21:
शस्य श्यामला ये धरा, मृत होती सुन आज।
वृक्षों से शोभा बढ़े , धरती का ये साज।।
22:
तरुवर का रोपण करें, तरु हैं देव समान ।
जीवन जो देते हमें, क्यों ले उन के प्रान।।
23:
वृक्षों के बिन ये धरा,हो जैसे अभिशाप।
आज अगर सुधि ली नहीं, करिए फिर संताप।।
24:
पेड़ों को मत काटिए, बढ़ता जाए ताप।
मरु बनती जाए धरा, हरियाली *दुरवाप।।
*दुरवाप - विशेषण [संस्कृत] जो कठिनता से प्राप्त हो सके । दुष्प्राप्य ।
सुधा सिंह व्याघ्र