नजरिया लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
नजरिया लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

कुलदीपक




कितना अच्छा है
कि मैं लड़का नहीं हूँ.

भले ही मेरे पापा,
मेरे भाई से
सबसे अधिक प्यार करते हैं
और हमें बोझ समझते हैं .
भले ही उनका सारा लाड - प्यार
सिर्फ उसे ही मिलता है .
और वह पापा से बिलकुल नहीं डरता
उसे बताया गया है कि
वह उनके कुल का दीपक है.
उसे गर्व है इस बात का.

उसकी गलती पर जब माँ,
उसे डाँटती है तो वह पापा से
उनकी शिकायत करता है.
उसकी हर जिद पूरी होती है.
घर में सिर्फ उसकी ही तो चलती है.
वह जो  कुछ चाहता है
उसे झट से मिल जाता है.
उसकी सभी उचित- अनुचित
मांगें पूरी हो जाती हैं.
बाइक, कार सबकी चाबियां
उसी के पास तो होतीं हैं.

अगर मम्मी या दीदी
उसे किसी बात पर
रोकती - टोकती हैं तो
वह उनको पापा की
डाँट खिलवाता है.
वह फ़ेल होता है तब भी,
उसे प्यार से समझाया जाता है.

उसे समझाया जाता है कि...
"उनकी सारी जायदाद
उसकी ही तो है फिर भी
थोडी - बहुत पढ़ाई
उसे कर ही लेनी चाहिए.
बहनें तो एक- न - एक दिन
अपने ससुराल चली जाएँगी."
यह सुनते ही
उसकी खुशी का
कोई ठिकाना नहीं होता है.
बचपन से लेकर बड़े होने तक
बार - बार और न जाने
कितनी ही बार तो
उसके कानों ने यह सुना था.
पर
बहुत अच्छा है कि
मैं लड़का नहीं हूँ.
मैं उस जैसा लड़का
नहीं बनना चाहती.
वह जब चाहे रुपए
जुए में उड़ा देता है.
अच्छा है कि मैं लड़की हूँ
अपने पिता की कमाई
जुए में उड़ाने का विचार
मेरे मन में कदापि नहीं आता.
मैं उसकी तरह घर में
शराब पीकर नहीं आ सकती.
वह कभी- कभार
माँ के साथ- साथ पापा को भी
गालियाँ बक देता है.
उन्हें बुरा - भला कहता है.
उन्हें नीचा दिखाने में
कोई कसर नहीं छोड़ता
पर मैं ऐसा न कर पाती. .

उसके बिगड़ने का दोष
माँ पर ही तो लगता है सदा
अगर मैं लड़का होती
तो कतई नहीं चाहती कि
मेरे बिगड़ने का इल्जाम
मेरी माँ पर आए.
अच्छा है कि मैं लड़का
नहीं हूँ क्योंकि
पापा कि डाँट
जब माँ को मिलती है
तो उसे बहुत मजा आता है.
मुझे बिलकुल न अच्छा लगता
कि मेरी गलती की सजा
मेरी माँ को मिले.

ख़ुश हूँ मैं कि
मैं लड़का नहीं हूँ.
अच्छा है कि मैं
अपने पापा के कुल का
दीपक नहीं हूँ.
नहीं बनना मुझे
ऐसा कुलदीपक
जो अपनी घृणित मानसिकता
के चलते अपने ही
घर में आग लगा दे.
अपने आगे किसी को
कुछ न समझे
छोटे - बड़े का लिहाज भूल जाए.

अच्छा है कि लड़की हूँ मैं .
मुझपर कुछ पाबंदियां हैं.
शायद इसलिए
मुझे अपनी सीमाएँ पता है
जिन्हे मैंने कभी नहीं लांघा.
अपने दायरे में रहकर
जीने की कला सीखी पर.......

दुख होता है कि...
माँ डरती है
अपनी ही कोख की औलाद से
और तो और अब पापा भी
डरने लगे हैं उससे.