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शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

वो शख्स कहाँ से लाऊँ ! !


दिल अपना  चीरकर किसे दिखाऊँ,
जो इसे समझ सके,
वो शख्स कहाँ से लाऊँ ! !
जो  मेरे  लफ्ज़ों को,  तराज़ू में न तोले
जो मुझे  समझ  ले, मेरे  बिन बोले ॥
वह शख्स  कहाँ से लाऊँ ! !
जो मुझपर ,
अपना अटूट विश्वास दिखा सके ॥
जो तहेदिल से बेझिझक,
मुझे अपने गले से लगा  सके॥
वह शख्स  कहाँ से लाऊँ ! !
जो  मेरे एहसास  का एहसास  कर सके,
जो सदैव ,
मुझे अपनी  कलयुगी निगाहों  से न  देखे॥
वह शख्स  कहाँ से लाऊँ ! !
जो हर पल मुझे ,
अपने साथ  होने  का  एहसास  दे॥
वह शख्स  कहाँ से लाऊँ ! !
वह
जो  मेरी  उखड़ती हुई सांसों को,
नवजीवन  की आस दे॥
 वह शख्स  कहाँ से लाऊँ ! !

बुधवार, 1 जुलाई 2015

विश्वास





मत हार मानकर ऐसे  बैठ,
कर  अपने पंखों  पर  विश्वास ॥
अंबर नीचे  आ जाएगा
और  तुझको  होगा  ये एहसास ॥

जब निश्चय  दृढ  हो जाता है
पूरी होती है  हर आस॥
अवरोध  सभी  मिट जाते हैं
जब  दिल  से  कोई  करे प्रयास॥

हर ओर  उजाला  होता है
अंधकार  का  होता  ह्रास ॥
जीत  नई  अंगडाई  लेती
और  बनाती  रिपु  को ग्रास॥

मन में धधकेगी जब 'लौ' तो
समय  बनेगा  तेरा  दास ॥
डैनों में भरके  नये  हौसले
उड़  चल  और  नाप आकाश ॥

मत  हार  मानकर ऐसे बैठ
 कर अपने  पंखों पर विश्वास ॥