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मंगलवार, 20 नवंबर 2018

कुछ द्वीपदियाँ

कुछ द्वीपदियाँ

1 : फितरत

छीन लूँ हक किसी का,
 ऐसी फितरत नहीं.
आईना जब भी देखा,
 खुशी ही हुई.**

2: नियति

नियत तो अच्छी थी,
पर नियति की नीयत बिगड़ गई *
जीवन के थपेड़े खाते- खाते
वह महलों से वृद्धाश्रम पहुंच गई *

3: इंसानियत

बाजार सज गए हैं...
चलो इंसानियत खरीद लाएँ ***

4: सामंजस्य
सामंजस्य नहीं था बिल्कुल
फिर भी जिन्दगी काट दी **
यह सोचकर कि
दुनिया क्या कहेगी.....**

5: जिन्दगी

कैसे कह दूँ कि जिन्दगी
कठिन से सरल हो गई है.
वक्त का असर तो देखो यारों...
अब तो 'सुधा' भी गरल हो गई है...

बुधवार, 2 मई 2018

जिन्दगी - 3



नही छोड़ती कोई कसर, जिन्दगी हमें आजमाने में
एक मजदूर ही तो हैं हम, जीवन के इस कारखाने में

गिर्द बांध दिया है इसने, इक ऐसा मोह बंधन
 जकड़े हुए हैं सब, इसके तहखाने में

दुख देखकर हमारा, हो जाती है मुदित ये
सुख मिलता है इसे, हमें मरीचिका दिखाने में

जिद्दी है ये बड़ी ,ज्यों रूठी हो माशूका  ,
बीत जाती है उम्र पूरी, अपना इसे बनाने में

कब साथ छोड़ दे ये, नहीं इसका जरा भरोसा
इस जैसा बेवफा भी, नहीं कोई जमाने में

रहती है सब पर हावी, चलती है इसकी मर्जी
सौगात उलझनों की, है इसके खजाने में

क्रूर शासक सदृश ,प्रतिपल परीक्षा लेती
रहती सदा ही व्यस्त, मकड़जाल बनाने में

सुधा सिंह 🦋  01.05.18

शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

क्षणिकाएं





1:पहचान

यूँ तो उनसे हमारी जान पहचान
बरसों की है पर....
फिर लगता है कि क्या
उन्हें सचमुच जानते हैं हम

**************
2:जिन्दगी

जिन्दगी जीने की चाह में
जिन्दगी कट गयी
पर जिन्दगी जीई न गई

*********

3:पल

हमने पल - पल
बेसब्री से जिनकी
राह तकी
वो पल तो
हमसे बिना मिले
ही चले गए

*********
4:ऊँचाई

ऊँचाई से डर लगता है
शायद इसीलिये
आज तक मेरे पाँव
जमीं पर हैं

*********
5:कलयुग...

यूँ तो हीरे  की परख,
केवल एक जौहरी  ही कर सकता है
पर
आजकल  तो जौहरी  भी,
नकली की चमक पर फिदा हैं
कलयुग इसे  यूँ ही तो नहीं कहते...

शनिवार, 31 दिसंबर 2016

जिंदगी-तेरी आजमाइश अभी बाकी है!

जिन्दगी ...
तेरी आजमाइश अभी बाकी है,
मेरे ख्वाब अभी मुकम्मल कहाँ हुए?

मेरी फरमाइशें अभी बाकी है ।
कई ख्वाहिशें अभी बाकी हैं।

माना कि ..
दूसरों की भावनाओं से खिलवाड़ करना,
तेरी आदत में शुमार है।
पर मुझे तुझ पर बेइंतहां ऐतबार है।

तू कभी किसी को जमींदोज करती है ,
कभी आसमां की बुलंदी तक पहुँचाती है।
कभी मौत के दर्शन कराती है,
तो कभी जीवन के सुनहरे सपने दिखाती है।

किसी  को रुलाती है
किसी को गुदगुदाती है ।
तेरी मर्जी हो, तो ही ,
लोगों के चेहरों पर मुस्कान आती है।

कभी इठलाती, बलखाती ,शरमाती- सी सबके दिलों में घर बनाती है।
जब विद्रूपता की हद से से गुजरती है, तो लोगों को सदा के लिए मौन कर जाती है।

जिंदगी ..
अभी तुझसे बहुत कुछ सुनना
और तुझे सुनाना बाकी है ।
क्योंकि तू  कैश नहीं ,चेक है ।
तुझे भुनाना बाकी है।

जिंदगी
तेरा हसीन रूप ही अच्छा है।
तू हमें किसी जंजाल में उलझाया न कर।
तू दोस्त बनकर आती है तो सबके मन को भाती है।
यूँ हमें अपनी सपनीली दुनिया से दूर न कर।

भूलना मत..
मेरी फरमाइशें अभी बाकी है ।
कई ख्वाहिशें अब भी बाकी हैं।

शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

तलाश

तलाश
कुछ समझ नही आता जिंदगी....
तेरी गिनती दोस्तों में करूँ
या दुश्मनों में !
चिड़ियों की मानिंद दर रोज,
घोंसलों से दाने की खोज में निकलना।
फिर थक हार कर,
अपने नीड़ को वापस लौटना।
क्या केवल इसे ही नियति कहते हैं।
क्या केवल यही जिंदगी है।
आखिर तेरे कितने रंग हैं!
पर,
ऐ जिंदगी...
अब बहुत हो चुका.......
मैं अपने लिए थोड़ा वक़्त चाहती हूँ।
मैं थोड़ा सुकून चाहती हूँ
खुद को तलाशना चाहती हूँ।
खुद को पाना चाहती हूँ।
©सुधा सिंह~~

रविवार, 9 अगस्त 2015

जिंदगी-2

जिंदगी का फ़लसफ़ा भी अजीब है।
कभी सुनहरी धूप की तरह चमचमाती है।
तो कभी बिजली  बनकर कहर बरपाती है।
कभी छाँव बनकर अपनी शीतलता प्रदान करती है।
तो कभी बुरे दौर में साये की तरह साथ छोड़ देती है।

जिंदगी कभी माँ की तरह अपने आगोश में भर लेती है।
तो कभी आँसू बनकर दामन को भिगोती है।
कभी किलकारी बनकर आँगन में गूँजती है।
तो कभी अँधेरे में डराती भी है।

जिंदगी  आँखों में रंगीन सपने भर के अपने साथ लिए चलती है।
ये वो है जो हम सब की खाली किताब में अपनी कूची से इंद्रधनुषी रंग भरती है।
जिंदगी  कभी गरीब की झोपड़ी में भूख से बिलखती है।
तो कभी ऊँची मीनारों में ठहाके लगाती है।