शुक्रवार, 8 मई 2020

संबंधों के बंध न छूटें...


गीत/नवगीत ::संबंधों  के  बंध न छूटें
मुखड़ा:16,16
अंतरा:16,14
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संबंधों  के  बंध न छूटें ,
    आओ कुछ पल संवाद करें ।
माँ धरा को प्रेम से भर दें ,
      हर हृदय को आबाद करें ।।
                     1
 इर्ष्या की आँधी ने देखो
              सब पर घेरे डाले हैं ।
नहीं जुझारू डरे कभी भी
            वो तो हिम्मत वाले हैं।।
नफरत की आँधी रुक जाए
       आओ कुछ ऐसा नाद करें ।
                     2
लोभ मोह अरु मद मत्सर का
              जग सारा ही चेरा है।
असमंजस में रहे अहर्निश
                करता तेरा मेरा है।।
प्रेम सरित की धार बन बहें
        उर में इतना आल्हाद भरें ।
                       3
दीन -दुखी का बनें सहारा
           कर्तव्यों का भान करें।
तिरस्कार का शूल चुभे ना
         हर प्राणी का मान करें । ।
संतुष्टि की पौध को रोपें,
       अब कोई ना उन्माद करे।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

13 टिप्‍पणियां:

  1. सकारात्मक सोच और सन्देश भी ...

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. मंच में मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद आ.🙏

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  3. वाह!!!
    लाजवाब नवगीत।
    👌👌👌👌

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  4. बहुत सुंदर नवगीत, सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं

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