चुपके से यामिनी
ने लहराया था दामन.
सागर की लहरों पर
सवार होकर तरुवर के
पर्णों के मध्य से,
हौले हौले अपनी राह
बनाता चाँद तब , मंथर गति
से, उतर आया था मेरे
मन के सूने आँगन में,
अपनी शुभ्र धवल
रूपहली रश्मियों का
गलीचा बिछाए मीठी
सुरभित बयारों के संग
मुखमंडल पर मीठी
स्मित सजाकर ,
ज्योत्स्ना अपनी
झिलमिलाती स्वर लहरियों
की तरंगों से सराबोर हो
मेरे हिय के तारों को
स्पंदित कर गुनगुना उठी थी
और मैं प्रकृति के
कण कण में स्वयं को
खोकर संसृति की मादकता
में झूमती हुई उनके अलौकिक
स्नेह बंधन में बंध घुल गई थी
जो चाँद मुझे भेंट कर गया था.