व्यस्त हूँ मैं..
क्योंकि मेरे पास कोई काम नहीं है,
इसलिए व्यस्त हूँ मैं...
काम की खोज में हूँ!
रोजगार की तलाश में हूँ!
रोज दर - दर की खाक छानता हूँ!
डिग्रीयां लिए - लिए
दफ्तर- दर- दफ्तर भटकता हूँ!
इसलिए व्यस्त हूँ मैं...
मेहनतकश इन्सान हूँ!
पर सिफारिश नहीं है!
दो वक़्त की रोटी की खातिर
कितनी जूतिया घिसी है ,
उनकी गिनती का भी समय नहीं,
इसलिए कि व्यस्त हूँ मैं ...
घरवालों को किया हुआ वादा
भी पूरा नहीं कर पाता हूँ !
देर शाम जब घर की
दहलीज पर पहुंचता हूँ तो
उनके मुख पर एक प्रश्नचिह्न पाता हूँ !
एक मूकप्रतीक बन
स्तब्धता से खड़ा रह जाता हूँ !
और सिर झुकाकर अपनी
लाचारी का परिचय देता हूँ !
मेरे पास किसी को देने के लिए
कुछ भी नहीं है, जवाब भी नहीं है!
इसलिए कि व्यस्त हूँ मैं ..
प्रतिदिन व्याकुलता से किसी
खुशखबरी की प्रतीक्षा करते- करते
उनकी आंखें भी मायूस सी हो जाती हैं !
फिर भी रोज एक नई उम्मीद लिए
मेरे साथ नई भोर
का इंतजार करती हैं !
उन्हीं आशाओं को पूरा करने के लिए
व्यस्त हूँ मैं ..
होली, दिवाली, पर्व, त्योहार
ये क्या होते हैं, इन्हें कैसे मनाते हैं!
मैं नहीं जानता
क्योंकि इनके लिए भी अर्थ लगता है!
उसी अर्थ की खोज में हूँ !
इसलिए व्यस्त हूँ मैं.
सोचा कोई कारोबार या
व्यापार कर लूँ !
पर इस अर्थ ने ही तो
सब अनर्थ कर डाला है !
हर काम में दाम लगता है !
उस दाम की खोज में हूँ !
इसलिए व्यस्त हूँ मैं ..
दिन भर की इस तथाकथित
व्यस्तता के बाद,
जब नींद मुझे अपने पहलू में ले लेती है ,
तो सितारों से उनकी नाराजगी का सबब भी नहीं पूछ पाता!
इसलिए व्यस्त हूँ मैं..
मेरे जीवन बेमानी नहीं,
उसका कुछ अर्थ है!
वही अर्थ देने में लगा हूँ!
इसलिए व्यस्त हूँ मैं..
बेरोजगार हूँ तो क्या हुआ?
सपने बहुत देखे हैं मैंने!
उन सपनों को साकार करना ही
मेरा मक़सद है!
इसलिए व्यस्त हूँ मैं..
सुधा सिंह 🦋