tag:blogger.com,1999:blog-78651092549389799602024-03-22T13:01:06.484+05:30मेरी जुबानी : मेरी आत्माभिव्यक्ति मेरी कविताओं ,कहानियों और भावों का संसार.
~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.comBlogger275125tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-55492432964395556662023-12-26T13:43:00.001+05:302023-12-26T13:43:33.124+05:30उठो सपूतों... <p> </p><p>उठो सपूतों... </p><p><br /></p><p>देख दुर्दशा भारत माँ की, </p><p>शोणित धारा बहती है। </p><p>दूर करो फिर तिमिर देश का </p><p>उठो सपूतों कहती है।। </p><p><br /></p><p>इस स्वतंत्रता की खातिर, </p><p>वीरों ने जानें खोई हैं।</p><p>फिर भी भारतवर्ष की जनता, </p><p>चादर तान के सोई है ।। </p><p>भूली वाणी भी मर्यादा, </p><p>घात वक्ष पर सहती है। </p><p>दूर करो फिर तिमिर देश का, </p><p>उठो सपूतों कहती है।। </p><p><br /></p><p>स्वार्थ व्यस्त नेतृत्व में अपने </p><p>स्वप्न हिन्द के चूर हुए। </p><p>सत्ता और कुर्सी ने नीचे </p><p>दबने को मजबूर हुए।। </p><p>रच दो फिर से संविधान नव</p><p>पाँव तुम्हारे गहती है। </p><p>दूर करो फिर तिमिर देश का </p><p>उठो सपूतों कहती है।। </p><p><br /></p><p>कभी फाँकते रेती तपती, </p><p>गहन ठंड से ठरते हैं। </p><p>हम गद्दारों की खातिर ही, </p><p>वे सीमांत पे लड़ते हैं।। </p><p>हैं उनको यह ज्ञात देश की, </p><p>रज- रज कितनी महती है। </p><p>दूर करो फिर तिमिर देश का, </p><p>उठो सपूतों कहती है।। </p><p><br /></p><p><br /></p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-23145773779170198952023-12-26T13:43:00.000+05:302023-12-26T13:43:17.355+05:30खो जाने से पहले<p>इन पेड़ों, पहाड़ों, झरनों, </p><p>नदियों और बियाबानों </p><p>के विशालतम अस्तित्व </p><p>के समक्ष तृण- सी बौनी मैं </p><p>इनमें ही विलीन हो</p><p>पहुँचूँगी इक दिन </p><p>शून्य के सर्वोच्च शिखर पर। </p><p><br /></p><p>समा जाएगा धुन्ध में </p><p>मेरी देह का एक - एक कण, </p><p>गिरुँगी मैं फिर बनकर प्रालेय </p><p>और भिगाउँगी नव कोपलों को, </p><p>करूँगी शांत तृषित जीवों को, </p><p>सबकी आँखों से ओझल, </p><p>प्रकृति के स्नेह सिक्त अंचल में, </p><p>चिर निद्रा की सुखद अनुभूति लिए, </p><p>मैं विचरुँगी अवचेतना के संग। </p><p><br /></p><p>किन्तु, </p><p>किन्तु कैसे कर दूँ अवमानना </p><p>उस जगत नियंता की</p><p>जिसने तय किया है </p><p>उस अहसास से पहले </p><p>इहलोक में अपने अपनों के लिए जीने का </p><p>इसलिए खो जाने से पहले </p><p>खोजना है मुझे स्व को, </p><p>परमार्थ को, </p><p>लक्ष को नहीं, </p><p>किंतु नियत लक्ष्य को। </p><p><br /></p><p> सुधा सिंह 'व्याघ्र' ✍️ </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-16695908338116058502023-12-26T13:42:00.006+05:302023-12-26T13:42:59.781+05:30तड़पे ओजहीन हो.. <p> नवगीत:2</p><p>तड़पे ओजहीन हो वसुधा </p><p><br /></p><p>तड़पे ओजहीन हो वसुधा </p><p>रसमय स्नेह सुधा बरसाना </p><p>निर्दयता हृदय में धरकर </p><p>बिसरे सुरभित कुसुम खिलाना</p><p><br /></p><p>1</p><p>छालों से आहत अंतस है</p><p>उलझन में है कटता जीवन</p><p>सुखद पवन आँधी बन आई</p><p>उजड़ गए हैं मन के उपवन</p><p>दुष्चक्रों की अग्नि लटा में </p><p>छोड़ो अब हमको झुलसाना</p><p>तड़पे ओजहीन हो वसुधा......</p><p><br /></p><p>2</p><p><br /></p><p>अँधियारे ने पाँव पसारे</p><p>आशा की नहीं दिखे उजास</p><p>पतझड़ का चहुँ ओर राज है</p><p>लुप्त है क्यों मेरा आकाश</p><p>काल चक्र निर्धारित करके</p><p>भूल चुके क्या याद दिलाना</p><p>तड़पे ओजहीन हो वसुधा......</p><p><br /></p><p>3</p><p>मानवता विधि पर रोती है</p><p>अब उसका अस्तित्व बचा ना</p><p>लोभ मोह माया में फँसकर</p><p>मक्कारी का गाये गाना</p><p>क्यों ये खेल रचाया विधना</p><p>सद्कर्मों की राह सुझाना</p><p>तड़पे ओजहीन हो वसुधा......