रेखाएँ,
रेखाएँ बहुत कुछ कहती हैं...
उदासीनता, निस्संगता का
सुदृढ़ रूप रेखाएँ,
निर्मित होती हैं भिन्नताओं के बीच
दो बहिष्कृतों के बीच
दो सभ्यताओं के बीच
एक मोटी दीवार सी
दो सोच के बीच
अमीर और गरीब के बीच
ऊँच और नीच के बीच
जो कहती हैं...
इसमें और उसमें साम्यता नहीं है
दूरी है, अलगाव है, एकरूपता नहीं है
जैसे श्वेत, श्याम अलग हैं
जैसे रात्रि, दिवा पृथक हैं
ज्यों तेल और पानी का कोई मेल नहीं
रेखाएँ कहती हैं कहानी
विभाजन की
नादानी की
मनमानी की
ये आभास कराती हैं
अपने और पराए के भेद का
टूटने का,
बिखरने का,
जुदा होने का
रेखाएँ निशानियां होती हैं
अंतहीन महत्वाकांक्षाओं की
स्वार्थ की कभी न पटनेवाली
अथाह गहरी खाई की
रेखाएँ होती है वर्जनाएं
ये तय करती हैं
सबकी सीमाएं
मान्यताएँ और प्रथाएँ...
जो हमेशा तनी रहती हैं
अड़ी रहती हैं किसी अकड़ में
किसी अहंकार में
अपने अस्तित्व का
परचम लहराते हुए
मनुष्य पर अपनी सत्ता
की धाक जमाते हुए
धिक्कारते हुए...
"देखो तुमने मुझे पैदा किया है।"