्टि से सभी को
ज्ञात है तुम्हें भी
उगता है सूरज समय से और
निकलता है चांद समय पर
समय से होते हैं परिवर्तित मौसम
नियत समय पर वर्षा,गर्मी और सर्दी
सब सुनते हैं केवल मेरी ही
उन्हें पता है कि मैं कितना अनुशासनप्रिय हूं
अवसर सबको देता हूँ
मैं ही नियति भी हूँ
मैं ही बनाता हूं और बिगड़ता भी मैं ही हूँ
चाहो तो तुम भी
भविष्य देख सकते हो अपना
अपनी मां में,अपने पिता में
अपनी सास में, अपने ससुर में,
तुम सीख सकते हो
अपने परिवेश से, अपने आसपास के वातावरण से
अपने समाज से कि जिसने मेरी कद्र की
उसे मैंने हमेशा ऊंचा उठाया
जिसने मुझे जाया किया
उसका क्या हश्र हुआ
कौन जानता है उसका पता,
वह किस गर्त में गिरा
मैं भी नहीं जानता,
कि वह किस शून्य में विलीन हुआ
कैसा कल चाहते हो तुम अपने लिए
यह निर्भर है पूर्णतया तुम पर ही
बस इतना भर कहना है कि..
गंवाओं न मुझे
न करो इंतजार मेरा
मैं लौटूंगा नहीं....
हूँ मैं भविष्य सुनहरा
या अंधकार से गहरा...
चमगादड़
रात के साढ़े दस बज रहे थे. महीना अप्रैल का था पर तपन ज्येष्ठ मास से कम न थी. खूब गर्मी पड़ रही थी इसलिए आशीष, सिया और उनके दोनों बच्चे घर के बाहर का दरवाजा खोलकर हॉल में बैठ कर भोजन कर रहे थे. तभी सिया को कुछ अजीब - सा महसूस हुआ. उस की नजर ऊपर उठी. अचानक से अपने सिर के ऊपर चमगादड़ को उड़ता देख वह थोड़ी घबरा गई. वह चमगादड़ पंखे के आसपास यहां से वहां बड़ी तेजी से उड़ रहा था. टीवी भी चल रहा था और सभी अपने रात के भोजन में व्यस्त थे. इसलिए शायद किसी का ध्यान उस चमगादड़ की ओर नहीं गया पर अचानक उसके मुँह से निकला, "आशीष, चमगादड़!
चमगादड़ को सहसा यूँ अपने ऊपर उड़ता देख सभी डर गए और अपना- अपना भोजन छोड़कर सभी छिपने की जगह ढूंढने लगे.
बेटी श्रेया भी तुरंत घर के मुख्य दरवाजे के पीछे जाकर छुप गई. आशीष और पृथ्वीज ने भी झट से जाकर पर्दे की ओट ली.
तभी सिया ने जाकर धीरे से लाइट और पंखा बंद कर दिया ताकि वह घर से बाहर निकल जाए और यह भी डर था कि पंखे से टकरा कर कहीं वह घायल न हो जाए और घाव लगाने पर घर में उसका रक्त यहां वहां बिखर जाए तो इन्फेक्शन का खतरा भी था.
अचानक हुई इस घटना में उसके दिमाग मे यह बात ही नहीं आई कि चमगादड़ रोशनी में अच्छे से नहीं देख पाते. इसलिए उसने बचते बचाते किसी तरह से जाकर लाइट जला दी ताकि वह घर से बाहर निकल सके .
"आख़िर घर में चमगादड़ आया कहाँ से?, "
यह बात किसी को समझ नहीं आ रही थी . घर की दोनों बालकनी में तो जाली लगी थी. केवल रसोईघर की एक खिड़की ही थी जिससे होकर चमगादड़ घर के भीतर आ सकता था और दूसरा रास्ता था घर का मुख्य दरवाजा. खैर थोड़ी देर बाद वह चमगादड़ किसी तरह अपने आप घर के मुख्य दरवाजे से होते हुए बाहर निकल गया. उसके निकलते ही सिया ने तुरंत दरवाजा बंद कर दिया और सबने राहत की साँस ली. वह चमगादड़ बिल्डिंग के पैसेज में काफी देर तक उड़ता रहा. इस बीच सभी पड़ोसियों ने भी अपने अपने घरों के दरवाजे बंद कर लिए ताकि उस चमगादड़ की वजह से किसी को कोई नुकसान न पहुंचे.
