प्रेम लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
प्रेम लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

तुम बिन....


तुम बिन .....


मेरी रगों में
लहू बनकर
बहने वाले तुम
ये तो बता दो कि
मुझमें मैं बची हूँ कितनी
तुम्हारा ख्याल जब - तब
आकर घेर लेता है मुझे
और कतरा - कतरा
बन रिसता हैं
मेरे नेत्रों से.

तड़पती हूँ मैं
तुम्हारी यादों की इन
जंजीरों से छूटने को. 
जैसे बिन जल
तड़पती हो मछली
इक इक साँस पाने को. 
ये टीस, यह वेदना 
चीरती है मेरे हृदय को. 
कर देती है मुझे प्राणविहीन
कि तुम बिन 
मेरा अस्तित्व है ही नहीं.


शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

वो संदली एहसास...


वो संदली एहसास..

खुला
यादों का किवाड़,
और बिखर गई
हर्ष की अनगिन
स्मृतियाँ.
झिलमिलाती
रोशनी में नहाई
वो शुभ्र धवल यादें,
मेरे दामन से लिपट कर
करती रही किलोल.
रोमावलियों से उठती
रुमानी तरंगे और
मखमली एहसासों
के आलिंगन संग,
बह चली मैं भी
उस स्वप्निल लोक में,
जहाँ मैं थी, तुम थे
और था हमारे
रूहानी प्रेम का वो
संदली एहसास.
खड़े हो कर दहलीज पर,
जो गुदगुदा रहा था
हौले- हौले से मेरे मन को,
और मदमस्त थी मैं
तुम्हारे आगोश में आकर.

सुधा सिंह 📝


शनिवार, 24 नवंबर 2018

जी चाहता है...



जी चाहता है.. 
फिर से जी लूँ

उन लम्हों को
बने थे साखी 
जो हमारे पवित्र प्रेम के,
गुजर गए जो 
बरसों पहले ,
कर लूँ जीवंत उन्हें ,
फिर एक बार ....
जी चाहता है 

अलौकिकता से 

परिपूर्ण वो क्षण 
जब दो अजनबी 
बंध गए थे
प्रेम पाश में... 
ऐहिक पीड़ाओं से 
अनभिज्ञ, 
हुए थे सराबोर 
ईश्वरीय सुख की 
अनुभूतियों से! 
एक स्वप्निले भव का
अभिन्न अंग बन 
आसक्त हो, 
प्रेम के रसपान से मुग्ध, 
दिव्यता से आलोकित 
प्रकाश पुंज का वह बिखराव.. 
मेरे चित्त को 
दैहिक बन्धनो से 
मुक्त करने को 
लालयित थे जो 
उस अबाध प्रवाह में 
बहने को 
आतुर थे हम 
कर लूँ 
उन क्षणों को 
फिर से आत्मसात 
जी चाहता है

पूर्णतया तुम में ही 
डूब जाने की बेकरारी, 
इस संसार को भुलाने को 
विवश करती,
तुम्हारी वह कर्णप्रिय
प्रेम पगी वाणी. 
फिर से जी लूँ 
वो पलछीन
जी चाहता है... 





 
 

सोमवार, 5 मार्च 2018

चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है...... प्रेम गीत


धुन:
तुम्हें प्यार करते हैं, करते रहेंगे।
कि दिल बनके दिल में.......


चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है,
ये दिल भी मेरा आशिकाना हुआ है।
छाई है मदहोशी चारों तरफ,
सुर्ख फूलों पे भँवरा दिवाना हुआ है।

चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है,
ये दिल भी मेरा आशिकाना हुआ है।

बागों में चिड़िया चहकने लगी है,
कलियाँ भी खिलकर महकने लगी है।
कि गुम है मेरे होश चाहत में तेरी ,
मेरा होश मुझसे बेगाना हुआ है।

चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है,
ये दिल भी मेरा आशिकाना हुआ है।

फिजाओं में बिखरी है खुशबू रूमानी,
हवाये भी कहती हमारी कहानी ।
है बिछी चांदनी देखो चारों तरफ़,
कि शमा में मगन परवाना हुआ है।

चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है,
ये दिल भी मेरा आशिकाना हुआ है।

आँचल मेरा अब ढलकने लगा है,
पपीहा पीहू पीहू बोलन लगा है ।
उठती हैं दिल में तरंगे कई ,
उन तरंगों में दिल शायराना हुआ है।

चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है,
ये दिल भी मेरा आशिकाना हुआ है।

टिप - टिप बरसता है बारिश का पानी,
नीर तन में, अगन अब लगाने लगा है ।
तुम बिन मुझे अब तो भाए न कोई,
क्यूँ ये सारा जमाना बेगाना हुआ है।

चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है,
ये दिल भी मेरा आशिकाना हुआ है।

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

फाग कहीं यो बीत न जाए!





