नारी सम कोई नहीं, नारी सुख की धाम
बिन उसके घर- घर कहाँ,घर की है वह खाम(स्तंभ) ।1।
शक्ति विहीना नारि जब, लेती है कुछ ठान
अनस्तित्व फिर कुछ नहीं, नारी बल की खान।2।
रक्तबीज के ध्वंश को,काली करती युद्ध
अरिमर्दन करती बढ़े , जब हो नारी क्रुद्ध।3।
सहकर भारी दर्द भी, भरती शिशु में प्राण
कोई नारी सम नहीं, करती शिशु का त्राण।4।
नारी अबला है नहीं, नारी शक्ति स्वरूप
लड़ जाती यमराज से, नारी सति का रूप।5।
सुधा सिंह 'व्याघ्र'