ख़ैर बिल्डिंग के पैसेज से वह कब, कहाँ गया यह पता नहीं.
अभी छह महीने भी तो नहीं गुजरे, एक मामूली से चमगादड़ के कारण सिया और उसके पूरे परिवार को, खासतौर से श्रेया को कितनी ही मुसीबतों का सामना करना पड़ा था. वह इतनी ज्यादा बीमार पड़ी कि डाक्टरों ने उसे तीन महीनों तक बेड रेस्ट की सलाह दी. बारहवीं की छमाही परीक्षा तक वह दे न पाई. डेंगू टेस्ट, मलेरिया टेस्ट, टाईफोइड टेस्ट और और भी न जाने कितने ही अनगिनत टेस्ट हुए उसके. एम. आर. आई. टेस्ट भी किया गया। एक के बाद एक कई बीमारियों ने उसे घेर लिया था. वजन घटता जा रहा था.
वह लगातार कमजोर होती गई. अस्पताल के अनवरत चक्कर लग रहे थे. उसकी रोग प्रतिरोधक शक्ति इतनी कम हो गई थी कि बुखार उतरने का नाम ही नहीं लेता था. एक सौ पाँच डिग्री बुखार!
कभी किसी के मुँह से सुना न था कि किसी को एक सौ पांच डिग्री का बुखार हुआ हो. सिया रात रात भर श्रेया के माथे पर ठंडे पानी की पट्टियाँ रखती पर बुखार न जाता. अंत में उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था .कुछ दस एक दिन बाद अस्पताल से श्रेया को छुट्टी मिल गई .
Latest news on bats 🦇
पर एक हफ्ता अभी बीतने भी न पाया था कि ऑफिस जाते समय आशीष की मोटर साइकिल एक ट्रक से टकराई. टक्कर भी ऐसी जोरदार थी कि मोटर साइकिल सड़क के दूसरी तरफ जा गिरी. उसके पुर्जे - पुर्जे बिखर गए. शुक्र है आशीष को ज्यादा चोट नहीं आई. घटना स्थल पर मौजूद कुछ लोगों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया.
इस दुर्घटना के कारण आशीष का पैर फ्रेक्चर हो गया था ,
दर्द और बंधे प्लास्टर के कारण वह एक महीने तक दफ्तर न जा सका. इस कारण उसका कामकाज और घर की आमदनी बुरी तरह प्रभावित हुई और रुपया तो पानी की तरह बह रहा था. श्रेया के इलाज में भी लाखों रुपए स्वाहा हो चुके थे. घर की माली हालत,
बेटी और पति की ऐसी स्थिति देखकर उसका दिल बैठ जाता पर किसी तरह वह अपने मन को समझा लेती.
बातों - बातों में एक दिन उसने अपनी सहेली ऋचा को बताया था कि उसके घर की बालकनी में एक चमगादड़ ने अपना निवास स्थान बनाया है तब ऋचा ने उसे सावधान भी किया था कि चमगादड़ का घर में आना अशुभ माना जाता है और किसी तरह वह उस चमगादड़ को अपने घर से निकाल दे. पर सिया को इस बात में कोई सच्चाई नहीं लगी. उसे लगा कि इतना छोटा - सा मूक प्राणी किसी को क्या नुकसान पहुंचा सकता है और वैसे भी वह बालकनी में रहता है! उसे यह सब बातें दकियानूसी लगती थी. उसे लगता था यह महज अंधविश्वास है. इसलिए उसने ऋचा की इस बात पर गौर नहीं किया. ऋचा ने कई बार सिया से चमगादड़ के बारे में पूछ कर किसी तरह से उसे बालकनी से भगाने की बात कही लेकिन हर बार वह अपना तर्क देकर इस बात को टाल जाती. ऋचा ने भी इस विषय पर ज्यादा चर्चा करना ठीक नहीं समझा और इस पर बात करना बंद ही कर दिया . यह बात अब आई गई हो गई थी .