</p><p><br /></p><p>सुधा सिंह 'व्याघ्र'</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-21912835214927648792023-12-26T13:41:00.000+05:302023-12-26T13:41:31.808+05:30श्री राम स्तुति :कतिपय दोहे <p><br /></p><p>अवधपुरी हर्षित हुई, जन्में बालक राम ।</p><p>प्रमुदित सब नर नारियाँ,छवि देखी अभिराम।। </p><p><br /></p><p> दो अक्षर का नाम है, रघुकुल नंदन राम</p><p>सुमिरन कर ले रे मना, प्रभु आएँगे काम। </p><p><br /></p><p>दसकंधर को तार के, पहुँचाया निज धाम </p><p>शुभकारी श्री राम को, भज लो आठों याम</p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-21063131490611692832023-12-26T13:38:00.000+05:302023-12-26T13:38:18.002+05:30देर ना करना पिया जी... गीत<div><br></div><div>देर ना करना पिया जी... गीत</div><div><br></div><div>देर ना करना पिया जी</div><div>आस की फिर लौ जली है ।</div><div>चाँदनी भी खिलखिलाई</div><div>बाग में चटकी कली है ।।</div><div><br></div><div> तान छेड़े मन मुरलिया,</div><div>रात दिन तुमको पुकारे।</div><div>दूरी अब जाए सही न</div><div>तू कहाँ है ओ पिया रे।। 1।।</div><div><br></div><div>उर्मियाँ हिय की उछलती</div><div>जलधि से मिलने चली है।</div><div>देर ना करना पिया जी</div><div>आस की फिर लौ जली है ।।</div><div><br></div><div> बिन तुम्हारे जगत सूना</div><div>हर तरफ अंधियारा है।</div><div>चांदनी रातें न भाएँ</div><div>लगती ज्यों अंगारा है।।</div><div><br></div><div>दर्श को आँखें तरसती</div><div>विरह में पल पल जली है।</div><div>देर ना करना पिया जी</div><div>आस की फिर लौ जली है ।।2।।</div><div><br></div><div>हृदय में मूरत तुम्हारी</div><div>है पिया मैंने बसाई।</div><div>तुम्हीं हो हर ओर दिखते</div><div>तुम्हीं हो देते सुनाई।।</div><div><br></div><div>राह कब तक और देखूँ</div><div>साँस की संझा ढली है।</div><div>देर ना करना पिया जी</div><div>आस की फिर लौ जली है ।।3।।</div><div><br></div>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-65079362106072114832022-09-18T23:19:00.001+05:302022-09-18T23:19:05.381+05:30कहते थे पापा <div>कहते थे पापा,</div><div>" बेटी! तुम सबसे अलग हो! </div><div>सब्र जितना है तुममें</div><div>किसी और में कहाँ! </div><div>तुम सीता - सा सब्र रखती हो!! "</div><div><br></div><div> बोल ये पिता के </div><div>थे अपनी लाडली के लिए......... </div><div> या भविष्य की कोख में पल रहे</div><div> अपनी बेटी के सीता बनने की</div><div> वेदना से हुए पूर्व साक्षात्कार के थे।..... </div><div><br></div><div> क्या जाने वह मासूम </div><div>कि वह सीता बनने की राह पर ही थी </div><div> पिता के ये मधुर शब्द भी तो </div><div>पुरुष वादी सत्ता के ही परिचायक थे. </div><div>किन्तु वे पिता थे</div><div>जो कभी गलत नहीं हो सकते।</div><div><br></div><div>जाने अनजाने </div><div>पापा के कहे शब्दों को ही</div><div> पत्थर की लकीर </div><div>समझने वाली लड़की </div><div> सीता ही तो बनती है।</div><div> पर सीता बनना आसान नहीं होता। </div><div> उसके भाग्य में वनवास जरूरी होता है। </div><div>धोबी के तानों के लिए </div><div>और रामराज्य स्थापना के लिए </div><div> सीता सा सब्र जरूरी होता है।</div><div> नियति को सीता का सुख कहाँ भाता है </div><div>वह हर सीता के भाग्य में </div><div>केवल सब्र लिखती है।</div><div> दुर्भाग्य लिखती है।</div><div> वेदना लिखती है। </div><div> </div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-78041204512842050092022-01-06T11:39:00.001+05:302022-01-06T11:39:55.333+05:30दीप मन का सदा जगमगाता रहे– गीत<div><br></div><div>दीप मन का सदा जगमगाता रहे</div><div>डर करोना का दिल से भी जाता रहे</div><div><br></div><div> रौशनी की जगह ,वो तिमिर दे गया</div><div>मन की आशाएँ ,इच्छाएं वो ले गया</div><div>अब हुआ है सबेरा, जगो साथियों</div><div>गीत नव हर्ष का, दिल ये गाता रहे।