सुनो बेटियों जौहर में तुम
कब तक प्राण गँवाओगी।
हावी होगा खिलजी वंशज
जब तक तुम घबराओगी।।
रहना छोड़ो अवगुंठन में
हाथों में तलवार धरो।
चीर दो तुम शत्रु का सीना
पीछे से मत वार करो।।
डैनों में साहस भर लोगी
तुम तब ही उड़ पाओगी। हावी....
दुर्गा हो तुम शक्ति स्वरूपा
महिषासुर संहार करो।
दुर्बलताएँ त्यागो अपनी
हर विपदा को पार करो।।
यूँ कब तक अबला बनकर तुम
घुट घुट जीती जाओगी। हावी...
अपनी क्षमता को पहचानो
पद दलिता बन क्यों जीना।
दूषित नजरों से निकला जो
विष अपमान का क्यों पीना।।
कब तक लोक लाज में पड़कर
खुद को ही भरमाओगी। हावी...
बेटियां अब कमजोर रूप धारण नहीं करती।
जवाब देंहटाएंआपकी ये कविता बेटियों में उत्साह भरती है।
बहुत सुंदर रचना।
मेरे नए ब्लॉग पर इस बार की पोस्ट साहित्यिक रचना से सम्बंधित हैं पुलिस के सिपाही से by पाश