रविवार, 3 मई 2020

मजदूरनी

विधा~मनहरण घनाक्षरी
विषय~चित्र चिंतन
शीर्षक~मजदूरनी

मेहनत मजदूरी, 
भाग्य लिखी मज़बूरी।
रात दिन खट के भी, 
मान नहीं पाती है।1।

सिर पर छत नहीं,
बीते रात दिन कहीं।
ईंट गारा ढोती घर, 
दूजे का बनाती है।2।


हौंसले की लिए ढाल,
अँचरा में बाँधे लाल।
फांके करती है कभी, 
रूखा सूखा खाती है।3।


तकदीर की है मारी,
खाए पति की भी गारी।
दुख दर्द सहके भी,
फ़र्ज वो निभाती है ।4।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 04 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरी रचना को मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार यशोदा दी🙏🙏

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  2. मार्मिक अभिव्यक्ति बहना
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05 -5 -2020 ) को "कर दिया क्या आपने" (चर्चा अंक 3692) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को चर्चा अंक में सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत आभार आ.🙏🙏

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