शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

टूटी जब आशा की डोरी

 नवगीत:टूटी जब आशा की डोरी


टूटी जब आशा की डोरी,बढ़ते कदम उठाते हाला।

काली तमस गली को छाने, ढूँढे कोई नया उजाला।।


जकड़ निराशा के बंधन में 

छवि अपनी धूमिल करते हैं।

कर्मों को भूले बैठे जो,

वे कब ईश्वर से डरते हैं।।

सूझे उचित और ना अनुचित 

बढ़ती जब आँतों की ज्वाला।


भ्रम के अंधकूप में भटके,

जाने कैसी ये विपदा है

आत्मतुष्टि की गहन पिपासा 

बड़ी तात्क्षणिक ही सुखदा है

शब्दों की गरिमा जाने ना

व्यवहार हुआ है बेताला 




सुधा सिंह 'व्याघ्र'

मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

काल क्रम का फेरा

 


काल क्रम का फेरा 


हर साँस नम हुई है, हर आँख रोई रोई

है दौर कैसा आया, हतबुद्धि सोई सोई। 


अवसान का है तांडव 

भयाक्रांत हर मनुज है

अनुराग है विलोपित

संशय का पसरा पुँज है 

विश्वास की चिरैया, उड़ती है खोई खोई 



चहुँदिश गरल का डेरा 

है काल क्रम का फेरा 

चीख़ों में सनसनाहट 

बढ़ा तिमिर है घनेरा

चेहरों पे चढ़े चेहरे, मानव है कोई कोई 


घट आस का है फूटा 

कुंठा का लगा मेला 

पथभ्रष्ट हुआ मानव 

किया प्रकृति से खेला 

बोझिल हुई है धरणि, फिरे पाप ढोई ढोई





शनिवार, 3 अप्रैल 2021

चंचल तितली

 नवगीत :1 चंचल तितली 


मतवाली वह छैल छबीली   

लगती ज्यों हीरे की कनी।

डोले इत उत पुरवाई सम

राहें वह भूली अपनी । 



चंचल चितवन रमणी बाला

स्वप्न स्वर्णिम उर सजाती

दर्पण में छवि निरख - निरख के

खूब लजाती इठलाती

ओढ़े गोरी पीत चुनरियाँ 

प्रीत रंग में आज सनी 


उपवन खेतों खलिहानों में 

हिरनी सी वो डग भरती

गौर गुलाबी सी अनुरक्ता

मन ही मन प्रिय को वरती

रानी वह तो रूप लवण की

रहती हरपल बनी ठनी ।


यौवन की देहरी छूकर जब

कलियों ने ली अँगड़ाई

धरा मिलन को तरसे बादल 

उमड़ घुमड़ बरखा आई 

बहकी बहकी चंचल तितली 

आकर्षण का केंद्र बनी