पर क्या... स्वयं से छुप पाओगे तुम
वो गलतियाँ , जो की थी
तुमने जानबूझकर ...
रह -रहकर अँधेरे कोणों से
अट्टहास करती जब
तुम्हारे समक्ष आयेंगी...
तुम्हारे हृदय को कचोटती
काले साये की तरह तुम्हें डराएंगी
कहो भाग कर तब कहाँ जाओगे तुम
एक अरसे से जिस आत्मा को
अपनी निम्न सोच से
अनवरत बिगाड़ते रहे थे
वह विद्रूपता लिए
आईने के सामने
किस तरह मुस्कुराओगे तुम
अपनी अंतर्वेदनाओं को कहीं और
क्या गिरवी रख पाओगे तुम
अनंत ब्रह्मांड में तैरते
तुम्हारे कहे शब्द जब अपना
हिसाब माँगेगे तब कौन-सा बही खाता दिखाओगे
क्या अपने शब्द से मुकर पाओगे तुम
कहो क्या स्वयं से छुप पाओगे तुम.....
दर्शन से भरी रचना।
जवाब देंहटाएंसच में ... स्वयं के मन से बड़ा आइना, न्यायाधीश, प्रत्यक्ष द्रष्टा और साथी भी कोई नहीं होता .. इंसान लाख मुखौटों वाली दोहरी ज़िन्दगी जी ले पर ख़ुद से बच कर कहाँ जा पाएगा भला ...
अनायास एक पुराना दर्शन भरा फ़िल्मी भजन याद आ गया ... तोरा मन दर्पण कहलाए, तोरा मन दर्पण कहलाए, भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए ...
मेरी रचना को विस्तार देती आपकी इस टिप्पणी के लिए हृदयतल से आभारी हूँ सुबोध जी।नमन
हटाएंगहन दर्शन क्या क्या स्वयं से छुप पाओगे तुम
जवाब देंहटाएंआइने के सामने किस तरह मस्कराओगे तुम
कुसुम जी अगर हर कोई स्वयं से यह सवाल पूछे तो कितना बेहतरीन होगा
सार्थक टिप्पणी के लिए अनेकानेक धन्यवाद ऋतु जी।नमन
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक।
जवाब देंहटाएंनमन आदरेय ।धन्यवाद।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 24 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसांध्य दैनिक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय।नमन
हटाएंबहुत सुन्दर दार्शनिक स्वरूप बिखेरती अति ऊत्तम भावों से सजी रचना।
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंनमन आदरेय🙏🙏🙏
हटाएंवाह! जीवन दर्शन पर शानदार सृजन बहना. स्वयं से कब कोई कहाँ छुप पाया है.
जवाब देंहटाएंसादर
उरतल से आभार बहना
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