</div><div><br></div><div>दीप मन का सदा जगमगाता रहे</div><div>डर करोना का दिल से भी जाता रहे</div><div><br></div><div>आया दुख का समय भी निकल जाएगा</div><div>हार पौरुष से तेरे वो पछताएगा</div><div>छोड़ दो डर को साथी, बढ़ो हर कदम</div><div>खौफ का मन से कोई न नाता रहे।।</div><div><br></div><div>दीप मन का सदा जगमगाता रहे</div><div>डर करोना का दिल से भी जाता रहे</div><div><br></div><div>फिसला है वक्त हाथों से माना मगर</div><div>कांटों से है भरी माना अपनी डगर</div><div>अपने विश्वास को डगमगाने न दो</div><div>यूं हंसों जग चमन खिलखिलाता रहे।</div><div><br></div><div>दीप मन का सदा जगमगाता रहे</div><div>डर करोना का दिल से भी जाता रहे</div><div><br></div><div>आंसुओं से भरी माना हर शाम थी</div><div>हर खुशी तेरी कोविड के ही नाम थी</div><div>लड़ बुरे वक्त से तू खड़ा है हुआ</div><div>जीत हर बाजी तू मुस्कुराता रहे।</div><div><br></div><div>दीप मन का सदा जगमगाता रहे</div><div>डर करोना का दिल से भी जाता रहे।</div><div><br></div><div>सुधा सिंह ‘व्याघ्र’💗</div><div><br></div><div><br></div>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-62381709631571714912021-06-22T14:54:00.001+05:302021-06-22T14:55:26.009+05:30संकट मोचक हे हनुमान (भजन) <p> संकट मोचक हे हनुमान,</p><p>चहुँदिस पसरा है अज्ञान। </p><p>कोरोना की मार पड़ी है </p><p>उलझन में बिखरा इंसान।। </p><p><br /></p><p>आई विपदा हमें संभालो</p><p>इस संकट से प्रभु बचा लो। </p><p>संजीवनी की आशा तुमसे </p><p>शरण में अपनी लो भगवान।। </p><p><br /></p><p>काल नेमि का काल बने तुम </p><p>कनक लंक को जार दिए तुम। </p><p>भक्तों का तुम एक सहारा </p><p>करो कृपा हे कृपा निधान।। </p><p><br /></p><p>राम तुम्हारे हृदय समाए </p><p>महिमा तुम्हारी कही न जाए। </p><p>अष्ट सिद्धियों के तुम स्वामी </p><p>खुशियों का दे दो वरदान।। </p><p><br /></p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-58036333509346230672021-06-14T23:45:00.000+05:302021-06-14T23:45:53.825+05:30कर्ज़ <p> </p><p>मन हरण घनाक्षरी </p><p>विषय :कर्ज़(11/10/2020) </p><p> </p><p>रूखा सूखा खाइए जी </p><p>ठंडा पानी पीजिए जी </p><p>दूजे से उधार किन्तु </p><p>लेने नहीं जाइए </p><p><br /></p><p>रातों को न नींद आए </p><p>दिन का भी चैन जाए </p><p>भोगवादी धारणा को</p><p>चित्त से हटाइए </p><p><br /></p><p>जीना भी मुहाल होगा</p><p>दुख बेमिसाल होगा, </p><p>धैर्य सुख का है मंत्र </p><p>उसे अपनाइए </p><p> </p><p>श्रम से विकास होगा </p><p>दीनता का नाश होगा </p><p>श्रम से ही जीवन को</p><p>सफल बनाइए </p><p><br /></p><p> सुधा सिंह व्याघ्र </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-6638347651063023312021-06-06T14:02:00.007+05:302023-12-23T17:25:02.639+05:30गरीब, गरीबी और उनका धाम <p>एक चौराहा, </p><p>उसके जैसे कई चौराहे, </p><p>सड़क के दोनों किनारों के </p><p>फुटपाथों पर बनी नीली- पीली, </p><p>हरी -काली पन्नियों वाली झुग्गियाँ, </p><p>पोटली में लिपटे कुछ मलिन वस्त्र... </p><p><br /></p><p>झुग्गियों के पास ईंटों का </p><p>अस्थायी चूल्हा.... </p><p>यहाँ- वहाँ से एकत्रित की गई</p><p>टूटे फर्निचर की लकड़ियों से </p><p>चूल्हे में धधकती आग, </p><p>चूल्हे पर चढ़े टेढ़े - मेढ़े</p><p>कलुषित पतीले में पकता </p><p>बकरे का माँस, </p><p>ज्येष्ठ की तपती संध्या में </p><p>पसीने से लथपथ चूल्हे के समक्ष बैठी </p><p>सांवली-सी गर्भवती स्त्री की गोद में </p><p>छाती से चिपटा एक दुधमुँहा बालक, </p><p>रिफाइंड तेल के पाँच, दस, पंद्रह लीटर के </p><p>पानी से भरे कैन,</p><p>कैन से गिलास में पानी उड़ेलने का </p><p>असफल प्रयास करती पाँच छः वर्ष की</p><p>मटमैली फ्राक पहनी बालिका, </p><p>दाल - भात से सना बालिका का मुख, </p><p>पानी पीने को व्यग्र, </p><p>बहती नाक और आँख से बहती अश्रु धारा से</p><p>भीगे साँवले कपोल, </p><p><br /></p><p>बगल ही बैठा खुद में निमग्न </p><p>एक सांवला, छोटा कद पुरुष, </p><p>उसकी बायीं कलाई में नीलाभ</p><p>रत्नजड़ित लटकती गिलेट की मोटी ज़ंजीर,</p><p>भूरे जले से केश, </p><p>हरे रंग की अनेक छेदों वाली बनियान,</p><p>दो उंगलियों के बीच फँसी सिगरेट से निकलता धुआँ,</p><p>दूसरे हाथ में बियर की एक बोतल और </p><p>सामने ही कटोरे में रखी कुछ भुनी मूँगफलियाँ, </p><p><br /></p><p>झुग्गी की दूसरी ओर पाँच छह हमउम्र दोस्तों में </p><p>चलती ताश की बाजी,</p><p>नीचे बिछे कपडे पर लगातार गिरते और उठते रुपए, तमाशबीनों का शोर...