विधा~मनहरण घनाक्षरी
विषय~चित्र चिंतन
शीर्षक~मजदूरनी
मेहनत मजदूरी,
भाग्य लिखी मज़बूरी।
रात दिन खट के भी,
मान नहीं पाती है।1।
सिर पर छत नहीं,
बीते रात दिन कहीं।
ईंट गारा ढोती घर,
दूजे का बनाती है।2।
हौंसले की लिए ढाल,
अँचरा में बाँधे लाल।
फांके करती है कभी,
रूखा सूखा खाती है।3।
तकदीर की है मारी,
खाए पति की भी गारी।
दुख दर्द सहके भी,
फ़र्ज वो निभाती है ।4।
सुधा सिंह 'व्याघ्र'