समय की रेत फ़िसलती हुई,
उम्र मेरी ये ढलती हुई,
करती है प्रश्न खड़े कई।
क्या वक्त है कि मुड़के पीछे देखें,
क्या वक्त है कि कुछ नया सीखें।
सीखा जो भी अब तलक,
कर उसको ही और बेहतर भई।
समय की रेत...
कब कद्र की मेरी तूने ,
मैंने चाहा तू मेरी बात सुने,
मन के भीतर कुछ खास बुने।
तू आया धरा पे मकसद से,
समझ निरा गलत है क्या,
और क्या है एकदम सही।
समय की रेत....
तेरे हिस्से में चंद बातें हैं।
और कुछ शेष मुलाकातें हैं।
समेटने कुछ बही खाते हैं।
अपनी रफ़्तार को बढ़ा ले तू,
है जो भी शेष उसे निबटा ले तू,
यूँ समझ के जीवन की साँझ भई।
समय की रेत....