पाश में ऐसा जकड़ा, निकल न सका।
इन निगाहों ने ऐसा असर कर दिया
न मैं जिंदा रहा, और न मर ही सका।
है प्रशांत सबसे गहरा, या चितवन तेरे
डूबा मैं जब से इनमें, उबर न सका।
खिंचा आया था पुष्प में अलि की तरह...
व्योम नीला अधिक है, या दृग हैं तेरे
आज तक और अभी तक, न तय कर सका।
आया हूँ जब से , मतवारे नयनन के द्वार
खोया खुद को , अभी तक मैं पा न सका।
खिंचा आया था पुष्प में अलि की तरह.....
मैं यायावर अहर्निश, तेरी अभिलाषा में
रह गया प्यासा, मरु- सर को पा न सका।
है ये कैसी कशिश, कैसा अहसास है,
है पारावार किंतु, तृष्णा मिटा न सका।
खिंचा आया था पुष्प में, अलि की तरह
पाश में ऐसा जकड़ा, निकल न सका ।