शनिवार, 24 नवंबर 2018

जी चाहता है...



जी चाहता है.. 
फिर से जी लूँ

उन लम्हों को
बने थे साखी 
जो हमारे पवित्र प्रेम के,
गुजर गए जो 
बरसों पहले ,
कर लूँ जीवंत उन्हें ,
फिर एक बार ....
जी चाहता है 

अलौकिकता से 

परिपूर्ण वो क्षण 
जब दो अजनबी 
बंध गए थे
प्रेम पाश में... 
ऐहिक पीड़ाओं से 
अनभिज्ञ, 
हुए थे सराबोर 
ईश्वरीय सुख की 
अनुभूतियों से! 
एक स्वप्निले भव का
अभिन्न अंग बन 
आसक्त हो, 
प्रेम के रसपान से मुग्ध, 
दिव्यता से आलोकित 
प्रकाश पुंज का वह बिखराव.. 
मेरे चित्त को 
दैहिक बन्धनो से 
मुक्त करने को 
लालयित थे जो 
उस अबाध प्रवाह में 
बहने को 
आतुर थे हम 
कर लूँ 
उन क्षणों को 
फिर से आत्मसात 
जी चाहता है

पूर्णतया तुम में ही 
डूब जाने की बेकरारी, 
इस संसार को भुलाने को 
विवश करती,
तुम्हारी वह कर्णप्रिय
प्रेम पगी वाणी. 
फिर से जी लूँ 
वो पलछीन
जी चाहता है... 





 
 

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

कुछ द्वीपदियाँ

कुछ द्वीपदियाँ

1 : फितरत

छीन लूँ हक किसी का,
 ऐसी फितरत नहीं.
आईना जब भी देखा,
 खुशी ही हुई.**

2: नियति

नियत तो अच्छी थी,
पर नियति की नीयत बिगड़ गई *
जीवन के थपेड़े खाते- खाते
वह महलों से वृद्धाश्रम पहुंच गई *

3: इंसानियत

बाजार सज गए हैं...
चलो इंसानियत खरीद लाएँ ***

4: सामंजस्य
सामंजस्य नहीं था बिल्कुल
फिर भी जिन्दगी काट दी **
यह सोचकर कि
दुनिया क्या कहेगी.....**

5: जिन्दगी

कैसे कह दूँ कि जिन्दगी
कठिन से सरल हो गई है.
वक्त का असर तो देखो यारों...
अब तो 'सुधा' भी गरल हो गई है...

शनिवार, 17 नवंबर 2018

एक और वनवास


~एक नया वनवास~

ढूँढ रही थी अपने पिता की छवि
उस घर के  सबसे बड़े पुरुष में
एक स्त्री को माँ भी समझ लिया था
प्रेम की गंगा बह रही थी हृदय से मेरे
लगा था बाबुल का घर छूटा तो क्या हुआ
एक स्वर्ग जैसा घर फिर से ईश्वर ने मुझे भेट में दे दिया
एक बहन भी मिल गई है सुख दुख बाँटने को
सब कुछ यूटोपिया सा
फिर अचानक से मानो ख्वाब टूटा
शायद मेरा भाग्य था फूटा
एक खौफ सा मंडराता था शाम - ओ-  सहर
मेरे सामने था मेरे सुनहरे सपनों का खंडहर
संत का वेश धरे थे
कुछ आततायी मेरे सामने खड़े थे
और उन सबका विकृत रूप
छीः कितना घिनौना और कितना कुरूप...

सपनों के राजमहल में
कैकेयी और मंथरा ने
फिर अपना रूप दिखाया था.
सीता की झोली में
 फिर से वनवास आया था.
फर्क इतना था कि इस बार
मंथरा दासी नहीं, पुत्री रूप में थी
और दशरथ थे  कैकेयी और
मंथरा के मोहपाश में..
हुआ फिर से वही जो
हमेशा से होता आया था
राम और सीता ने इस बार मात्र चौदह वर्ष नहीं,
अपितु जीवनभर का वनवास पाया था.
राम और सीता ने इस बार
आजीवन वनवास पाया था.

©®सुधा सिंह 🖋

सोमवार, 5 नवंबर 2018

मेरी प्रेयसी.... 💖हाइकू


मेरी प्रेयसी... 💖 हाइकू

1:
मन मंदिर
प्रेयसी का हमारी
प्रेम अमर

2:
उजला रंग
सुन्दर चितवन
छेड़े तरंग

3:
अपनापन
गोरी तू जताती
न सकुचाती

4:
मनभावन
लबों पर मुस्कान
तू मेरी जान

5:
चाँद सा मुख
आवाज़ में मिठास
हो सुखाभास

6:
गीतमाला तू
जीवन उजाला तू
प्रेमवर्षा तू

7:
 पास हो तुम
अहसास हो तुम
होश हैं गुम.

8:
मन की बात
प्यार भरी सौगात
रहा हूँ बाँट


सुधा सिंह 🦋 03.01.16