दिल अपना चीरकर किसे दिखाऊँ,
जो इसे समझ सके,
वो शख्स कहाँ से लाऊँ ! !
जो मेरे लफ्ज़ों को, तराज़ू में न तोले
जो मुझे समझ ले, मेरे बिन बोले ॥
वह शख्स कहाँ से लाऊँ ! !
जो मुझपर ,
अपना अटूट विश्वास दिखा सके ॥
जो तहेदिल से बेझिझक,
मुझे अपने गले से लगा सके॥
वह शख्स कहाँ से लाऊँ ! !
जो मेरे एहसास का एहसास कर सके,
जो सदैव ,
मुझे अपनी कलयुगी निगाहों से न देखे॥
वह शख्स कहाँ से लाऊँ ! !
जो हर पल मुझे ,
अपने साथ होने का एहसास दे॥
वह शख्स कहाँ से लाऊँ ! !
वह
जो मेरी उखड़ती हुई सांसों को,
नवजीवन की आस दे॥
वह शख्स कहाँ से लाऊँ ! !