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मंगलवार, 1 जून 2021

मनुहार - व्याघ्र छंद

अम्बर सजे तारे, खुला हिय का हर द्वार है 

खुशियाँ सिमट आईं,बही प्यार की बयार है 


त्योहार की ऋतु है, 

बजे ढोलकी मृदंग हैं। 

प्रिय साथ दे जो तू, 

उठे प्रीत की तरंग है।। 

उपवन भ्रमर गूँजे , करे सोलह शृंगार है। 


आजा कि तेरे बिन, 

बना आज मैं मलंग हूँ। 

रति प्राण मेरी तू, 

सुनो मैं प्रिये अनंग हूँ।। 

संगम तुझी से हो,जिया की यह मनुहार है। 


रंगीन हर इक पल,  

भरा पूरा संसार हो। 

महके पुहुप द्वारे, 

अजिर गूंजे किलकार हो।। 

बरसे बदरिया यूँ, लगी श्रावणी फुहार है ।


व्याघ्र छंद का शिल्प विधान ■ (1)


वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए। मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा।

221 222

122 222 12


तगण मगण

यगण मगण लघु गुरु (लगा)


 


सोमवार, 25 दिसंबर 2017

अब लौट आओ प्रियवर..... 


अब लौट आओ प्रियवर.....
अकुलाता है मेरा उर अंतर..
शून्यता सी छाई है रिक्त हुआ अंतस्थल.
पल पल युगों समान भए
दीदार को नैना तरस गए
इंतजार में तुम्हारे पलके बिछी हैं
तुम बिन बिखरा बिखरा सा मेरा संसार है प्रियवर
अब लौट आओ प्रियवर

अब लौट आओ प्रियवर
कि थम जाती है मेरी हर सोच
तुम पर आकर
रुक जाता है वक़्त तुम्हें न पाकर
पांव आगे ही नहीं बढ़ते
वो भी ढूँढते हैं तुम्हें
रातें करवटों में तमाम हो जाती है
तुम बिन बेकार ये संसार है प्रियवर
अब लौट आओ प्रियवर

बंद करती हूँ आँखें कि
नींद की आगोश में जाके
कुछ सुनहरे ख्वाब बुन लूँ
कुछ शबनमी बूँदों की तरावट ले लूँ
पारियों के लोक में पहुंच कर
दिव्यता का आभास कर लूँ
पर यह हो नहीं पाता क्योंकि तुम संग न हो
तुम बिन न कोई तीज है न त्योहार है प्रियवर

अब लौट आओ प्रियवर
संदेश भेजा है  तुम्हें
मेरे प्रेम की भीनी भीनी
खुशबू लेकर हवाएँ गुजरेंगी,
जब पास से तुम्हारे,
गालों को तुम्हारे चूमते हुए,
कर लेना एहसास मेरे नेह का
कि तुम बिन चहुँ ओर सिर्फ अंधकार है प्रियवर
अब लौट आओ प्रियवर

अब लौट आओ प्रियवर
कि रात के शामियाने से..
कुछ नशा चुराया है तुम्हारे लिए..
थोड़े से जुगनू समेटे हैं तुम्हारे लिए...
तारों की झालर सजाकर
सागर से रवानी भी ले आई हूँ तुम्हारे लिए
थोड़ी शीतलता चाँदनी भी दे गई है हमारे लिए
तुमसे मिलने का बस इंतजार हैं प्रियवर
अब लौट आओ प्रियवर