किन्तु चमगादड़ की अशुभता अब अपना प्रमाण देने लगी थी . लगातार घर में बढ़ती परेशानियों , श्रेया की बीमारी और आशीष की
दुर्घटना ने ऋचा की बात याद दिला दी. इसलिए मौका निकालकर उसने सबसे पहले बालकनी में जाली लगवाई ताकि किसी तरह वे लोग चमगादड़ से छुटकारा पा सकें .
सच है कि कई बार जो बातें हमें अंधविश्वास भरी लगती हैं उनमें एक सच्चाई छिपी होती है.
दरअसल वास्तु के अनुसार घर में इनके प्रवेश के साथ ही नकारात्मक शक्ति का भी प्रवेश होता है.. यहां तक की ये मृत और बुरी आत्माओं के साए का भी वाहक होते हैं ।
नकारात्मक उर्जा से परिजनों में झगड़े और विवाद की परिस्थितियां बनने लगती हैं और दूसरे अनिष्ट की सम्भावनाएं बढ जाती हैं।
वास्तु के अनुसार जिस घर में चमगादड़ प्रवेश होता है वह जल्द ही खाली मकान बन जाता है.. घर के सदस्य वहां से जाने लगते हैं और वहां सन्नाटा छा जाता है।
इन के वास के साथ ही घर के परिजनों पर मौत का साया छा जाता है।
चमगादड़ का घर में आना मौत का संकेत होता है|
चमगादड़ के घर में आने से मौत को आमन्त्रण मिलता है इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। असल में इनके पंखों में बेहद घातक बैक्टीरिया होते हैं। इनके इन्फेक्शन से इन्सान की मौत हो सकती है। दुनिया में इनके हमले से मौत के कई मामले सामने आ चुके हैं। आज के समय में इबोला जैसे घातक बिमारी भी इन्हीं की वज़ह से फैल रही है। इबोला से जुड़े ताजा शोध में इस बात की पुष्टी हुई है कि चमगादड़, बन्दर और गोरिल्ला इस बीमारी के वाहक हैं। इस तरह की लालइलाज बिमारियों के वाहक होने का कारण ही यह कहा जाता है कि यदि किसी व्यक्ति पर यह हमला कर दे तो समझों उसकी मौत हो गई।
(साथियों, यह कोई अंधविश्वास नहीं है. यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है .)
चमगादड़ को सहसा यूँ अपने ऊपर उड़ता देख सभी डर गए और अपना- अपना भोजन छोड़कर सभी छिपने की जगह ढूंढने लगे.
बेटी श्रेया भी तुरंत घर के मुख्य दरवाजे के पीछे जाकर छुप गई. आशीष और पृथ्वीज ने भी झट से जाकर पर्दे की ओट ली.
तभी सिया ने जाकर धीरे से लाइट और पंखा बंद कर दिया ताकि वह घर से बाहर निकल जाए और यह भी डर था कि पंखे से टकरा कर कहीं वह घायल न हो जाए और घाव लगाने पर घर में उसका रक्त यहां वहां बिखर जाए तो इन्फेक्शन का खतरा भी था.
अचानक हुई इस घटना में उसके दिमाग मे यह बात ही नहीं आई कि चमगादड़ रोशनी में अच्छे से नहीं देख पाते. इसलिए उसने बचते बचाते किसी तरह से जाकर लाइट जला दी ताकि वह घर से बाहर निकल सके .
