शुक्रवार, 29 मई 2020

शिव शंकर ,हे औघड़दानी (भजन)

भजन (16,14)


शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।
भव अम्बुधि से, पार है जाना, 
अब उद्धार करो मेरा।। 

काम, क्रोध, व लोभ में जकड़ा, 
मैं   मूरख  , अज्ञानी हूँ ।।
स्वारथ का पुतला हूँ भगवन
मैं पामर अभिमानी हूं।।

भान नहीं है, सही गलत का,
करता  मैं, तेरा मेरा।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।

माया के चक्कर में उलझा 
मैंने कइयों पाप किये ।
लोगों पर नित दोष मढ़ा अरु 
कितने ही आलाप किये ।।

जनम मरण के छूटे बंधन 
मिट जाए शिव अंधेरा।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।

 मैं याचक तेरे द्वारे का 
भोले संकट दूर करो ।
क्षमा करो गलती मेरी शिव 
अवगुण मेरे चित न धरो ।।

रहना चाहूँ शरण तुम्हारी 
रुद्र बना लो तुम चेरा।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।

दुष्टों से पीड़ित यह धरती  
करती भोले त्राहिमाम ।। 
व्यथित हृदय को उसके समझो 
प्रभु लेती तुम्हारा नाम ।।

हे सोमेश्वर ,हे डमरूधर  
कष्टों ने आकर घेरा ।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।

गुरुवार, 28 मई 2020

कोरोना-

 माहिया छंद:(टप्पे 12,10,12)

कोरोना आया है
साथी सुन मेरे
अंतस घबराया है 

घबराना मत साथी
आँधी आने पर
कब डरती है बाती

ये हलकी पवन नहीं 
देख मरीजों को 
जाती अब आस रही

मत आस कभी खोना
सूरज निकलेगा
फिर काहे का रोना

बदली सी छायी है
देने दंड हमें 
कुदरत गुस्साई है

जीवन इक मेला है
दुःख छट जाएँगे
कुछ दिन का खेला है ।



बुधवार, 27 मई 2020

बीत गई पतझड़ की घड़ियाँ

नवगीत(16,14)



बीत गई पतझड़ की घड़ियाँ 
बहार ऋतु में आएगी 
पेड़ों की मुरझाई शाखें 
अब खिल खिल मुस्काएँगी 

नवकिसलय अब तमस कोण से  
अँगड़ाई जब जब लेगा
अमराई के आलिंगन में 
नवजीवन तब खेलेगा।

कोकिल भी पंचम स्वर में फिर
अपना राग सुनाएगी 
पेड़ों की मुरझाई शाखें 
अब खिल खिल मुस्काएँगी


सतगुण हो संचारित मन में 
दीप जले फिर आशा का 
तमस आँधियाँ शोर करें ना 
रोपण हो अभिलाषा का 

पुरवाई लहरा लहराकर 
गालों को छू जाएगी 
पेड़ों की मुरझाई शाखें 
अब खिल खिल मुस्काएँगी


तेरा दुख जब मेरा होगा 
मेरा दुख हो जब तेरा
जीवन में समरसता होगी 
होगा फिर सुखद सवेरा 

हरे भरे अँचरा को ओढ़े
वसुधा भी लहराएगी 
पेड़ों की मुरझाई शाखें 
अब खिल खिल मुस्काएँगी 

