बस, कई बार यूँ ही..
समय बर्बाद करती
पाई गई हूँ मैं
मेरे ही द्वारा।
कभी मुखपोथी पर
कभी व्हाट्सएप के
अनेकों समूहों पर।
जब -तब नोटिफिकेशन
का स्वर उभर कर
मुझे खींचता है अपनी ओर
और मैं ...
मैं बहुत आवश्यक
काम छोड़कर
पहले फ़ोन उठाने
लपकती हूँ
कि कहीं किसी को
बहुत ज़रूरी कार्य न हो
कहीं कोई किसी मुश्किल में
न फँसा हो
रात को भी फ़ोन
बंद नहीं करती
बस यही सोचकर।
मैं क्यों स्वयं को
इतना महत्व देने लगी हूँ
कि वे अपनी परेशानियों में
मुझे याद करेंगे और मैं
उनके किसी काम आ सकूँगी।
सभी तो समझदार हैं
फिर भी मैं..
बस यूँ ही ...
मैं अक्सर फोन पर
समय बरबाद करती
पाई जाती हूँ मेरे ही द्वारा।
सुधा सिंह