बुधवार, 6 मई 2020

नागफ़नी

नागफ़नी!!!
सरल नहीं है तुमसे प्यार करना,
कुपोषित ,बंजर ,
ऊसर जमीन की उत्पन्न तुम
और तुम्हारी उत्पन्न भी
खुरदुरी, काँटोभरी।

फूल एकाध उग आते हैं
यदा -कदा तुम पर भी।
शायद यही वह क्षण होता है...
जब तुम में संचार होता है
स्नेही स्निग्धता का,
और तुम कुछ क्षणों के लिए
आकर्षित करते हो सबको।

किंतु फिर आते ही क़रीब
चुभ जाते हो शूल बन हथेलियों में
कर देते हो छलनी
दिल का हर कोना।
छोड़ देते हो
भद्दा- सा एक निशान,
दामन को पल -पल
आँसुओं से भिगोते हुए,
दूर कर देते हो स्वयं को
उनसे ,जो तुम्हें ,
अपने जीवन का
अंग मानने लगे थे।

मेरे नागफ़नी !!
क्या तुम भी
अनुराग के बदले अनुराग
नहीं दे सकते??

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 06 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरी रचना को मंच प्रदान करने के लिए धन्यवाद यशोदा जी🙏🙏

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  2. नागफनी है न दी उसकी फितरत तो चुभाना ही है उसे वही आता है किसी भी कोमल स्पर्श के प्रत्योत्तर में भी।
    -----
    बहुत सुंदर सृजन दी।

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    1. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया श्वेता ।

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  3. बेचारा नागफ़नी भी अगर अनुराग के बदले में अनुराग देने लग जाए तो लोगबाग उसको भी नोंच-चोथ के उसकी जीवन-लीला को संक्षिप्त कर के किसी बेजान मूर्त्ति के ऊपर डाल देंगे .. शायद ... क़ुदरत ने उसे खुद की हिफ़ाजत के लिए ही शायद ये काँटे बख़्शे होंगे
    फिर .. बेचारा विपरीत परिस्तिथियों वाले तपती रेत में भी कुछ फूलों के रूप में खुद को मुस्कुरा पाता है तो बहुत बड़ी बात है शायद ... एक सकारात्मक सन्देश ही देता है ना ...
    वैसे भी पुरखों का ज्ञान है कि सुंदरता देखने के लिए होती है, स्पर्श के लिए नही ...
    ( विचार/रचना के विपरीत प्रतिक्रिया के लिए क्षमाप्रार्थी ...)

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    1. सुबोध जी आपके विचारों का स्वागत हैं आप कदापि गलत नहीं हैं इसलिए क्षमा याचना न करें। सबकी अपनी अपनी मान्यताएँ होती हैं जो आपको बेजान मूर्ति दिखती है उसमें हमें हमारे ईश नजर आते हैं। और जहाँ तक रही अनुराग देने लेने की बात तो सभी चाहते हैं कि उन्हें सबसे प्रेम अनुराग मिले ।उसमें उनकी इच्छा उनका स्वार्थ निहित होता है। नागफ़नी की भी अपनी इच्छा अपना स्वार्थ है स्वरक्षा हेतु वह भी काँटों से घिर जाता है। तपती रेत में भी वह अपने आपको संजोये समेटे निरंतर मुस्कुराने का प्रयास करता
      रहता है।

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    2. अलग-अलग मान्यताओं की वजह से ही दुनिया इंद्रधनुषी है .. शायद ...
      नजर आते ईश् और आस्था वाली भावना को मान मैं भी देता हूँ। मेरी धर्मपत्नी की भी यही आस्था वाली ही भावना है।
      मैं अपनी धर्मपत्नी से भी और हर उन सभी आस्था वालों से एक ही सवाल पूछता हूँ कि - "निर्भया" जैसी होती दुर्दशा/दुर्घटना के वक्त ये ईश् कहाँ होते हैं भला ???
      हाँ , एक बात और कि आस्था वाले जिन फूलों की अर्पण कहते हैं ईश् के लिए, मेरा मानना है कि वो फूलों की हत्या होती है।

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  4. मेरे नागफ़नी !!
    क्या तुम भी
    अनुराग के बदले अनुराग
    नहीं दे सकते??
    बहुत ही सुन्दर नागफनी पर मानवीकरण आधारित सृजन
    सही कहा जिनकी फितरत ही कंटीली होती है वे अनुराग के बदले भी चुभते ही हैं अक्सर कुछ दिखने में मासूम होते हैं पर वे नागफनी के पुष्प से
    होते है जिनसे सावधान ही रहना चाहिए अनुराग की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए
    बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन।

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  5. वाह! बहुत ख़ूब!
    नागफनी के माध्यम से अनूठे बिम्बों में लिपटी सार्थक व्यंजना.
    सुंदर रचना.
    सादर.

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    1. सार्थक सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए अनेकानेक धन्यवाद बहना

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