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

प्रलयकाल


वो निकला है अपने ,
मिशन पर किसी।
मारे जाते हैं मासूम,
संत और ऋषि।।

क्रोध की अग्नि में ,
भस्म सबको करेगा।
गेहूँ के साथ चाकी में,
घुन भी पिसेगा।।

कैद करके घरों में,
बिठाया हमें।
अपना अस्तित्व,
फिर से दिखाया हमें।।

दृष्टि उसकी मनुज पे,
हुई आज  वक्र।
निकाला है उसने ,
पुनःअपना चक्र।।

शत का अर्थ जरासंधों,
को बतला रहा है।
सबक कर्मों का फिर ,
हमको सिखला रहा है।।

नाम उसका सुदर्शन ,
अब कलि(युग) में नहीं।
उसको संतुष्टि मात्र ,
एक बलि में नहीं।।

अनगिनत प्राण,
लेकर ही अब वो थमेगा।
जीत धर्म की अधर्म ,
पर वो निश्चित करेगा।।

खेलते हम रहे ,
उसकी जागीर से।
नष्ट की प्रकृति,
अपनी तासीर से।।

रूप विकराल ले ,
मान मर्दन को वो।
हमको औकात,
अपनी दिखाएगा वो।।

कहीं अम्फान, भूकंप ,
महामारी कोरोना।
डरता हर पल मनुज ,
ढूँढे रक्षित कोई कोना।।

अहमी मानव न,
घुटनों के बल आएगा।
खूब रोयेगा , बेहद
तब पछताएगा।

स्वयं हमने प्रलय को ,
है न्योता दिया।
अपने अपनों से ,
कैसा ये बदला लिया।।

चेत ले है समय ,
कब तू संभलेगा अब।
मानव जाति खत्म होगी,
दम लेगा तब???

मंगलवार, 26 मई 2020

नौतपा:कुंडलियाँ


विधा:कुंडली/दोहा


आता है जब नौतपा ,बचकर रहना यार ।
तपे अधिक तब यह धरा, सुलगे है संसार।।

सुलगे है संसार, रोहिणी में रवि आते।
लूह चले नौ वार ,घमौरी गात जलाते।।
सुनो सुधा की बात, ठंडई हमें बचाता।
करो तृषित जल दान, नौतपा जब भी आता।।

दोहा:
ज्येष्ठ मास जब रोहिणी , सूर्य करे संचार।
 नौ दिन वसुधा पर बढ़े ,गरमी अपरंपार।।


मर्दानी नारी... दोहे


विधा:दोहा


नारी सम कोई नहीं, नारी सुख की धाम
बिन उसके घर- घर कहाँ,घर की है वह खाम(स्तंभ) ।1।

शक्ति विहीना नारि जब, लेती है कुछ ठान
अनस्तित्व फिर कुछ नहीं,  नारी बल की खान।2।

रक्तबीज के ध्वंश को,काली करती युद्ध 
अरिमर्दन करती बढ़े , जब हो नारी क्रुद्ध।3।

सहकर भारी दर्द भी, भरती शिशु में प्राण
कोई नारी सम नहीं, करती शिशु का त्राण।4।

 नारी अबला है नहीं, नारी शक्ति स्वरूप
लड़ जाती यमराज से, नारी सति का रूप।5।

 सुधा सिंह 'व्याघ्र'


सोमवार, 25 मई 2020

समय की रेत फ़िसलती हुई,



समय की रेत फ़िसलती हुई,
उम्र मेरी ये ढलती हुई,
करती है प्रश्न खड़े कई।

क्या वक्त है कि मुड़के पीछे देखें,
क्या वक्त है कि कुछ नया सीखें।
सीखा जो भी अब तलक,
कर उसको ही और बेहतर भई।
समय की रेत...

कब कद्र की मेरी तूने ,
मैंने चाहा तू मेरी बात सुने,
मन के भीतर कुछ खास बुने।
तू आया धरा पे मकसद से,
समझ निरा गलत है क्या,
और क्या है एकदम सही।
समय की रेत....

तेरे हिस्से में चंद बातें हैं।
और कुछ शेष मुलाकातें हैं।
समेटने कुछ बही खाते हैं।
अपनी रफ़्तार को बढ़ा ले तू,
है जो भी शेष उसे निबटा ले तू,
यूँ समझ के जीवन की साँझ भई।
समय की रेत....

रविवार, 24 मई 2020

क्या छुप पाओगे तुम...




छुप जाओ, हर किसी से तुम
पर क्या... स्वयं से छुप पाओगे तुम
वो गलतियाँ , जो की थी
तुमने जानबूझकर  ...
रह -रहकर अँधेरे कोणों से
अट्टहास करती जब
तुम्हारे समक्ष आयेंगी...
तुम्हारे हृदय को कचोटती
काले साये की तरह तुम्हें डराएंगी
कहो भाग कर तब कहाँ जाओगे तुम

एक अरसे से जिस आत्मा को 
अपनी निम्न सोच से 
अनवरत बिगाड़ते रहे थे
वह विद्रूपता लिए  
आईने के सामने 
किस तरह मुस्कुराओगे तुम
अपनी अंतर्वेदनाओं को कहीं और
क्या गिरवी रख पाओगे तुम


अनंत ब्रह्मांड में तैरते
तुम्हारे कहे शब्द जब अपना
हिसाब माँगेगे तब कौन-सा बही खाता दिखाओगे
क्या अपने शब्द से मुकर पाओगे तुम
कहो क्या स्वयं से छुप पाओगे तुम.....