"आख़िर घर में चमगादड़ आया कहाँ से?, "
यह बात किसी को समझ नहीं आ रही थी . घर की दोनों बालकनी में तो जाली लगी थी. केवल रसोईघर की एक खिड़की ही थी जिससे होकर चमगादड़ घर के भीतर आ सकता था और दूसरा रास्ता था घर का मुख्य दरवाजा. खैर थोड़ी देर बाद वह चमगादड़ किसी तरह अपने आप घर के मुख्य दरवाजे से होते हुए बाहर निकल गया. उसके निकलते ही सिया ने तुरंत दरवाजा बंद कर दिया और सबने राहत की साँस ली. वह चमगादड़ बिल्डिंग के पैसेज में काफी देर तक उड़ता रहा. इस बीच सभी पड़ोसियों ने भी अपने अपने घरों के दरवाजे बंद कर लिए ताकि उस चमगादड़ की वजह से किसी को कोई नुकसान न पहुंचे.
ख़ैर बिल्डिंग के पैसेज से वह कब, कहाँ गया यह पता नहीं.
अभी छह महीने भी तो नहीं गुजरे, एक मामूली से चमगादड़ के कारण सिया और उसके पूरे परिवार को, खासतौर से श्रेया को कितनी ही मुसीबतों का सामना करना पड़ा था. वह इतनी ज्यादा बीमार पड़ी कि डाक्टरों ने उसे तीन महीनों तक बेड रेस्ट की सलाह दी. बारहवीं की छमाही परीक्षा तक वह दे न पाई. डेंगू टेस्ट, मलेरिया टेस्ट, टाईफोइड टेस्ट और और भी न जाने कितने ही अनगिनत टेस्ट हुए उसके. एम. आर. आई. टेस्ट भी किया गया। एक के बाद एक कई बीमारियों ने उसे घेर लिया था. वजन घटता जा रहा था.
वह लगातार कमजोर होती गई. अस्पताल के अनवरत चक्कर लग रहे थे. उसकी रोग प्रतिरोधक शक्ति इतनी कम हो गई थी कि बुखार उतरने का नाम ही नहीं लेता था. एक सौ पाँच डिग्री बुखार!
कभी किसी के मुँह से सुना न था कि किसी को एक सौ पांच डिग्री का बुखार हुआ हो. सिया रात रात भर श्रेया के माथे पर ठंडे पानी की पट्टियाँ रखती पर बुखार न जाता. अंत में उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था .कुछ दस एक दिन बाद अस्पताल से श्रेया को छुट्टी मिल गई .
Latest news on bats 🦇
पर एक हफ्ता अभी बीतने भी न पाया था कि ऑफिस जाते समय आशीष की मोटर साइकिल एक ट्रक से टकराई. टक्कर भी ऐसी जोरदार थी कि मोटर साइकिल सड़क के दूसरी तरफ जा गिरी. उसके पुर्जे - पुर्जे बिखर गए. शुक्र है आशीष को ज्यादा चोट नहीं आई. घटना स्थल पर मौजूद कुछ लोगों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया.
इस दुर्घटना के कारण आशीष का पैर फ्रेक्चर हो गया था ,
दर्द और बंधे प्लास्टर के कारण वह एक महीने तक दफ्तर न जा सका. इस कारण उसका कामकाज और घर की आमदनी बुरी तरह प्रभावित हुई और रुपया तो पानी की तरह बह रहा था. श्रेया के इलाज में भी लाखों रुपए स्वाहा हो चुके थे. घर की माली हालत,
बेटी और पति की ऐसी स्थिति देखकर उसका दिल बैठ जाता पर किसी तरह वह अपने मन को समझा लेती.
बातों - बातों में एक दिन उसने अपनी सहेली ऋचा को बताया था कि उसके घर की बालकनी में एक चमगादड़ ने अपना निवास स्थान बनाया है तब ऋचा ने उसे सावधान भी किया था कि चमगादड़ का घर में आना अशुभ माना जाता है और किसी तरह वह उस चमगादड़ को अपने घर से निकाल दे. पर सिया को इस बात में कोई सच्चाई नहीं लगी. उसे लगा कि इतना छोटा - सा मूक प्राणी किसी को क्या नुकसान पहुंचा सकता है और वैसे भी वह बालकनी में रहता है! उसे यह सब बातें दकियानूसी लगती थी. उसे लगता था यह महज अंधविश्वास है. इसलिए उसने ऋचा की इस बात पर गौर नहीं किया. ऋचा ने कई बार सिया से चमगादड़ के बारे में पूछ कर किसी तरह से उसे बालकनी से भगाने की बात कही लेकिन हर बार वह अपना तर्क देकर इस बात को टाल जाती. ऋचा ने भी इस विषय पर ज्यादा चर्चा करना ठीक नहीं समझा और इस पर बात करना बंद ही कर दिया . यह बात अब आई गई हो गई थी .
