जी करता है बनकर तितली
उच्च गगन में उड़ जाऊँ
बादल को कालीन बना कर
सैर चांद की कर आऊँ
दूषित जग की हवा हुई है
विष ने पाँव पसारे हैं
अँधियारे की काली छाया
घर को सुबह बुहारे है
तमस रात्रि को सह न सकूँ अब
उजियारे से मिल आऊँ
बादल को कालीन बना कर
सैर चांद की कर आऊँ
अपने मग के अवरोधों को
ठोकर मार गिराऊँगी
शक्ति शालिनी दुर्गा हूँ मैं
चंडी भी बन जाऊँगी
इसकी उसकी बात सुनूँ ना
मस्ती में बहती जाऊँ
बादल को कालीन बना कर
सैर चांद की कर आऊँ