सोमवार, 24 अगस्त 2020

श्री गणेश स्तुति



हे गणपति, हे गणराया। 

समझ न पाए, कोई तेरी माया ।1। 

 

शिव पार्वती के, तुम हो दुलारे ।

 शीश पे सोहे, मुकुट तुम्हारे।2।


प्रथम देव तुम, पूजे जाते ।

पाँव तुम्हारे, नूपुर सुहाते ।3।


सारा जग करता, है तेरा ही वंदन ।

सह नहीं सकता, तू भक्तों का क्रंदन ।4।


डिंक मूषक की, तू करता सवारी।

कष्टों को तू, हरता हमारी ।5 ।


हे लंबोदर, हे बुद्धि दायी।

विनायका, है तू वरदायी ।6।


चंद्र भाल तेरे, खूब है सुहाता ।

गज वदना तू, भाग्य विधाता ।7।


सुर, मुनि, सज्जन, तुझको पूजे ।

तेरा ही नाम, इस जगती में गूँजे।8।


पिंगल नैना, वज्रांकुश है कर ।

धूम्र वर्ण शुचि , शुंड विशाल धर।9।


मुक्ता हार तेरे , कंठ में साजे। 

 सारे जग में तेरा, मंगल बाजे ।10।


छवि है तुम्हारी, अति मनभावन।

उद्भव तुम्हारा, है मंगल पावन।11।


रिद्धि और सिद्धि का, तू है स्वामी ।

कण - कण में, तू ही अन्तर्यामी ।12।


दूर्वा तुमको, अति मन भाए ।

वेश पीताम्बर, तुमको सुहाए ।13।


भादों चौथ का, जन्म तुम्हारा ।

सब दुखियों का, तू एक सहारा ।14।


आरती तेरी, प्रभु मैं गाऊँ ।

लड्डू और मेवा का, भोग लगाऊँ ।15।


पूरण इच्छा, तुम करते हो ।

आदि देव देवा , प्रणव तुम्हीं हो ।16।


शुभ और लाभ, तनय तुम्हारे ।

दाता तुम, हम दास तुम्हारे ।17।

 

मोदक तुझको, अति प्रिय देवा ।

करूँ दिन रात मैं, तेरी ही सेवा ।18।


एकदंता हे, चार भुजा धारी ।

आए हैं हम, शरण तुम्हारी ।19।


ज्ञानवान देवा , हमको बना दे ।

मग सच्चाई का, हमको दिखा दे ।20।