लो आ गया एक और दिवस
तथाकथित विश्व मजदूर दिवस।
होंगे बड़े बड़े भाषण, बड़ी बड़ी बातें,
मजदूर दिवस के नाम पर
पीठासीनों पदाधिकारियों को
होगा एक दिन का अवकाश।
पर मजदूर को इसका भी कहाँ आभास।
इस तथ्य से अनजान
अनभिज्ञ कि उसके नाम से भी
पूरी दुनिया में होती है छुट्टी।
वह डँटा रहता है पूरी निष्ठा से
अपनी जिन्दगी के मोर्चे पर
छेनी - हथौडी लिए,
पत्थर ढोता, बड़ी - बड़ी अट्टालिकाओं
के रूप संवारता
कि दो जून की दाल रोटी
का हो जाए इंतजाम।
फिर बड़े - बड़े ख्वाब सजाता मजदूर,
अपने सुनहरे कल की उम्मीद बांधे
सो जाता है फूंस की
जर्जर झोपड़ी में
कच्ची पक्की जमीन पर
फटे लत्तों की गूदड़ी बिछाकर,
अपना स्वप्न महल सजाकर।
और रोज की तरह
गुजर जाता है यह
तथाकथित मजदूर दिवस भी।