माटी मेरे गाँव की |
माटी मेरे गाँव की, मुझको रही पुकार।
क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।
बूढ़ा पीपल बाँह पसारे ।
अपलक तेरी राह निहारे।।
अमराई कोयलिया बोले।
कानों में मिसरी सी घोले।।
ऐसी गाँव की माटी मेरी
तरसे जिसको संसार।।
क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।
स्नेहिल रस की धार यहाँ।
मलयज की है बहार यहाँ।।
नदिया की है निर्मल धारा।
शीतल जल है सबसे प्यारा।।
भोरे कुक्कुट बांग लगाए
मिला सहज उपहार ।।
क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।
माँ अन्नपूर्णा यहाँ विराजें।
ढोल मंजीरे मंदिर बाजे।।
खलिहानों में रत्न पड़े हैं।
हीरे - मोती खेत जड़े हैं।।
मन की दौलत पास हमारे
है सुंदर व्यवहार।
क्यों मुझको तुम भूल गए आ जाओ एक बार।।
पुकारती पगडंडियाँ।
इस ओर फिर कदम बढ़ा।।
माटी को आके चूम लो।
एक बार गांव घूम लो।।
हम अब भी अतिथि को पूजें
हैं ऐसे संस्कार।।
क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।