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मंगलवार, 1 जनवरी 2019

ओ धृतराष्ट्र

ओ धृतराष्ट्र

ओ धृतराष्ट्र,
क्यों तुझे शर्म नहीं आई?
घर की आबरू से जब
सारेआम खिलवाड़ हो रहा था..
जब तथाकथित अपने ही
अपनों को दांव पर लगा रहे थे.. "
तो तू मौन खड़ा
उस अत्याचारी दुर्योधन
का साथ क्यों देता रहा?
क्यों तूने यह नहीं समझा...
कि इतिहास में तेरा नाम
काले अक्षरों में
अंकित किया जाएगा..
माना कि तू विकलांग था
तू असहाय था पर
बुद्धि तो काम कर रही थी न!!!!
फिर क्यों????
क्यों पुत्रमोह में तूने अपनी
समझदारी को भी उसके चरणों में
समर्पित कर दिया था.

महाभारत कभी न होती, धृतराष्ट्र!!!!
अगर तू न होता..
होता अगर सही तू,
तो सुयोधन
कभी दुर्योधन न बनता....
तेरे कर्मों की सजा 
दुर्योधन न भुगतता....
महाभारत का असली गुनाहगार
दुर्योधन नहीं, तू है...
तेरा लालच, तेरी अधिकार लिप्सा
और तेरा पुत्र मोह है....
दुर्योधन तो बेचारा है
जो सदियों से
तेरे कर्मों की सजा भुगत रहा है.....
तू कालिख है, भारतवर्ष का
तू कलंक है, आर्यावर्त का.
इतिहास तुझे कभी क्षमा नहीं करेगा.....
ओ धृतराष्ट्र....

सुधा सिंह ©®