काल क्रम का फेरा
हर साँस नम हुई है, हर आँख रोई रोई
है दौर कैसा आया, हतबुद्धि सोई सोई।
अवसान का है तांडव
भयाक्रांत हर मनुज है
अनुराग है विलोपित
संशय का पसरा पुँज है
विश्वास की चिरैया, उड़ती है खोई खोई
चहुँदिश गरल का डेरा
है काल क्रम का फेरा
चीख़ों में सनसनाहट
बढ़ा तिमिर है घनेरा
चेहरों पे चढ़े चेहरे, मानव है कोई कोई
घट आस का है फूटा
कुंठा का लगा मेला
पथभ्रष्ट हुआ मानव
किया प्रकृति से खेला
बोझिल हुई है धरणि, फिरे पाप ढोई ढोई