</p><p>हवा में उड़ते बहते अपशब्द और निकृष्ट गालियाँ. </p><p><br /></p><div style="text-align: justify;"><span style="font-weight: normal;">एक ओर बहुधा लंबी कतारें लगवाकर </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-weight: normal;">नए - पुराने वस्त्र, </span>दाल, चीनी, <span style="font-family: inherit;">गुड़, </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: inherit;">केले, छाते का दान करने आई </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: inherit;">बड़ी-सी कारों से उतरते सभ्य, </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: inherit;">संभ्रांत, धनाढ्य दानवीर स्त्री-पुरुष , </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="text-align: left;">कहीं पुण्यार्जन की ललक, </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="text-align: left;">कहीं अधिकाधिक पाने की लालसा, </span></div><p><br /></p><p>उभरे पेट लिए सड़क पर घूमते अधनंगे बालक, </p><p>फुटपाथ से सड़क तक अतिक्रमण, </p><p>अवरुद्ध राहें, </p><p>सड़क पर लगा लंबा जाम </p><p>एक परिदृश्य आम, </p><p>यही है गरीब, गरीबी और उनका धाम... </p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p><p><br /></p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-71221750411721836022021-06-01T01:16:00.001+05:302021-06-01T01:16:17.342+05:30मनुहार - व्याघ्र छंद <p>अम्बर सजे तारे, खुला हिय का हर द्वार है </p><p>खुशियाँ सिमट आईं,बही प्यार की बयार है </p><p><br /></p><p>त्योहार की ऋतु है, </p><p>बजे ढोलकी मृदंग हैं। </p><p>प्रिय साथ दे जो तू, </p><p>उठे प्रीत की तरंग है।। </p><p>उपवन भ्रमर गूँजे , करे सोलह शृंगार है। </p><p><br /></p><p>आजा कि तेरे बिन, </p><p>बना आज मैं मलंग हूँ। </p><p>रति प्राण मेरी तू, </p><p>सुनो मैं प्रिये अनंग हूँ।। </p><p>संगम तुझी से हो,जिया की यह मनुहार है। </p><p><br /></p><p>रंगीन हर इक पल, </p><p>भरा पूरा संसार हो। </p><p>महके पुहुप द्वारे, </p><p>अजिर गूंजे किलकार हो।। </p><p>बरसे बदरिया यूँ, लगी श्रावणी फुहार है ।</p><p><br /></p><p>व्याघ्र छंद का शिल्प विधान ■ (1)</p><p><br /></p><p>वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए। मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा।</p><p>221 222</p><p>122 222 12</p><p><br /></p><p>तगण मगण</p><p>यगण मगण लघु गुरु (लगा)</p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-38309335248827633462021-05-04T00:15:00.001+05:302021-05-07T10:13:44.756+05:30ओ कान्हा मोरे <p> </p><p>ओ कान्हा मोरे (भजन) </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKRa6xxMy_IP-HkiANuiG5rbcUuVXBE2FmlZGNU99W5g7QWW7Jy1W5qiznNg8efqLn5TEcWI2s4yKpHG6MbsAD6vHYehHegBwtOLJxI_LIR1NyYoOwhosHYvFUVoe9vqKKqFLpwb6kmZ4/s1920/Screenshot_20210507-100914_WhatsApp.