किन्तु चमगादड़ की अशुभता अब अपना प्रमाण देने लगी थी . लगातार घर में बढ़ती परेशानियों , श्रेया की बीमारी और आशीष की
दुर्घटना ने ऋचा की बात याद दिला दी. इसलिए मौका निकालकर उसने सबसे पहले बालकनी में जाली लगवाई ताकि किसी तरह वे लोग चमगादड़ से छुटकारा पा सकें .
सच है कि कई बार जो बातें हमें अंधविश्वास भरी लगती हैं उनमें एक सच्चाई छिपी होती है.
दरअसल वास्तु के अनुसार घर में इनके प्रवेश के साथ ही नकारात्मक शक्ति का भी प्रवेश होता है.. यहां तक की ये मृत और बुरी आत्माओं के साए का भी वाहक होते हैं ।
नकारात्मक उर्जा से परिजनों में झगड़े और विवाद की परिस्थितियां बनने लगती हैं और दूसरे अनिष्ट की सम्भावनाएं बढ जाती हैं।
वास्तु के अनुसार जिस घर में चमगादड़ प्रवेश होता है वह जल्द ही खाली मकान बन जाता है.. घर के सदस्य वहां से जाने लगते हैं और वहां सन्नाटा छा जाता है।
इन के वास के साथ ही घर के परिजनों पर मौत का साया छा जाता है।
चमगादड़ का घर में आना मौत का संकेत होता है|
चमगादड़ के घर में आने से मौत को आमन्त्रण मिलता है इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। असल में इनके पंखों में बेहद घातक बैक्टीरिया होते हैं। इनके इन्फेक्शन से इन्सान की मौत हो सकती है। दुनिया में इनके हमले से मौत के कई मामले सामने आ चुके हैं। आज के समय में इबोला जैसे घातक बिमारी भी इन्हीं की वज़ह से फैल रही है। इबोला से जुड़े ताजा शोध में इस बात की पुष्टी हुई है कि चमगादड़, बन्दर और गोरिल्ला इस बीमारी के वाहक हैं। इस तरह की लालइलाज बिमारियों के वाहक होने का कारण ही यह कहा जाता है कि यदि किसी व्यक्ति पर यह हमला कर दे तो समझों उसकी मौत हो गई।
(साथियों, यह कोई अंधविश्वास नहीं है. यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है .)
बुधवार, 2 मई 2018
जिन्दगी - 3
नही छोड़ती कोई कसर, जिन्दगी हमें आजमाने में
एक मजदूर ही तो हैं हम, जीवन के इस कारखाने में
गिर्द बांध दिया है इसने, इक ऐसा मोह बंधन
जकड़े हुए हैं सब, इसके तहखाने में
दुख देखकर हमारा, हो जाती है मुदित ये
सुख मिलता है इसे, हमें मरीचिका दिखाने में
जिद्दी है ये बड़ी ,ज्यों रूठी हो माशूका ,
बीत जाती है उम्र पूरी, अपना इसे बनाने में
कब साथ छोड़ दे ये, नहीं इसका जरा भरोसा
इस जैसा बेवफा भी, नहीं कोई जमाने में
रहती है सब पर हावी, चलती है इसकी मर्जी
सौगात उलझनों की, है इसके खजाने में
क्रूर शासक सदृश ,प्रतिपल परीक्षा लेती
रहती सदा ही व्यस्त, मकड़जाल बनाने में
सुधा सिंह 🦋 01.05.18
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