सोमवार, 29 जून 2015

जीवन की सच्चाई






ताउम्र  गुजार दी हमने,
जीवन की इस आपाधापी में!
अपना इक सुंदर - सा 
आशियाना बनाने में ।

जब दो पल का आराम मिला,
तो आशियां मेरा खाली मिला ।
न वो थे,
 जिनके लिए  बनाया था ये आशियां।
न हम ,हम रह पाए ,
जिसने  सजाया था ये आशियां।

खाली  दीवारों से टकराकर लौटती हुई आवाजें ,
मुझे  मुँह  चिढा रही हैं ।
मानों  मुझे  आईना दिखा रही हैं ।
उन सुनहरे  पलों  की याद दिला रही हैं ।
जो रेत  की  मानिन्द ,
मेरे  हाथों  से  फिसल गई ।
और  मैं  खाली हाथ  मलती रह गई ।

अब तो इष्ट से जिरह करनी है मुझे, 
  कि एक उम्र और चाहिये मुझे ,
अपना आशियां फिर से  बसाने के लिए ।
अपनी पूरी जिंदगी अपनों के साथ बिताने के लिए ।
सुधा सिंह 🦋 

रविवार, 28 जून 2015

प्रेम की परख



उन्हें  आजमाया न करो ऐ दोस्त  ,
जो  तुम्हें  प्यार करते  हैं।
कहीं  कोई  गुस्ताखी न हो जाए ,
इसलिए वे चुप  रहते  हैं ।।

ये  जरूरी  तो नहीं  कि
हर बात  बोलकर  ही बताई  जाए।
भावनाएं  उनकी  भी  होती हैं
जिन्हें  हम  'मूक' कहते हैं ।।