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1920" data-original-width="1080" height="249" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKRa6xxMy_IP-HkiANuiG5rbcUuVXBE2FmlZGNU99W5g7QWW7Jy1W5qiznNg8efqLn5TEcWI2s4yKpHG6MbsAD6vHYehHegBwtOLJxI_LIR1NyYoOwhosHYvFUVoe9vqKKqFLpwb6kmZ4/w163-h249/Screenshot_20210507-100914_WhatsApp.jpg" width="163" /></a></div><br /><p></p><p><br /></p><p>ओ कान्हा मोरे, बंसी फिर से बजा दो। </p><p>तुम्हरे दरस को प्यासे नैना, फिर से दरस दिखा दो।। </p><p><br /></p><p><br /></p><p>तुम बिन मन मेरा, लागे कहीं न अब। </p><p>तुमसे दूरी, जाए सही न अब ।। </p><p>रिश्ते- नाते , रूठ गए सब। </p><p>कैसे बिताऊँ, दिन- रैना अब।। </p><p>आकर तुम ही बता दो । </p><p>ओ कान्हा मोरे, बंसी फिर से बजा दो।। </p><p><br /></p><p>तुमको अपना, सबकुछ माना। </p><p>मन उजियारा, भर दो कान्हा।। </p><p>जाऊँ यहाँ या, उत मैं जाऊँ। </p><p>धर्म - अधर्म कुछ, समझ न पाऊँ।। </p><p>गीता फिर से सुना दो। </p><p>ओ कान्हा मोरे, बंसी फिर से बजा दो।। </p><p><br /></p><p>मोर मुकुट, पीताम्बर धारी। </p><p>अंतिम आशा, तुम हो हमारी।। </p><p>है छवि तुम्हरी, अति मनभावन। </p><p>चरण में तुम्हारे, पतझड़ - सावन ।। </p><p>प्रेम की बरखा करा दो। </p><p>ओ कान्हा मोरे, बंसी फिर से बजा दो।। </p><p><br /></p><p><br /></p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-57100254697580710652021-04-30T21:56:00.002+05:302021-04-30T21:56:55.819+05:30टूटी जब आशा की डोरी<p> नवगीत:टूटी जब आशा की डोरी</p><p><br /></p><p>टूटी जब आशा की डोरी,बढ़ते कदम उठाते हाला।</p><p>काली तमस गली को छाने, ढूँढे कोई नया उजाला।।</p><p><br /></p><p>जकड़ निराशा के बंधन में </p><p>छवि अपनी धूमिल करते हैं।</p><p>कर्मों को भूले बैठे जो,</p><p>वे कब ईश्वर से डरते हैं।।</p><p>सूझे उचित और ना अनुचित </p><p>बढ़ती जब आँतों की ज्वाला।</p><p><br /></p><p>भ्रम के अंधकूप में भटके,</p><p>जाने कैसी ये विपदा है</p><p>आत्मतुष्टि की गहन पिपासा </p><p>बड़ी तात्क्षणिक ही सुखदा है</p><p>शब्दों की गरिमा जाने ना</p><p>व्यवहार हुआ है बेताला </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>सुधा सिंह 'व्याघ्र'</p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-41119589423331950332021-04-27T09:48:00.000+05:302021-04-27T09:48:13.836+05:30काल क्रम का फेरा<p> </p><p><br /></p><p>काल क्रम का फेरा </p><p><br /></p><p>हर साँस नम हुई है, हर आँख रोई रोई</p><p>है दौर कैसा आया, हतबुद्धि सोई सोई। </p><p><br /></p><p>अवसान का है तांडव </p><p>भयाक्रांत हर मनुज है</p><p>अनुराग है विलोपित</p><p>संशय का पसरा पुँज है </p><p>विश्वास की चिरैया, उड़ती है खोई खोई </p><p><br /></p><p><br /></p><p>चहुँदिश गरल का डेरा </p><p>है काल क्रम का फेरा </p><p>चीख़ों में सनसनाहट </p><p>बढ़ा तिमिर है घनेरा</p><p>चेहरों पे चढ़े चेहरे, मानव है कोई कोई </p><p><br /></p><p>घट आस का है फूटा </p><p>कुंठा का लगा मेला </p><p>पथभ्रष्ट हुआ मानव </p><p>किया प्रकृति से खेला </p><p>बोझिल हुई है धरणि, फिरे पाप ढोई ढोई</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-11621491177174030692021-04-03T00:09:00.001+05:302021-04-03T00:12:00.106+05:30चंचल तितली <p> नवगीत :1 चंचल तितली </p><p><br /></p><p>मतवाली वह छैल छबीली </p><p>लगती ज्यों हीरे की कनी।</p><p>डोले इत उत पुरवाई सम</p><p>राहें वह भूली अपनी । </p><p><br /></p><p><br /></p><p>चंचल चितवन रमणी बाला</p><p>स्वप्न स्वर्णिम उर सजाती</p><p>दर्पण में छवि निरख - निरख के</p><p>खूब लजाती इठलाती</p><p>ओढ़े गोरी पीत चुनरियाँ </p><p>प्रीत रंग में आज सनी </p><p><br /></p><p>उपवन खेतों खलिहानों में </p><p>हिरनी सी वो डग भरती</p><p>गौर गुलाबी सी अनुरक्ता</p><p>मन ही मन प्रिय को वरती</p><p>रानी वह तो रूप लवण की</p><p>रहती हरपल बनी ठनी ।</p><p><br /></p><p>यौवन की देहरी छूकर जब</p><p>कलियों ने ली अँगड़ाई</p><p>धरा मिलन को तरसे बादल </p><p>उमड़ घुमड़ बरखा आई </p><p>बहकी बहकी चंचल तितली </p><p>आकर्षण का केंद्र बनी </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-87881580573692963622021-03-29T23:46:00.001+05:302021-03-30T08:57:48.846+05:30मौन चिल्लाने लगा... <p> मौन चिल्लाने लगा...... (नवगीत) </p><p><br /></p><p><br /></p><p>कौन किसका मित्र है और, </p><p>कौन है किसका सगा। </p><p>वक़्त ने करवट जो बदली, </p><p>मौन चिल्लाने लगा।