नारी सम कोई नहीं, नारी सुख की धाम
बिन उसके घर- घर कहाँ,घर की है वह खाम(स्तंभ) ।1।
शक्ति विहीना नारि जब, लेती है कुछ ठान
अनस्तित्व फिर कुछ नहीं, नारी बल की खान।2।
रक्तबीज के ध्वंश को,काली करती युद्ध
अरिमर्दन करती बढ़े , जब हो नारी क्रुद्ध।3।
सहकर भारी दर्द भी, भरती शिशु में प्राण
कोई नारी सम नहीं, करती शिशु का त्राण।4।
नारी अबला है नहीं, नारी शक्ति स्वरूप
लड़ जाती यमराज से, नारी सति का रूप।5।
सुधा सिंह 'व्याघ्र'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (27-05-2020) को "कोरोना तो सिर्फ एक झाँकी है" (चर्चा अंक-3714) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा मंच में स्थान देने के लिए धन्यवाद आ🙏🙏🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27 मई 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहलचल में स्थान देने के लिए धन्यवाद पम्मी जी
हटाएंसुन्दर दोहे हैं ... मनभावन ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय नासवा जी🙏🙏
हटाएंनमन नारी को। सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय जोशी जी
हटाएंवाह!नारी का सुंदर महिमा गान 👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सखी
हटाएंवाह !दी बेहतरीन दोहे.
जवाब देंहटाएंसादर
आभार बहना
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