इत्र सा महकता नाम तेरा,
सुरभित समीर कर जाता है
कितनी है कशिश मोहब्बत में,
मन बेखुद सा हो जाता है
दिल में एक टीस सी जगती है
जब नाम तुम्हारा आता है
विरहा की अग्नि जलाती है
और तृषित हृदय अकुलाता है
जब अधर तुम्हारे हास करे
कांकर पाथर मुस्काता है
उठती जब तुम्हरी बात पिया,
तन कस्तूरी हो जाता है
तुम घुल जाते हो अंग - अंग में ,
तब गात नहीं रह जाता है
कण - कण परिमंडल मुदित हो
सब एकाकार हो जाता है
सुरभित समीर कर जाता है
कितनी है कशिश मोहब्बत में,
मन बेखुद सा हो जाता है
दिल में एक टीस सी जगती है
जब नाम तुम्हारा आता है
विरहा की अग्नि जलाती है
और तृषित हृदय अकुलाता है
जब अधर तुम्हारे हास करे
कांकर पाथर मुस्काता है
उठती जब तुम्हरी बात पिया,
तन कस्तूरी हो जाता है
तुम घुल जाते हो अंग - अंग में ,
तब गात नहीं रह जाता है
कण - कण परिमंडल मुदित हो
सब एकाकार हो जाता है
Nice one 👍
जवाब देंहटाएंThank you sir /madam
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार मई 21, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-05-2019) को "देश और देशभक्ति" (चर्चा अंक- 3342) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जब अधर तुम्हारे हास करे
जवाब देंहटाएंकांकर पाथर मुस्काता है
उठती जब तुम्हारी बात पिया,
तन कस्तूरी हो जाता है
बहुत ही सुंदर रचना
बहुत बहुत आभार सखी 🙏
हटाएंसराहनीय रचना ।बेहतरीन प्रस्तुति । हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएं- swaraj-karun .blogspot.com
भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति । हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया 🙏 सादर
हटाएंवाह वाह सुंदर¡अति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंतुम घुल जाते हो अंग - अंग में ,
तब गात नहीं रह जाता है
कण - कण परिमंडल मुदित हो
सब एकाकार हो जाता है।
सच प्रेम में दो कहां रह पाते वाह्ह्ह ।
बहुत बहुत शुक्रिया दी 🙏
हटाएंशुक्रिया अमित जी 🙏 🙏 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय 🙏 🙏 🙏
जवाब देंहटाएंGood poem
जवाब देंहटाएंLike to read