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मंगलवार, 20 नवंबर 2018

कुछ द्वीपदियाँ

कुछ द्वीपदियाँ

1 : फितरत

छीन लूँ हक किसी का,
 ऐसी फितरत नहीं.
आईना जब भी देखा,
 खुशी ही हुई.**

2: नियति

नियत तो अच्छी थी,
पर नियति की नीयत बिगड़ गई *
जीवन के थपेड़े खाते- खाते
वह महलों से वृद्धाश्रम पहुंच गई *

3: इंसानियत

बाजार सज गए हैं...
चलो इंसानियत खरीद लाएँ ***

4: सामंजस्य
सामंजस्य नहीं था बिल्कुल
फिर भी जिन्दगी काट दी **
यह सोचकर कि
दुनिया क्या कहेगी.....**

5: जिन्दगी

कैसे कह दूँ कि जिन्दगी
कठिन से सरल हो गई है.
वक्त का असर तो देखो यारों...
अब तो 'सुधा' भी गरल हो गई है...

शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

तलाश

तलाश
कुछ समझ नही आता जिंदगी....
तेरी गिनती दोस्तों में करूँ
या दुश्मनों में !
चिड़ियों की मानिंद दर रोज,
घोंसलों से दाने की खोज में निकलना।
फिर थक हार कर,
अपने नीड़ को वापस लौटना।
क्या केवल इसे ही नियति कहते हैं।
क्या केवल यही जिंदगी है।
आखिर तेरे कितने रंग हैं!
पर,
ऐ जिंदगी...
अब बहुत हो चुका.......
मैं अपने लिए थोड़ा वक़्त चाहती हूँ।
मैं थोड़ा सुकून चाहती हूँ
खुद को तलाशना चाहती हूँ।
खुद को पाना चाहती हूँ।
©सुधा सिंह~~