मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

तन्हाई





तन्हाई...नहीं होती मूक!
होती है मुखर ,
अत्यंत प्रखर!
उसकी अपनी भाषा है
अपनी बोली है!
जन्मती है जिसके भी भीतर
ललकारती है उसे!
करती है आर्तनाद
चीखती है चिल्लाती है!
करती है यलगार
शोर मचाती ,लाती है झंझावात
अंतरद्वंद करती
रहती झिंझोड़ती हर पल !
और करती है उपहृत
व्याकुलता, वेदना, लाचारी और तड़प !
बनाती है धीरे -धीरे उसे अपना ग्रास!
ज्यों लीलता है सर्प,
अपने शिकार को शनै शनै!
ओढाती है मुस्कुराहट का आन्चल
लोगों को वह रूप दिखाने को!
जो उसका अपना नहीं,
बल्कि छीना गया है
अपने ही पोषक से!

सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

रुसवाई




 आंसुओं को कैद
कर लो मेरे 
 कहीं बहकर ये
फिर कोई राज न खोल दे
 मेरी रुसवाई  में इनका भी बड़ा हाथ है. 


शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

प्रेम रस




तुम कान्हा बन आओ तो नवनीत खिलाएँ
भोले शंकर बन जाओ तो भंग - धतूर चढ़ाएं 
 पर
दिल तो प्रियवर के प्रेम से परिपूरित है.
थोड़ा भक्ति रस ले आओ तो कुछ बात बने.

सुधा सिंह 🦋 

क्षणिकाएं





1:पहचान

यूँ तो उनसे हमारी जान पहचान
बरसों की है पर....
फिर लगता है कि क्या
उन्हें सचमुच जानते हैं हम

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2:जिन्दगी

जिन्दगी जीने की चाह में
जिन्दगी कट गयी
पर जिन्दगी जीई न गई

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3:पल

हमने पल - पल
बेसब्री से जिनकी
राह तकी
वो पल तो
हमसे बिना मिले
ही चले गए

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4:ऊँचाई

ऊँचाई से डर लगता है
शायद इसीलिये
आज तक मेरे पाँव
जमीं पर हैं

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5:कलयुग...

यूँ तो हीरे  की परख,
केवल एक जौहरी  ही कर सकता है
पर
आजकल  तो जौहरी  भी,
नकली की चमक पर फिदा हैं
कलयुग इसे  यूँ ही तो नहीं कहते...

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

प्रश्न

उग आते हैं कुछ प्रश्न ऐसे
जेहन की जमीन पर
जैसे कुकुरमुत्ते
और खींच लेते हैं
सारी उर्वरता उस भूमि की
जो थी बहुत शक्तिशाली
जिसकी उपज थी एकदम आला
पर जब उग आते हैं
ऐसे कुकुरमुत्ते
जिनकी जरुरत नहीं थी किसी को भी
जो सूरज की थोडी सी उष्मा में
दम तोड देते हैं।
पर होते हैं शातिर परजीवी
खुद फलते हैं फूलते हैं
पर जिसपर और जहाँ पर भी पलते हैं ये
कर देते हैं उसे ही शक्तिहीन
न थी जिसकी आवश्यक्ता उस भूमि को
और न ही किसी और को
फिर भी उग आते हैं ये प्रश्न
खर पतवार की तरह
अपना अस्तित्व साबित करने
कुछ कुकुरमुत्ते होते हैं जहरीले
इन्हें  महत्व दिया जरा भी
तो हाथ लगती है
मात्र निराशा
होता है अफसोस
धकेल देता है ये
असमंजस के भंवर में उसे
जिसके ऊपर
 इसने पाया था आसरा
बढ़ाई थी अपनी शक्ति
और काबू पा लेता है उस पर
जो फँसा इनके कुचक्र में
घेर लेते हैं जिसे ये प्रश्न
छीन लेते हैं चैन और सुकून
छोड़ देते हैं उसे
बनाके शक्तिहीन ...
आखिर क्यों उगते हैं ये प्रश्न?

सुधा सिंह🦋