विधा :मनहरण घनाक्षरी
प्रेम का प्रसार हो जी, सुखी संसार हो जी।
स्नेह बीज रोपने हैं, हाथ तो बढ़ाइये। 1।
दुख दर्द सोख ले जो, वैमनस्य रोक ले जो।
छाँव दे जो तप्तों को, बीज वो लगाइए। 2।
प्रेम का हो खाद पानी, प्रेम भरी मीठी बानी ।
श्रेष्ठ बीज धरती से, आप उपजाइये ।3।
जो भी हम बोएँगे जी, वही हम काटेंगे भी।
सोच के विचार के ही, कदम बढ़ाइये। 4।
सुधा सिंह 'व्याघ्र'