नवगीत(16,14)
बीत गई पतझड़ की घड़ियाँ
बहार ऋतु में आएगी
पेड़ों की मुरझाई शाखें
अब खिल खिल मुस्काएँगी
नवकिसलय अब तमस कोण से
अँगड़ाई जब जब लेगा
अमराई के आलिंगन में
नवजीवन तब खेलेगा।
कोकिल भी पंचम स्वर में फिर
अपना राग सुनाएगी
पेड़ों की मुरझाई शाखें
अब खिल खिल मुस्काएँगी
सतगुण हो संचारित मन में
दीप जले फिर आशा का
तमस आँधियाँ शोर करें ना
रोपण हो अभिलाषा का
पुरवाई लहरा लहराकर
गालों को छू जाएगी
पेड़ों की मुरझाई शाखें
अब खिल खिल मुस्काएँगी
तेरा दुख जब मेरा होगा
मेरा दुख हो जब तेरा
जीवन में समरसता होगी
होगा फिर सुखद सवेरा
हरे भरे अँचरा को ओढ़े
वसुधा भी लहराएगी
पेड़ों की मुरझाई शाखें
अब खिल खिल मुस्काएँगी
सुधा सिंह 'व्याघ्र'