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रविवार, 27 जनवरी 2019

यह भी तो कहो.....




ठहरो!!!
मेरे बारे में कोई धारणा न बनाओ।
यह आवश्यक तो नहीं,
कि जो तुम्हें पसंद है,
मैं भी उसे पसंद करूँ।
मेरा और तुम्हारा
परिप्रेक्ष्य समान हो,
ऐसा कहीं लिखा भी तो नहीं।

हर जड़, हर चेतन को लेकर
मेरी धारणा, अवधारणा
यदि तुमसे भिन्न है...
तो क्या तुम्हें अधिकार है
कि तुम मुझे अपनी दृष्टि
में हीन समझ लो।

जिसे तुम उत्कृष्टता
के साँचे में तौलते हो,
कदाचित् मेरे लिए वह
अनुपयोगी भी हो सकता है।
तुम्हें पूरा अधिकार है
कि तुम अपना दृष्टिकोण
मेरे सामने रखो।
परन्तु मेरे दृष्टिकोण को गलत
ठहराना क्या उचित है??
क्या मैंने अपने कर्मों
और कर्तव्यों का
भली- भाँति
निर्वाहन नहीं किया???
क्यों मेरा स्त्रीत्व
तुम्हें अपने पुरुषत्व
के आगे हीन जान पड़ता है??
आख़िर कब तक मैं
अपने अस्तित्व के लिए तुमसे लडूंँ??
और यह भी तो कहो कि
अगर मेरा अस्तित्व खत्म हो गया
तो क्या तुम
अपना अस्तित्व तलाश पाओगे???


 सुधा सिंह 📝




गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

अस्तित्व है क्या....




अस्तित्व है क्या?
क्या रूप नया!

क्या जीवित रहना अस्तित्व है?
या कुछ पा लेना अस्तित्व है?

ये अस्तित्व है प्रश्नवाचक क्यों?
और सब है उसके याचक क्यों?

आख़िर
क्या है ये??

सत्ता... अधिकार...या प्रकृति...
वजूद... या फिर.. उपस्थिति ???
अजी कब तक और किसकी????

आए कितने ही, गए कितने,
पर अस्तित्व कहो टिके कितने!

जो जिए मात्र अपने लिए,
तो अस्तित्व अहो किसके लिए!

यदि सत्ता का एहसास है,
तो दंभ सदैव ही पास है!

अहसास है अधिकार का,
तो अस्तित्व है अहंकार का!

हो दया धर्म, मानवता हीन,
तो अस्तित्व हो गया सबसे दीन!

जो बात प्रेम से हो जाए,
वो लड़के कहाँ कोई पाए?

कर नेकी, दरिया में डाल!
फिर होगा उत्थान कमाल!

बस कर्म करें और धीर धरें ,
यूँ निज भीतर अस्तित्व गढ़े

छोड़कर सब दंभ, अभिमान!
करें निज प्रकृति का संधान!

केवल मानव हम बन जाएँ
तो अस्तित्व हमें मिल जाएगा
जीवन में अच्छे कर्म किए
तो भाग कहाँ फिर जाएगा
वह पीछे दौड़ लगाएगा
हाँ.. पीछे दौड़ लगाएगा

सुधा सिंह 🦋 26.04.8




बुधवार, 2 सितंबर 2015

अस्तित्व

अस्तित्व

माना, तू  पापा का दुलारा है।
माँ की आँखों का तारा है।
उनका प्यार, उनकी दौलत तेरे साथ है।
और तुझे सहारे की दरकार है।

 क्या हुआ कि मैं एक लड़की हूँ।
मेरा भी एक अस्तित्व है।
मैं अपना आसमाँ खुद तलाशूंगी।
मैं अपनी तकदीर खुद लिखूंगी।
मुझे किसी सहारे की जरुरत नहीं।
क्योंकि मेरे साथ ऊपर वाली सरकार है।

जाने कैसे एक ही कोख से जन्म लेने बाद भी
 बेटा अपना और बेटी पराई होती है।
यह सोचकर कई बार मेरी आँखे नम होती हैं।
पर मैं स्वयं ही सशक्त हूँ,
मुझे हार नहीं स्वीकार।

मेरा आत्मिवश्वास ,
मेरा सबसे बड़ा सहारा है।
मुझे मेरा आत्मसम्मान सबसे प्यारा है।
भीख पर तू जी सकता है।
मुझे तो उधार की जिंदगी से भी घृणा  है।