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बुधवार, 1 अप्रैल 2020
गुरुवार, 26 मार्च 2020
रविवार, 22 मार्च 2020
कोविड-2019 - कुंडलियाँ
1-
इक व्याधि ऐसी पसरी,कोविड जिसका नाम
त्राहि त्राहि जनता करे, हमें बचाओ राम ।।
हमें बचाओ राम, करो विषाणु से रक्षण।
ज्वर,ज़ुकाम अरु दस्त, खास ये इसके लक्षण
साबुन से धो हाथ, खाइए भोजन सात्विक।
रहिए सबसे दूर, फैली ऐसी व्याधि इक ।।
2-
बातें कोविड की सुनो , लाया है पैगाम ।
स्वच्छता की दे शिक्षा ,कहता करो प्रणाम।
कहता करो प्रणाम,जियो अनुशासित जीवन
सुखमय रहे समाज, बने वसुधा वह उपवन
सात्विक हो आहार, बीते दिन श्रेष्ठ रातें ।
त्यागें पशुता आज, सुने कोविड की बातें।
शुक्रवार, 17 जनवरी 2020
सुधा की कुंडलियाँ - 6
26:
आधा :
पूरा ही सब चाहते , आधा देते छोड़।
उर संतुष्टि मिले नहीं, ज्यादा की है होड़ ।।
ज्यादा की है होड़, होड़ क्यों लगे न भाई ।
भाई देगा वित्त , तभी है बाबा माई।।
माई भूला अद्य , रहा जब ध्येय अधूरा।
अधूरा तभी मनुज,चलन न निभाता पूरा।।
27:
पड़ोसी :
नगरों में जबसे बसे, सबसे हैं अनजान!
मेरे कौन पड़ोस में, नहीं जरा भी ज्ञान!!
नहीं जरा भी ज्ञान,सुनो जी कलयुग आया !
भूले अपना कर्म, पड़ोसी धर्म भुलाया!!
कहे 'सुधा' सुन बात, शूल मिलते डगरों में!
रहे पड़ोसी पास , ध्यान रखिए नगरों में!!
28:
धागा :
धागे सबको जोड़ते, करें न फिर भी गर्व
सोहे भ्राता हाथ में, जब हो राखी पर्व ।
जब हो राखी पर्व, प्रेम आपस में बढ़ता।
बनता जब यह चीर, देह की शोभा बनता।।
कहे 'सुधा' सुन मित्र, द्वेष तब मन से भागे।
जुड़ते टूटे बंध, जगे हिय स्नेहिल धागे।।
बुधवार, 8 जनवरी 2020
सुधा की कुंडलियाँ-5
सुधा की कुंडलियाँ |
21:कुनबा
छोटा कुनबा है सही, खुश रहते सब लोग।
हृदय में कटुता न रहे,बढ़े प्रेम का योग।।
बढ़े प्रेम का योग, नहीं छल बल से नाता।
इक दूजे के *साथ ,साथ* हर एक निभाता।।
कहे सुधा ललकार,*कथन यह लगे न खोटा।*
रखो याद यह बात,रहे नित कुनबा छोटा।।
22:पीहर
बेटी तेरी बावरी, डूबी पीहर याद।
भुला सकूँ तुमको नहीं ,बाबुल प्रेम अगाध।।
बाबुल प्रेम अगाध,नहीं सजना घर जाना।
रहती सखियाँ संग,याद है धूम मचाना।।
कहे सुधा सुन आलि, मायका सुख की पेटी।
समझो हिय के भाव, विदा तुम करो न बेटी।।
23:पनघट
पनघट हुआ उदास है, पनिहारिन किस देश।
नीरवता है छा गई,मन को पहुँचे ठेस।।
मन को पहुँचे ठेस, भाव ये किसे सुनाऊँ।
मैं उजड़ा वीरान,किसी के काम न आऊँ।।
दुखी सुधा है आज, हुए सोते अब मरघट।
संस्कृति है शोकार्त्त,अद्य निराश है पनघट।।
24:सैनिक
सैनिक सीमा पर खड़ा ,सजग रहे दिन रात।
देश प्रेम सब कुछ अहो ,मात पिता अरु भ्रात।।
मात पिता अरु भ्रात, घाम अति सहता सरदी।
तन पर झेले घात, बदन पर पहने वरदी ।।
करती सुधा प्रणाम, कर्म उनका यह दैनिक।
साहस का प्रतिरूप,त्याग दे जीवन सैनिक।।
25:कोयल
कूजति कोयल बाग में,सुन मनवा हरषाय।
स्वागत में मधुमास के,कली कली मुसकाय।।
कली कली मुसकाय,दिवस बासंती आए।
हर्षित बालक वृद्ध,राग बासंती गाएँ।।
प्यारा यह मधुमास,छटा की रहे न अनुमिति।
देख प्रकृति का रूप,बाग में कोयल कूजति।।
शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019
सुधा की कुंडलियाँ-4
सुधा की कुंडलियाँ |
21:बिंदी::
जगमग भाल चमक रहा, टीका बिंदी संग।
मीरा जोगन हो गई, चढ़ा कृष्ण का रंग।।
चढ़ा कृष्ण का रंग , कृष्ण है सबसे प्यारा।