मैं बिरहन हूँ प्रेम की प्यासी
न रँग, न कोई रास है!
बदन संदली सूल सम लागे
कैसा ये एहसास है!

तुम जब से परदेस गए प्रिय
ये मन बड़ा उदास है!

बिना तुम्हारे रंग लगाए,
फाग कहीं यो बीत न जाए!
सखिया मोहे रोज छेड़ती
कहती क्यो तोरे पिया न आए!

टेसू पलाश के रंग न भाए,
गुलमोहर भी बिछ - बिछ जाए !
कस्तुरी सांसो की खुशबू,,
तुमको अपने पास बुलाए!

बिंदिया में अब चिलक न कोई,
झांझर भी मेरी रूठ गई है!
मेहँदी अब न सजन को राजी,
पाँव महावर छूट गई है!

काहे तुम परदेस गए प्रिय,
यह दूरी अब सही नहीं जाए!
पुरवईय्या तन अगिन लगाए,
तुम बिन हिय को कुछ नहीं भाए!

उर का द्रव बनकर निर्झरणी 
झर- झर झर- झर बहता जाए!
तेरे दरस को अंखियाँ तरसी,
पल - पल नयन नीर बरसाए!

न होली की उमंग कोई है,
न कोई उल्लास है!
तुम जब से परदेस गए प्रिय,
ये मन बड़ा उदास है!






रविवार, 28 जनवरी 2018

कहंँवा हो प्यारे सखे





कहंँवा हो प्यारे सखे
गोपियाँ हैं राह तके!
दर्शन की प्यास जगी,
तन मन में आग लगी!
बंसी की मधुर धुन,
सुना दो सखे!
गोपियाँ हैं राह तके!

वातावरण है नीरस,
उल्लास का कोई नाद नहीं
भूख प्यास गायब है,
मक्खन में स्वाद नहीं!
आके स्वाद इनमें,
जगा दो सखे!
क्षीरज तेरी  राह तके!

                               सूरज फिर निकलेगा, फिर चमकेगा

जमुना है शोकमय,
लहरों में रव नहीं!
कान्हा तुम्हारे बिन,
प्यारा ये भव नहींन
जमुना की लहरों को,
ऊंचा उठा दे सखे!
जमुना है राह तके!

ऋतु हो बसंत की ,
और कान्हा का संग हो!
तो झूम उठे वृंदावन,
पुलकित हर अंग हो!
तरंग सारे अंग में,
जगा जा सखे!
कण - कण है राह तके!






सोमवार, 25 दिसंबर 2017

अब लौट आओ प्रियवर..... 


अब लौट आओ प्रियवर.....
अकुलाता है मेरा उर अंतर..
शून्यता सी छाई है रिक्त हुआ अंतस्थल.
पल पल युगों समान भए
दीदार को नैना तरस गए
इंतजार में तुम्हारे पलके बिछी हैं
तुम बिन बिखरा बिखरा सा मेरा संसार है प्रियवर
अब लौट आओ प्रियवर

अब लौट आओ प्रियवर
कि थम जाती है मेरी हर सोच
तुम पर आकर
रुक जाता है वक़्त तुम्हें न पाकर
पांव आगे ही नहीं बढ़ते
वो भी ढूँढते हैं तुम्हें
रातें करवटों में तमाम हो जाती है
तुम बिन बेकार ये संसार है प्रियवर
अब लौट आओ प्रियवर

बंद करती हूँ आँखें कि
नींद की आगोश में जाके
कुछ सुनहरे ख्वाब बुन लूँ
कुछ शबनमी बूँदों की तरावट ले लूँ
पारियों के लोक में पहुंच कर
दिव्यता का आभास कर लूँ
पर यह हो नहीं पाता क्योंकि तुम संग न हो
तुम बिन न कोई तीज है न त्योहार है प्रियवर

अब लौट आओ प्रियवर
संदेश भेजा है  तुम्हें
मेरे प्रेम की भीनी भीनी
खुशबू लेकर हवाएँ गुजरेंगी,
जब पास से तुम्हारे,
गालों को तुम्हारे चूमते हुए,
कर लेना एहसास मेरे नेह का
कि तुम बिन चहुँ ओर सिर्फ अंधकार है प्रियवर
अब लौट आओ प्रियवर

अब लौट आओ प्रियवर
कि रात के शामियाने से..
कुछ नशा चुराया है तुम्हारे लिए..
थोड़े से जुगनू समेटे हैं तुम्हारे लिए...
तारों की झालर सजाकर
सागर से रवानी भी ले आई हूँ तुम्हारे लिए
थोड़ी शीतलता चाँदनी भी दे गई है हमारे लिए
तुमसे मिलने का बस इंतजार हैं प्रियवर
अब लौट आओ प्रियवर