मंगलवार, 19 मई 2020

अंतर के पट खोल...



नवगीत: 

अंतर के पट खोल (16 ,11) 

       
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अंतर के पट खोल तभी तो
                   मन होवे उजियार।
मानव योनि मिली है हमको 
                इसे न कर बेकार  ।।

अंतस में हो अँधियारा जब, 
             दिखता सबकुछ स्याह ।
मन अधीर हो अकुलाए अरु ,
                   दिखे नहीं तब राह।।

दुर्गम जब भी लगे मार्ग तब ,
                       शत्रु लगे संसार ।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                     मन होवे उजियार। ।

जीवन में संघर्ष भरा है,
                     इसका ना पर्याय ।
उद्यम ही कुंजी है इसकी ,
                    दूजा नहीं उपाय।।

घड़ी परीक्षण की जब आए ,
                      मान न मनवा हार।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                      मन होवे उजियार।।

अपनों का जब साथ मिले तो,
                        जीवन हो रंगीन।
दुख की बदरी भी छँट जाए ,
                     समाँ न हो गमगीन।।

निज हित के भावों को त्यागें,
                   कर लें कुछ उपकार।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                      मन होवे उजियार।।

सुधा सिंह 'व्याघ्र✍️





सोमवार, 18 मई 2020

सामाजिक संचार

 गीत :(16,14)


सामाजिक संचार तंत्र ने ,
सबको अपना दास किया ।
ज्ञानवान मानव ने तब से, 
खुद को कारावास दिया ।।

कक्ष रोते, रोती रसोई ,  
स्वच्छता का भान नहीं ।
उनको बनना टिक -टॉक  स्टार ,
घर में बिलकुल ध्यान नहीं ।। 
इंस्टाग्राम सजाने खातिर, 
पत्नी ने अवकाश लिया।

मुखपोथी, टिक टॉक, लाइकी ,
अब तो घर में राज करें  ।
खिंचवाकर सुंदर तस्वीर , 
हम तो खुद पर नाज करें।। 
कम लाइक जब मिले देखकर, 
धक -धक , धक -धक करे जिया ।

स्वास्थ्य की अब नहीं है चिन्ता ,
तन को देखो स्थूल भए।
आभासी दुनिया से जुड़कर, 
रिश्ते -नाते भूल गए ।।
गोदी में संतान की जगह, 
लैपटॉप ने स्थान लिया ।।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

शनिवार, 16 मई 2020

हे कोरोना वीरों...


हे कोरोना वीरों, 
तुम्हें शत- शत प्रणाम ।
दाँव लगाकर प्राणों को , 
करते हो तुम काम।।

कड़ी धूप में स्वेद से तर ,
वर्दी का तुम मान हो रखते।
घुप्प अँधेरी रातों में भी  ,
अपने फ़र्ज का भान हो रखते।।
तुम रखते हो अनुशासन का,
खयाल आठों याम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।।

अस्पताल के खुले कक्ष में,
शौच किया बेशरमों ने।।
थूका तुम पर,पत्थर मारे,
धृष्ट हुए बेरहमों ने।
फिर भी अपने धर्म को तुमने ,
दिया सदा अंजाम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।।

स्नेही जनों को पीछे छोड़
तुम अपना कर्तव्य निभाते।
खाद्य अन्न कहीं कम न पड़े,
वाहन  दिन -रात चलाते।।
राष्ट्र की खातिर पीछे छोड़ा,
तुमने अपना धाम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।

विपदा ऎसी देश में आई,
हर मन है घबराया -सा।
उहापोह में बीत रहे दिन,
हर चेहरा मुरझाया -सा।।
ऐसे संकट काल में खबरें,
पहुँचाते तुम सुबह- शाम।

हे कोरोना वीरों,
तुम्हें शत शत प्रणाम।।


गुरुवार, 14 मई 2020

बोल चिड़िया



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बोल चिड़िया,
अब बेधड़क बोल।
अब तेरी बारी आई है।
दिल के सारे जख्म खोल।

बोल चिड़िया,अब बेधड़क बोल।

तुझे पिंजरे में बंद करनेवाला 
अब बचा कौन है!!!!
तेरी स्वर लहरियों को रोकने वाला 
तो अब स्वयं ही मौन है!!