</p><p><br /></p><p>बाढ़ आई अश्रुओं की, </p><p>लालसा के शव बहे। </p><p>काल क्रंदन कर रहा है, </p><p>स्वप्न अंतस के ढहे ।। </p><p>है कहाँ सम्बंध वह जो, </p><p>प्रेम रस से हो पगा ।</p><p><br /></p><p>द्वेष के है मेह छाए, </p><p>तिमिर तांडव कर रहा ।</p><p>जाल छल ने भी बिछाया, </p><p>नेह सिसकी भर रहा।। </p><p>है पड़ा आँधी का चाबुक, </p><p>आस भी देती दगा। </p><p><br /></p><p>कंटकों की है दिवाली, </p><p>फूल तरुवर से झरे। </p><p>पीर ने उत्सव मनाया, </p><p>सुख हुए अतिशय परे।। </p><p>काल कवलित हुआ सवेरा, </p><p>तमस का सूरज उगा। </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-12409879259561672762021-03-19T21:43:00.000+05:302021-03-19T21:43:40.348+05:30मृत <p><br /></p><p>दफ़्न हूँ जहाँ</p><p>वहीं जी भी रही हूँ, </p><p>इन दीवारों के </p><p>आगे का जहां </p><p>बस उनके लिए है।</p><p><br /></p><p>मृत हैं ये दीवारें</p><p>या मैं ही मृत हूँ</p><p>वो हिलती नहीं </p><p>और स्थावर मैं</p><p>जिसे रेंगना मना है। </p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-42717122744709284902020-12-06T20:47:00.002+05:302020-12-06T20:47:56.900+05:30 तुम कहाँ हो भद्र??? <p> तुम कहाँ हो भद्र??? </p><p><br /></p><p>उस दिन मन निकालकर</p><p>कोरे काग़ज़ पर</p><p>बड़ी सुघड़ता से रख दिया था मैंने।</p><p>सोचा था किसी दृष्टि पड़ेगी तो</p><p>अवश्य ही मेरे मन की ओर</p><p>आकर्षित हो वह भद्र</p><p>उसे यथोपचार देकर</p><p>अपने स्नेह धर्म का</p><p>निर्वहन करेगा।</p><p>पल बीते, क्षण बीते,</p><p>बीती घड़ियाँ और साल।</p><p>मन बाट जोहता रहा किन्तु</p><p>भद्र के पद चिह्न भी लक्षित नहीं हुए ।</p><p>(भद्र यथा संभव काल्पनिक पात्र है।)</p><p>मन पर धूल की परत चढ़ती रही</p><p>और मन अब अत्यंत मलिन,</p><p>कठोर और कलुषित हो चुका है।</p><p><br /></p><p>#@sudha singh</p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-53164565818823576632020-11-01T23:28:00.003+05:302021-05-15T16:30:26.146+05:30जी करता है... नवगीत <p> </p><p><br /></p><p>जी करता है बनकर तितली </p><p>उच्च गगन में उड़ जाऊँ </p><p>बादल को कालीन बना कर </p><p>सैर चांद की कर आऊँ </p><p><br /></p><p>दूषित जग की हवा हुई है </p><p>विष ने पाँव पसारे हैं </p><p>अँधियारे की काली छाया </p><p>घर को सुबह बुहारे है </p><p><br /></p><p>तमस रात्रि को सह न सकूँ अब </p><p>उजियारे से मिल आऊँ </p><p>बादल को कालीन बना कर </p><p>सैर चांद की कर आऊँ </p><p><br /></p><p>अपने मग के अवरोधों को</p><p>ठोकर मार गिराऊँगी</p><p>शक्ति शालिनी दुर्गा हूँ मैं </p><p>चंडी भी बन जाऊँगी </p><p><br /></p><p>इसकी उसकी बात सुनूँ ना</p><p>मस्ती में बहती जाऊँ </p><p>बादल को कालीन बना कर </p><p>सैर चांद की कर आऊँ </p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-39277468902969733022020-10-31T00:18:00.001+05:302020-11-01T23:49:00.715+05:30भूल जाते हो तुम <p> भूल जाते हो तुम कि </p><p>एक अर्से से तुम्हारा साथ</p><p>केवल मैंने दिया है</p><p>जब जब तुम उदास होते </p><p>मैं ही तुम्हारे पास होती </p><p>तुम अपने हर वायदे में असफ़ल रहे</p><p>और मैंने अपने हक की </p><p>शिकायतें कीं किन्तु </p><p>उन वायदों के पूरा होने का इंतज़ार भी किया </p><p>और आज भी इंतज़ार में ही हूँ </p><p> फिर भी तुम अक्सर </p><p>ये एहसास दिला ही देते हो </p><p> कि तुम्हारे लिए मैं उतनी महत्वपूर्ण नहीं </p><p>जितने वे हैं, जो तुम्हारे साथ कभी खड़े नहीं रहे </p><p> क्यों तुम ये भूल जाते हो कि </p><p>जीवन साथी जीवन भर </p><p>साथ निभाने के लिए होता है </p><p>खोखले वायदे करके </p><p>जीवन पर्यंत भरमाने के लिए नहीं. </p><p> फिर भी इंतज़ार करूँगी मैं, तब तक, </p><p>जब तक तुम्हारा चित्त </p><p>यह गवाही न देने लगे </p><p>कि तुमने मेरे जीवन में मेरे </p><p>साथी