इत्र सा महकता नाम तेरा,
सुरभित समीर कर जाता है
कितनी है कशिश मोहब्बत में,
मन बेखुद सा हो जाता है
दिल में एक टीस सी जगती है
जब नाम तुम्हारा आता है
विरहा की अग्नि जलाती है
और तृषित हृदय अकुलाता है
जब अधर तुम्हारे हास करे
कांकर पाथर मुस्काता है
उठती जब तुम्हरी बात पिया,
तन कस्तूरी हो जाता है
तुम घुल जाते हो अंग - अंग में ,
तब गात नहीं रह जाता है
कण - कण परिमंडल मुदित हो
सब एकाकार हो जाता है
सुरभित समीर कर जाता है
कितनी है कशिश मोहब्बत में,
मन बेखुद सा हो जाता है
दिल में एक टीस सी जगती है
जब नाम तुम्हारा आता है
विरहा की अग्नि जलाती है
और तृषित हृदय अकुलाता है
जब अधर तुम्हारे हास करे
कांकर पाथर मुस्काता है
उठती जब तुम्हरी बात पिया,
तन कस्तूरी हो जाता है
तुम घुल जाते हो अंग - अंग में ,
तब गात नहीं रह जाता है
कण - कण परिमंडल मुदित हो
सब एकाकार हो जाता है