Daughters day |
माँ, माना कि तेरे आंगन की
गौरैया हूँ मैं...
कभी इस डाल कभी उस डाल,
फुदकती रहती हूँ यहाँ- वहाँ!
विचरती रहती हूँ निर्भयता से,
तेरी दहलीज के आर पार!
जानती हूँ मैं
तू डरती बहुत है कि
एक दिन मैं उड़ जाऊँगी
तुझसे दूर आसमान में!
अपने नए आशियाने की
तलाश में!
पर तू डर मत माँ
मैं लौट कर आऊँगी
तेरे पास!
अब मैं बंधनों में
और न रह पाऊँगी!
समाज की रूढ़ियाँ,
विकृत मानसिकताएँ
मेरे परों को अब
नहीं बांध पाएँगी माँ.. "
जानती हूँ तुझे भी
बादलों से बतियाने
का मन है माँ
चल आज तुझे भी
अपने साथ
नए आकाश में
उड़ना सीखाऊँ मैं....
अब मैं निरीह नहीं माँ,
मैं नए जमाने की बेटी हूँ ।
बेटी दिवस पर
सभी बेटियों को समर्पित