के रूप में प्रवेश किया है</p><p>और तुम्हें अपने कर्तव्यों का पालन </p><p>अब शुरू कर देना चाहिए </p><p> </p><p><br /></p><p> </p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-43562715657879217562020-10-30T16:01:00.001+05:302023-12-26T13:42:05.510+05:30इस गगन से परे <p> गीत :इस गगन से परे (10,12)</p><p><br /></p><p>इस गगन से परे, </p><p>है मेरा एक गगन </p><p>झूमते ख्वाब हैं </p><p>नाचे चित्त हो मगन </p><p>1</p><p>अपनी पीड़ा को </p><p>खुद से परे कर दिया </p><p>दीप उम्मीद का </p><p>देहरी पर धर दिया </p><p>अब धधकती नहीं </p><p>मेरे चित्त में अगन ...इस गगन से... </p><p>2</p><p>प्यारी खुशियों से </p><p>वो जगमगाता सदा </p><p>चंदा तारों से </p><p>हरदम रहे जो लदा </p><p>नाचती कौमुदी </p><p>होता मन का रंजन .... इस गगन से...</p><p>3</p><p>हुआ उज्ज्वल धवल </p><p>मेरे मन का प्रकोष्ठ </p><p>गाल पर लालिमा </p><p>मुस्कुराते हैं ओष्ठ</p><p>हर्ष से झूमता </p><p>फिर से मेरा तन मन.... इस गगन से...</p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-49988927165301683492020-10-23T23:51:00.003+05:302021-06-28T23:31:26.716+05:30सुनो बेटियों <p> सुनो बेटियों जौहर में तुम </p><p>कब तक प्राण गँवाओगी। </p><p>हावी होगा खिलजी वंशज</p><p>जब तक तुम घबराओगी।। </p><p><br /></p><p>रहना छोड़ो अवगुंठन में </p><p>हाथों में तलवार धरो। </p><p>चीर दो तुम शत्रु का सीना </p><p>पीछे से मत वार करो।। </p><p>डैनों में साहस भर लोगी </p><p>तुम तब ही उड़ पाओगी। हावी.... </p><p><br /></p><p>दुर्गा हो तुम शक्ति स्वरूपा</p><p>महिषासुर संहार करो। </p><p>दुर्बलताएँ त्यागो अपनी</p><p>हर विपदा को पार करो।। </p><p>यूँ कब तक अबला बनकर तुम </p><p>घुट घुट जीती जाओगी। हावी... </p><p><br /></p><p>अपनी क्षमता को पहचानो</p><p>पद दलिता बन क्यों जीना। </p><p>दूषित नजरों से निकला जो </p><p>विष अपमान का क्यों पीना।। </p><p>कब तक लोक लाज में पड़कर </p><p>खुद को ही भरमाओगी। हावी... </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-47868658867681543462020-10-08T00:40:00.002+05:302021-05-10T01:13:35.973+05:30लबादा <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi-nkmrLPlkOOeDpJ2YNsGHH859278AeER1RdEIK9It3O0lrzYl4oGviAvV5oJ0QXQZpn87bz088vbKVTKUfymBst_qZQbOxbUQjh_jj8XsK8zUG7qE3O3GKmSzEuBhN4ZoawV2g-mj45Q/s1080/20201008_003907.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="794" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi-nkmrLPlkOOeDpJ2YNsGHH859278AeER1RdEIK9It3O0lrzYl4oGviAvV5oJ0QXQZpn87bz088vbKVTKUfymBst_qZQbOxbUQjh_jj8XsK8zUG7qE3O3GKmSzEuBhN4ZoawV2g-mj45Q/s320/20201008_003907.jpg" width="320" /></a></div><br /> <p></p><p>अपना भारी - भरकम </p><p>लबादा उतारकर</p><p>मेरे फ़ुरसत के पलों में </p><p>जब तब बेकल- सा </p><p>मेरे अंतस की </p><p>रिसती पीर लिए</p><p>आ धमकता है मेरा किरदार</p><p>और प्रत्यक्ष हो मुझसे </p><p>टोकता है मुझे</p><p>कि तुझे तलाश रहा हूँ</p><p>एक अन्तराल से, </p><p>मानो बीते हो युग कई </p><p>कि कभी मिल जा </p><p>मुझे भी तू,</p><p>तू बनकर </p><p>वरना खो जाएगा </p><p>उस भीड़ में जो</p><p>जो तेरे लिए नहीं बनी...</p><p>और </p><p>वर्षों से जिसे मैं हर क्षण </p><p>दुत्कारता आया हूँ </p><p>कि दुनिया को भाता नहीं</p><p>तेरा सत्य स्वरूप </p><p>तू ओढ़े रह वह लबादा वरना </p><p>खो जाएगी तेरी पहचान </p><p>स्मरण रहे कि </p><p>तुझे लोग उसी आडंबर में </p><p>देखने के आदी हैं </p><p>अनभिज्ञ है तू </p><p>कि असत्य ही तो सदा </p><p>बलशाली रहा है </p><p>फिर तू क्यों</p><p>मुझे दुर्बल बनाने को आतुर है </p><p>यह विभ्रम है, </p><p>यह मरीचिका है </p><p>ज्ञात है मुझे</p><p>किन्तु यही तो </p><p>उनके और मेरे </p><p>सौख्य का पोषण है </p><p>और यही जीवनपर्यंत उन्हें</p><p>मेरी ओर लालायित करता है </p><p>चल ओढ़ ले पुनः </p><p>अपना यह सुनहरा लबादा </p><p>कि तेरा विकृत रूप कहीं </p><p>परिलक्षित न हो जाए। </p><p> </p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-82222420408642708422020-09-13T21:46:00.000+05:302020-09-13T21:46:25.510+05:30शिव जी की स्तुति ( भजन) <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI_aJpn3P5pa7ECgD18wEMPxTZLHerrYBGE1kvhmE2sp4KE_f96PGl2WgpJzwaeB5HfguW-iMmkOW2qYQ2JNR0Du5L780IDSUuDj1IU3hyphenhyphenLuMnXTQs0GQ5lL1SfVOdn0KcgyIBYKKwJzE/s946/20200913_214128.