पर क्या... स्वयं से छुप पाओगे तुम
वो गलतियाँ , जो की थी
तुमने जानबूझकर ...
रह -रहकर अँधेरे कोणों से
अट्टहास करती जब
तुम्हारे समक्ष आयेंगी...
तुम्हारे हृदय को कचोटती
काले साये की तरह तुम्हें डराएंगी
कहो भाग कर तब कहाँ जाओगे तुम
एक अरसे से जिस आत्मा को
अपनी निम्न सोच से
अनवरत बिगाड़ते रहे थे
वह विद्रूपता लिए
आईने के सामने
किस तरह मुस्कुराओगे तुम
अपनी अंतर्वेदनाओं को कहीं और
क्या गिरवी रख पाओगे तुम
अनंत ब्रह्मांड में तैरते
तुम्हारे कहे शब्द जब अपना
हिसाब माँगेगे तब कौन-सा बही खाता दिखाओगे
क्या अपने शब्द से मुकर पाओगे तुम
कहो क्या स्वयं से छुप पाओगे तुम.....