अब जी भरकर चहक।
सकल विश्व पर ,अब तेरा ही प्रभुत्व है...
जहाँ चाहे, वहाँ फुदक।।

मेरी भोली चिड़िया,तेरी चीत्कारों
का हिसाब इतना ज्यादा है 
कि प्रकृति अब अहमी मनुष्य को रक्तिम 
अश्रुओं का स्वाद चखाने पर आमादा है               
मन में अब कोई भय न रख,
तू निडर होकर बहक।
अब तू आज़ाद है ,
तुझे कैद करनेवाला बर्बाद है।।

हे चिड़िया, मुक्त कंठ से,  
प्रकृति का धन्यवाद कर।
अपने कलरव -किलोल से 
फिर मेरा जहाँ आबाद कर।।

नदिया, झरने, 
पहाड़ों ,झुरमुटों से निकल 
अब बस्तियों में भी बोल

मेरे कानों में फिर से 
अपना मधु रस घोल 
अब ख़ुश होकर बोल

चिड़िया ,अब खुश होकर बोल।

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रविवार, 10 मई 2020

तक़सीर...







*अना-परस्त हैं वो, और *ज़बत उन्हें आती नहीं
*फना हुए उनकी नादानियों पे हम, पर वो रस्में वफा निभाती नहीं ।1।

अदाएँ दिखाकर लूटना तो *शगल है उनका और
 हम लुट गए उन अदाओं पे, वो समझ पाती नहीं ।2।

क्यों अब तलक वो करती रही , *पैमाइश मेरी
हम कोई *शय नहीं ,क्या उसे समझ आती नहीं।3।

जाके कह दो कोई  ,कि मोहब्बत है उनसे
बिन उनके सर्द रातें भी ,अब सुहाती नहीं ।4।

क्या उनकी आरजू करना, *तकसीर है मेरी
क्यों हमें अपना जलवा, वो दिखाती नहीं।5।



उर्दू-हिंदी:

1:अना-An inflated feeling of pride in your superiority to others.,अहंकार
(अना परस्त-egoistic)
2:ज़बत-सहनशीलता
3:फ़ना- कुर्बान
4:शगल- शौक़
5: पैमाइश-नापने या मापने की क्रिया
6:शय- वस्तु, object
7:तकसीर-अपराध, गलती







शनिवार, 9 मई 2020

जिजीविषा

 

गिरी थी, संभली थी,उठी थी ,चली थी।
चुभे थे कंकड़, और ठोकरें लगी थी।1।

शिथिल क्लांत सी, एकाकी डगर पर।
सुरसाओं से, मेरी जंगें छिड़ी थी।2।

आँखें की कोरों का सैलाब था शुष्क ।
फिर भी अकेले ही मैं चल पड़ी थी।3।

जिजीविषा कभी छोड़ी गई ना।
विधाता की लेखनी से मेरी ठनी थी।4।

कर्म पथ पर ही थी निगाहें मेरी ।
मंजिल ही एक ध्येय, मेरी बनी थी।5।

बड़ी हसरतों से, पुकारा जो उनको ।
चीत्कारों की मेरी,अनुगूंज लौटी थी ।6।

छेड़ा फिर एक युद्ध, नियति से मैंने।
कभी ऊपर थी वो,और मैं नीचे पड़ी थी।7।

हूँ मनु सुता, मैं अपराजित सदा थी।
ललकारा था मैंने ,और तनकर खड़ी थी।8।

जोश था उर मेें मेरे, नतमस्तक हुई वो।
हार थी उसने मानी,मेरे जय की घड़ी थी।9।













शुक्रवार, 8 मई 2020

संबंधों के बंध न छूटें...


