क्या तूने अपने चित्र पर सूक्ष्म
विश्लेषणात्मक दृष्टि डाली??
कितनी खूबसूरती से तेरी कूची ने
सजाई थी इस सृष्टि को
अपने कोरे केनवास पर,
कहीं गुंजायमान था
पखेरुओं का कलरव मधुर गान
कहीं परिलक्षित थी
पर्वतों की ऊँची मुस्कान
नदियों निर्झरों समंदरों
का कल - कल उर्मिल आल्हाद
हरित वृक्ष लताओं से सजी
वादियों का आशीर्वाद
बिखेरे थे तूने आशाओं के
रंग अनेकों, इस कैनवास पर
कि हो जाए य़ह रंगबिरंगी
दुनिया हुलसित
हो हर दिशा पुष्पों
की गमक से सुरभित
पसरी थी चतुर्दिक तेरी तूलिका
से खींची मनोहारी अद्भुत रेखाएँ
चित्ताकर्षक सबकुछ सुखद ललाम..
फिर क्या सूझी तुझे कि
तूने एक मानव भी उगा दिया
अपनी आखिरी लकीर से प्रकृति को दगा दिया
छीन ली सदा सदा के लिए उसके चेहरे की लाली
ओ चित्रकार,
क्या तूने अपने इस चित्र पर पुनः निगाह डाली??
बहुत दुखद।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏 🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 05 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमुखरित मौन में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया 🙏 🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना सखी, समसामयिक परिदृश्य को प्रस्तुत करती हुई👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सखी
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (06 जून 2020) को 'पर्यावरण बचाइए, बचे रहेंगे आप' (चर्चा अंक 3724) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सही सवाल सुधा दी। इंसान का व्यवहार देख कर यहीं लगता हैं कि इंसान ने ही छीन ली हैं सदा सदा के लिए प्रकृति के चेहरे की लाली।
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी
हटाएंबहुत सही आकलन और विश्लेषण .. आज पृथ्वी क्या पूरे ब्रह्माण्ड की तबाही का मूल कारण प्रकृति का ही बनाया हुआ मानव जाति है .. ना खुद चैन से रहता है और ना दूसरे को रहने या जीने देता है ...
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय 🙏
हटाएंपसरी थी चतुर्दिक तेरी तूलिका
जवाब देंहटाएंसे खींची मनोहारी अद्भुत रेखाएँ
चित्ताकर्षक सबकुछ सुखद ललाम..
फिर क्या सूझी तुझे कि
तूने एक मानव भी उगा दिया
अपनी आखिरी लकीर से प्रकृति को दगा दिया
सचमुच मानव ने प्रकृति को दगा ही दिया है आज भगवान भी अपनी ही कृति पर पछता रहे होंगे
बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी समसामयिक सृजन।
प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत है सखी
हटाएंहृदय स्पर्शी सृजन सखी.
जवाब देंहटाएंसादर
प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार बहना
हटाएंसंवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय. आपको अपने ब्लॉग पोस्ट पर देखकर बहुत प्रसन्नता हुई...
हटाएंआ सुधा जी, बहुत अच्छी रचना है। भावनाओं से भरी हुई रचना है। इसमें उलाहना स्वरुप कटाक्ष भी है :
जवाब देंहटाएंफिर क्या सूझी तुझे कि तूने एक मानव भी उगा दिया अपनी आखिरी लकीर से प्रकृति को दगा दिया। --ब्रजेन्द्र नाथ
प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय. आपको ब्लॉग पर देखकर मन आल्हादित हुआ... सादर प्रणाम
हटाएंसंवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार बहना. आपको ब्लॉग पर पाकर अच्छा लगा..
हटाएंचित्रकार को अपनी सभी कृतियाँ प्रिय होती हैं दी,किंतु चित्रों को बनाने के बाद उसे परिस्थितियों से जूझने के लिए छोड़ना चित्रकार की मजबूरी है।
जवाब देंहटाएंजीवंत चित्रों के कर्म ही उसका प्रारब्ध निर्धारित करते है मेरी समझ से।
बहुत सुंदर मंथन और अभिव्यक्ति दी।
सादर।