छान रही वनखंड,लिए घूमे इकतारा ।।
छोड़ा है रनिवास,बसा कर कान्हा रग रग।
तुम्बी सोहे हस्त ,भाल टीके से जगमग।।
22:डोली::
डोली बैठी नायिका, पहन वधू का वेश।
कई स्वप्न मन में लिए,चली पिया के देस।।
चली पिया के देस,भटू अब नैहर छूटा।
माँ बाबा से दूर, सखी से नाता टूटा।।
जाने कैसी रीत, सुबक दुल्हनिया बोली।
लगी सजन से लगन,स्वप्न बुन बैठी डोली।।
23:जीवन ::
मानव योनि जन्म मिला,कर इसका उपयोग।
जीवन व्यर्थ न कीजिये, कर लीजे कुछ योग।।
कर लीजे कुछ योग,आज मानवता रोती।
हिंसा करती राज,बीज नफरत के बोती।।
सुधा विचारे आज, बना मनुष्य क्यों दानव।
जिंदगी हो न व्यर्थ,तुष्ट हो मन से मानव।।
24:उपवन::
माता जैसे पालती, खून से प्यारे लाल।
माली उपवन सींचता , नियमित रखता ख्याल।।
नियमित रखता ख्याल, फूल डाली पर खिलते।
चुनता खर पतवार, हस्त कंटक से छिलते।।
कहे सुधा सुन आज, बाग माली का नाता।
माली उपवन संग,यथा बालक अरु माता।।
25:कविता::
कविता मन की संगिनी, कविता रस की खान ।
कवि की है ये कल्पना, जिसमें कवि की जान ।।
जिसमें कवि की जान,स्नेह के धागे बुनता।
आखर आखर जोड़,भाव उर के वह चुनता ।।
सुनो सुधा है काव्य ,तमस विलोपती सविता।
दग्ध हृदय उद्गार,सहचरी हिय की कविता।।
26:ममता::
ममता माया में मढ़ी,मानो माँ का मोल।
महिधर महिमा में झुके,महतारी अनमोल।।
महतारी अनमोल ,न माँ की करो अवज्ञा ।
रख लो माँ का मान,चला लो अपनी प्रज्ञा।।
सुनु सुधा समझावति, मात की समझो महता।
माँ सम महा न कोय,नहीं माता सी ममता।।
मंगलवार, 24 दिसंबर 2019
सुधा की कुंडलियाँ-3
कुंडलियाँ |
15:
वेणी ::
बालों की वेणी बना,कर सोलह श्रृंगार ।
डोली बैठी गोरिया ,चली पिया के द्वार।।
चली पिया के द्वार, नयन में स्वप्न सजाए।
बाबुल दे आशीष ,लेत हैं सखी बलाएँ।।
आँगन सूना छोड़,उड़ी चिड़िया डालों की।
चलत घूँघटा ओढ़ ,बना वेणी बालों की।।
16:
कुमकुम ::
महता कुमकुम की बड़ी, कुमकुम करता राज।
शुभ कारज कोई न हो,होय न मंगल काज।।
होय न मंगल काज, यही सौभाग्य बुलाता।
नारी के भी माथ,माँग कुमकुम इठलाता।।
विजय तिलक की बात,वेद पुराण भी कहता।
सजा ईश के भाल ,सुनो कुमकुम की महता।।
17:
काजल::
काजल आँखों में लगा , बिंदी चमके माथ।
मांगटीका भाल सजा , मिला पिया का साथ ।।
मिला पिया का साथ ,सखी री ढोल बजाओ।
आई द्वार बरात ,सुनो सब मंगल गाओ।।
कहे सुधा सुन आलि,आँख से बरसे बादल।
सखी दुआ दें आज , आँख का झरे न काजल।।
18:
गजरा::
अलकों में महकन लगा,देखो गजरा आज।
पहनी धानी चूनरी, ओढ़ शरम अरु लाज।।
ओढ़ शरम अरु लाज, इत्र है छिड़का चंदन।
लाल हुए हैं गाल, हाथ में बाजे कंगन ।।
लगा महावर पाँव, स्वप्न पाले पलकों में।
बनी वधू वह आज,लगा गजरा अलकों में।।
19:
पायल ::
बाजे पायल सुर सजे,राम लला के पाँव।
लाड़ करती कैकेयी,मोहित सारा गाँव।।
मोहित सारा गाँव,रूप प्रभु का है प्यारा।
कौशल्या दे स्नेह,सबहि के राम दुलारा।
शोभित अतुलित कांति,कमर करधनिया साजे।
सोहे कुंडल कर्ण, पाँव पैजनिया बाजे।।
20:
कंगन ::
पहने कंगन हाथ में,पायलिया है पाँव।
नागिन जैसी वो चले, देखे पूरा गांव।।
देखे पूरे गाँव, नयन मोहक कजरारे।
दिवस हो गई रात ,घेरि आये बदरा रे।
हैं संदल से गात,सुखद सूरत क्या कहने।
मलमल से हैं गाल, हाथ में कंगन पहने।।
रविवार, 17 नवंबर 2019
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