गीत/नवगीत ::संबंधों  के  बंध न छूटें
मुखड़ा:16,16
अंतरा:16,14
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

संबंधों  के  बंध न छूटें ,
    आओ कुछ पल संवाद करें ।
माँ धरा को प्रेम से भर दें ,
      हर हृदय को आबाद करें ।।
                     1
 इर्ष्या की आँधी ने देखो
              सब पर घेरे डाले हैं ।
नहीं जुझारू डरे कभी भी
            वो तो हिम्मत वाले हैं।।
नफरत की आँधी रुक जाए
       आओ कुछ ऐसा नाद करें ।
                     2
लोभ मोह अरु मद मत्सर का
              जग सारा ही चेरा है।
असमंजस में रहे अहर्निश
                करता तेरा मेरा है।।
प्रेम सरित की धार बन बहें
        उर में इतना आल्हाद भरें ।
                       3
दीन -दुखी का बनें सहारा
           कर्तव्यों का भान करें।
तिरस्कार का शूल चुभे ना
         हर प्राणी का मान करें । ।
संतुष्टि की पौध को रोपें,
       अब कोई ना उन्माद करे।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

बुधवार, 6 मई 2020

देखा है मैंने ...


देखा है मैंने
मजदूरों को
दिन भर
कड़ी धूप में
खटते हुए।
ईंट- गारा रेती-सीमेंट
के घमेले को सिर पर
उठाकर इमारतें बनाते हुए।
आँधी - तूफ़ान में झम -झम
बरसते हुए खुले आकाश
के नीचे पन्नी से ढकी
बोझिल हाथगाडी को
पूरी ताकत से खींचते हुए ,
हाँफते हुए।

देखा है मैंने
मजदूरों को
गंदे शहरी नाले में उतरकर
लोगों का मल साफ़ करते हुए।
नालों से उत्सर्जित
ज़हरीली गैसों से
जूझते हुए और
नाक मुँह को ओकाई आते
काले- पीले- हरे
बदबूदार मल प्रवेश से
खुद को बचाते हुए।

किंतु फिर....
देखा है मैंने
मजदूरों को

थके हारे मित्रों के संग
टोली बनाकर
किसी छांव में
बीड़ी फूँकते हुए,
तंबाकू चूने को
हथेलियों पर मलते हुए।
और शाम होते ही देशी ठेके पर
दिहाड़ी की रकम उड़ाकर
आधी रात को पत्नी
बच्चों को पीटते हुए।

फिर, देखा है मैंने
मजदूरों को
पत्नी की कमाई
बच्चों की स्कूल फीस को
शराब चखने में उड़ाते हुए
उनके परिजनों को
अन्न के एक- एक दाने
के लिए मोहताज
करते हुए

देखा है मैंने
मजदूरों को
नशे में बेहोश
किसी गंदे नाले के
किनारे फटे चीथड़ों में पड़े हुए।
कल की चिंता न करके
गरीबी मुफलिसी में मरते हुए।

देखा है मैंने.....





नागफ़नी

नागफ़नी!!!
सरल नहीं है तुमसे प्यार करना,
कुपोषित ,बंजर ,
ऊसर जमीन की उत्पन्न तुम
और तुम्हारी उत्पन्न भी
खुरदुरी, काँटोभरी।

फूल एकाध उग आते हैं
यदा -कदा तुम पर भी।
शायद यही वह क्षण होता है...
जब तुम में संचार होता है
स्नेही स्निग्धता का,
और तुम कुछ क्षणों के लिए
आकर्षित करते हो सबको।

किंतु फिर आते ही क़रीब
चुभ जाते हो शूल बन हथेलियों में
कर देते हो छलनी
दिल का हर कोना।
छोड़ देते हो
भद्दा- सा एक निशान,
दामन को पल -पल
आँसुओं से भिगोते हुए,
दूर कर देते हो स्वयं को
उनसे ,जो तुम्हें ,
अपने जीवन का
अंग मानने लगे थे।

मेरे नागफ़नी !!
क्या तुम भी
अनुराग के बदले अनुराग
नहीं दे सकते??

रविवार, 3 मई 2020

मजदूरनी

विधा~मनहरण घनाक्षरी
विषय~चित्र चिंतन
शीर्षक~मजदूरनी

मेहनत मजदूरी, 
भाग्य लिखी मज़बूरी।
रात दिन खट के भी, 
मान नहीं पाती है।1।

सिर पर छत नहीं,
बीते रात दिन कहीं।
ईंट गारा ढोती घर, 
दूजे का बनाती है।2।


हौंसले की लिए ढाल,
अँचरा में बाँधे लाल।
फांके करती है कभी, 
रूखा सूखा खाती है।3।


तकदीर की है मारी,
खाए पति की भी गारी।
दुख दर्द सहके भी,
फ़र्ज वो निभाती है ।4।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'