कितना बेहतरीन था भूत मेरा
रहते थे हम सब साथ सदा.
न कोई अणु बम
न परमाणु बम.
न ईर्ष्या न द्वेष
न ही मन में कोई रोष.
न थी कोई टेक्नोलॉजी
न ही सीमाओं पर फौजी.
न ये ऊंँची- नीची जातियाँ
ये तरक्की नहीं,
ये हैं तरक्की की घिनौनी निशानियांँ.
गुम है कहीं,
प्रकृति माँ की गोद का वो आनंद
झरने और नदियाँ, जो बहते मंद मंद.
चिड़ियों की चहक
और फूलों की महक.
काश पाषाण युग में ही
अपनी इस तरक्की का
कलुषित स्वरूप जान पाता.
तो आज अपनी इस अनभिज्ञता
पर न पछताता.
क्या पता था
कि ऐसा युग भी आएगा
जब व्यक्ति स्वयं को
इतना एकाकी पाएगा.
खुद को अनगिन
परतों के नीचे छुपाएगा
और चेहरे पर ढेरों चेहरे लगाएगा ....
प्रकृति माँ की गोद का वो आनंद
झरने और नदियाँ, जो बहते मंद मंद.
चिड़ियों की चहक
और फूलों की महक.
काश पाषाण युग में ही
अपनी इस तरक्की का
कलुषित स्वरूप जान पाता.
तो आज अपनी इस अनभिज्ञता
पर न पछताता.
क्या पता था
कि ऐसा युग भी आएगा
जब व्यक्ति स्वयं को
इतना एकाकी पाएगा.
खुद को अनगिन
परतों के नीचे छुपाएगा
और चेहरे पर ढेरों चेहरे लगाएगा ....
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2019) को "कुछ सीख लेना चाहिए" (चर्चा अंक-3331) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी 🙏 🙏
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनुराधा जी 🙏 🙏
हटाएंमुखरित मौन में स्थान देने के लिए ढेरों शुक्रिया दी 🙏 🙏
जवाब देंहटाएंआवश्यक सूचना :
जवाब देंहटाएंसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html