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="710" data-original-width="946" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI_aJpn3P5pa7ECgD18wEMPxTZLHerrYBGE1kvhmE2sp4KE_f96PGl2WgpJzwaeB5HfguW-iMmkOW2qYQ2JNR0Du5L780IDSUuDj1IU3hyphenhyphenLuMnXTQs0GQ5lL1SfVOdn0KcgyIBYKKwJzE/s320/20200913_214128.jpg" width="320" /></a></div><br />शंकर भज लो जी, <p></p><p>हाँ जी शंकर भज लो जी </p><p>पूजन कर लो जी </p><p>हाँ जी, शंकर भज लो जी </p><p><br /></p><p>शिवजी ही आराध्य हमारे</p><p>हम जीते हैं उनके सहारे </p><p>पिनाक धारी, डमरूवाले </p><p>शशांक शेखर, हैं रखवाले </p><p> सुमिरन कर लो जी </p><p>(टेक :शंकर भज लो जी) </p><p><br /></p><p>भोले न चाहे चांदी सोना</p><p>उर में रखना भक्ति का कोना</p><p>दिल से जो एक बार पुकारें </p><p>बाबा हरेंगे कष्ट हमारे </p><p>आरती गा लो जी (टेक :शंकर भज लो जी) </p><p><br /></p><p>बेल पत्र से खुश हो जाएँ </p><p>चलो धतूरा भांग चढ़ाएँ</p><p>प्रेम भजन से उन को मना लो </p><p>जो कुछ चाहो शम्भु से पा लो </p><p>वंदन कर लो जी (टेक :शंकर भज लो जी) </p><p><br /></p><p><br /></p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7865109254938979960.post-16682188378463294172020-09-10T00:54:00.002+05:302020-09-10T00:54:15.988+05:30गणपति स्तुति :दोहे <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEho0FQxCbqn4RvKDWYdIhol47Naq-J6IKEkV4oSjBYd9QO_n-jfssAgGZQma3wJ7a4xEEikoKEcVZ8y-1w1itTVDu2iY1PXlP1W4sThgmD8ZRXzG0UR8MdTBjxWA5ODq0qNMQ8jrjQY0ho/s1024/IMG-20200822-WA0026.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1024" data-original-width="725" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEho0FQxCbqn4RvKDWYdIhol47Naq-J6IKEkV4oSjBYd9QO_n-jfssAgGZQma3wJ7a4xEEikoKEcVZ8y-1w1itTVDu2iY1PXlP1W4sThgmD8ZRXzG0UR8MdTBjxWA5ODq0qNMQ8jrjQY0ho/s320/IMG-20200822-WA0026.jpg" /></a></div><p><br /></p><p>1:</p><p>यही मनोरथ देव है, रखिए हम पर हाथ। </p><p>सुखकर्ता सुख दीजिए , तुम्हें नवाऊँ माथ।। </p><p><br /></p><p> 2:</p><p>प्रथम पूज्य गणराज जी, पूर्ण कीजिए काज।</p><p>सकल मनोरथ सुफल हों, विघ्न न आए आज।।</p><p><br /></p><p> 3:</p><p>वक्रतुण्ड हे गजवदन , एकदंत भगवान </p><p>आश्रय में निज लीजिए, बालक मैं अनजान। </p><p>4:</p><p>रिद्धि-सिद्धि दायी तुम्हीं, दो शुभता का दान </p><p>ज्ञान विशारद ईश हे , प्रज्ञा दो वरदान।। </p><p> </p><p><br /></p><p>5:</p><p>हे देवा प्रभु विनायका, गौरी पुत्र गणेश।</p><p>प्रथम पूजता जग तुम्हें , दूर करो तुम क्लेश।। </p><p><br /></p><p>6:</p><p>मुख पर दमके है प्रभा, कंठी स्वर्णिम हार।</p><p>प्रभु विघ्न को दूर करो, हो भव सागर पार ।। </p><p><br /></p><p>7:</p><p>ज्ञानवान कर दो मुझे , माँगूँ यह वरदान।</p><p>शरण तुम्हारे मैं पड़ी, देवा कृपा निधान।। </p><p><br /></p><p>8:</p><p>दुखहर्ता रक्षक तुम्हीं, तुम हो पालन हार।,</p><p>पार करो भव मोक्षदा, तुम ही हो भर्तार ।। </p><p><br /></p><p>9:</p><p>मंगलमूर्ति कष्ट हरो, संकट में है जान ।</p><p>आयी हूँ प्रभु द्वार मैं , रखिए मेरा मान ।।</p><p> </p><p>10:</p><p>हे गणपति गणराज हे, दर्शन की है प्यास </p><p>देव मेरी पीर हरो,तुमसे ही है आस।। </p>~Sudha Singh vyaghr~http://www.blogger.com/profile/13043026454798527340noreply@blogger.com3