31:ईश्वर:
शुक्ति मध्ये मोती ज्यों, मन माही त्यों राम।
अपने हिय को शोध ले, वही ईश का धाम।।
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अपने हिय को शोध ले, वही ईश का धाम।।
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32:प्रकृति:
वन उपवन उजाड़ भए,नहीं पथिक को छाँह ।
बिगड़ी सूरत प्रकृति की , हमें कहाँ परवाह।।
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वन उपवन उजाड़ भए,नहीं पथिक को छाँह ।
बिगड़ी सूरत प्रकृति की , हमें कहाँ परवाह।।
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33:नैतिकता:
छल बल से कम्पित धरा,भरे मनुजता आह।
निज हित में अंधा मनुज,भूला नैतिक राह।।
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छल बल से कम्पित धरा,भरे मनुजता आह।
निज हित में अंधा मनुज,भूला नैतिक राह।।
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34:छल-कपट:
छल कपट अरु प्रवंचना, हुई धरा पर व्याप्त ।
हे प्रभु फिर अवतार लो,इनको करो समाप्त ।।
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छल कपट अरु प्रवंचना, हुई धरा पर व्याप्त ।
हे प्रभु फिर अवतार लो,इनको करो समाप्त ।।
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35:समय:
गति समय की रुके नहीं, समय बड़ा बलवान।
सबक समय से सीख कुछ,ठहरा क्यों नादान।।
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गति समय की रुके नहीं, समय बड़ा बलवान।
सबक समय से सीख कुछ,ठहरा क्यों नादान।।
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36:परिवर्तन:
परिवर्तन शाश्वत नियम ,विधि का यही विधान ।
अड़े रहे जो लीक पर , वो विस्मृत अनजान ।।
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परिवर्तन शाश्वत नियम ,विधि का यही विधान ।
अड़े रहे जो लीक पर , वो विस्मृत अनजान ।।
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37:काल:
धीमी की गति काल ने,तू भी थम जा यार।
होड़ काल से क्यों करे,काल बल है अपार।।
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धीमी की गति काल ने,तू भी थम जा यार।
होड़ काल से क्यों करे,काल बल है अपार।।
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38:धर्म:
धर्म संस्कृति पोषण हित , रुके समय की चाल।
धर्म विरोधी जो बना, गया काल के गाल।।
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39: संगीत
अनुरागी हिय भाव ही , रचते जीवन गीत।
तज दें कलुषित भाव तो, बज उठता संगीत।।
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40:कर्म
पश्चाताप न हो कभी, कर ले ऐसे कर्म।
आज किया कल भोगना, जीवन का है मर्म।
धर्म संस्कृति पोषण हित , रुके समय की चाल।
धर्म विरोधी जो बना, गया काल के गाल।।
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39: संगीत
अनुरागी हिय भाव ही , रचते जीवन गीत।
तज दें कलुषित भाव तो, बज उठता संगीत।।
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40:कर्म
पश्चाताप न हो कभी, कर ले ऐसे कर्म।
आज किया कल भोगना, जीवन का है मर्म।
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41: वीर
एक *मनोरथ* है यही, देश रहे खुशहाल।
बच्चा बच्चा वीर हो, बने देश की ढाल।।
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42: लगन
कार्य करें जो लगन से , सुगम बने तब राह।
बनें विशारद बुद्धि से , मन में रखें न डाह।।
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