कल कल - संगीत मधुर, सुनाती है नदिया.
चाल लिए सर्पिणी- सी , बलखाती नदिया
तृष्णा को सबकी पल में मिटाती है नदिया
प्रक्षेपित पहाड़ों से होती है नदिया
वनों बियाबनों से गुजरती है नदिया
राह की हर बाधा से लड़ती है नदिया
सबके मैल धोके पतित होती है नदिया
मीन मकर जलचरों को पोषती है नदिया
अपने रव में बहते रहो, कहती है नदिया
तप्त हुई धरा को भिगाती है नदिया
अगणित रहस्यों को छुपाती है नदिया
शुष्क पड़े खेतों को सींचती है नदिया
क्षुधितों की क्षुधा को मिटाती है नदिया
क्रोध आए, प्रचंड रूप दिखाती है नदिया
फिर अपना बाँध तोड़ बिखर जाती है नदिया
कभी सौम्य है, तो कभी तूफानी है नदिया
कल्याण करे सबका जीवन दायिनी है नदिया
कई सभ्यताओं की जननी है नदिया.
खारे- खारे सागर की मीठी संगिनी है नदिया
सुधा सिंह 🦋