गीत/नवगीत ::संबंधों के बंध न छूटें
मुखड़ा:16,16
अंतरा:16,14
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संबंधों के बंध न छूटें ,
आओ कुछ पल संवाद करें ।
माँ धरा को प्रेम से भर दें ,
हर हृदय को आबाद करें ।।
1
इर्ष्या की आँधी ने देखो
सब पर घेरे डाले हैं ।
नहीं जुझारू डरे कभी भी
वो तो हिम्मत वाले हैं।।
नफरत की आँधी रुक जाए
आओ कुछ ऐसा नाद करें ।
2
लोभ मोह अरु मद मत्सर का
जग सारा ही चेरा है।
असमंजस में रहे अहर्निश
करता तेरा मेरा है।।
प्रेम सरित की धार बन बहें
उर में इतना आल्हाद भरें ।
3
दीन -दुखी का बनें सहारा
कर्तव्यों का भान करें।
तिरस्कार का शूल चुभे ना
हर प्राणी का मान करें । ।
संतुष्टि की पौध को रोपें,
अब कोई ना उन्माद करे।
सुधा सिंह 'व्याघ्र'
बहुत सुंदर नवगीत दी।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्यारी श्वेता
हटाएंसकारात्मक सोच और सन्देश भी ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमंच में मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद आ.🙏
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब नवगीत।
👌👌👌👌
शुक्रिया सखी
हटाएंसुन्दर नवगीत
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत, सुधा दी।
जवाब देंहटाएंआभार ज्योति बहन
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए शुक्रिया ऋतु जी।
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