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बोल चिड़िया,
अब बेधड़क बोल।
अब तेरी बारी आई है।
दिल के सारे जख्म खोल।
बोल चिड़िया,अब बेधड़क बोल।
तुझे पिंजरे में बंद करनेवाला
अब बचा कौन है!!!!
तेरी स्वर लहरियों को रोकने वाला
तो अब स्वयं ही मौन है!!
अब जी भरकर चहक।
सकल विश्व पर ,अब तेरा ही प्रभुत्व है...
जहाँ चाहे, वहाँ फुदक।।
मेरी भोली चिड़िया,तेरी चीत्कारों
का हिसाब इतना ज्यादा है
कि प्रकृति अब अहमी मनुष्य को रक्तिम
अश्रुओं का स्वाद चखाने पर आमादा है
मन में अब कोई भय न रख,
तू निडर होकर बहक।
अब तू आज़ाद है ,
तुझे कैद करनेवाला बर्बाद है।।
हे चिड़िया, मुक्त कंठ से,
प्रकृति का धन्यवाद कर।
अपने कलरव -किलोल से
फिर मेरा जहाँ आबाद कर।।
नदिया, झरने,
पहाड़ों ,झुरमुटों से निकल
अब बस्तियों में भी बोल
मेरे कानों में फिर से
अपना मधु रस घोल
अब ख़ुश होकर बोल
चिड़िया ,अब खुश होकर बोल।
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सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय🙏🙏
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ मई २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंवाह!सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंउरतल से आभार शुभा जी
हटाएंतुझे पिंजरे में बंद करनेवाला
जवाब देंहटाएंअब बचा कौन है!!!!
तेरी स्वर लहरियों को रोकने वाला
तो अब स्वयं ही मौन है!!
अति सुंदर ,सादर नमन
आभार सखी
हटाएंवाह क्या बात है। बहुत ही उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय जी🙏🙏🙏
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