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मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

तड़पे ओजहीन हो..

 नवगीत:2

तड़पे ओजहीन हो वसुधा 


तड़पे ओजहीन हो वसुधा 

रसमय स्नेह सुधा बरसाना 

निर्दयता हृदय में धरकर 

बिसरे सुरभित कुसुम खिलाना


1

छालों से आहत अंतस है

उलझन में है कटता जीवन

सुखद पवन आँधी बन आई

उजड़ गए हैं मन के उपवन

दुष्चक्रों की अग्नि लटा में 

छोड़ो अब हमको झुलसाना

तड़पे ओजहीन हो वसुधा......


2


अँधियारे ने पाँव पसारे

आशा की नहीं दिखे उजास

पतझड़ का चहुँ ओर राज है

लुप्त है क्यों मेरा आकाश

काल चक्र निर्धारित करके

भूल चुके क्या याद दिलाना

तड़पे ओजहीन हो वसुधा......


3

मानवता विधि पर रोती है

अब उसका अस्तित्व बचा ना

लोभ मोह माया में फँसकर

मक्कारी का गाये गाना

क्यों ये खेल रचाया विधना

सद्कर्मों की राह सुझाना

तड़पे ओजहीन हो वसुधा......


सुधा सिंह 'व्याघ्र'




शनिवार, 3 अप्रैल 2021

चंचल तितली

 नवगीत :1 चंचल तितली 


मतवाली वह छैल छबीली   

लगती ज्यों हीरे की कनी।

डोले इत उत पुरवाई सम

राहें वह भूली अपनी । 



चंचल चितवन रमणी बाला

स्वप्न स्वर्णिम उर सजाती

दर्पण में छवि निरख - निरख के

खूब लजाती इठलाती

ओढ़े गोरी पीत चुनरियाँ 

प्रीत रंग में आज सनी 


उपवन खेतों खलिहानों में 

हिरनी सी वो डग भरती

गौर गुलाबी सी अनुरक्ता

मन ही मन प्रिय को वरती

रानी वह तो रूप लवण की

रहती हरपल बनी ठनी ।


यौवन की देहरी छूकर जब

कलियों ने ली अँगड़ाई

धरा मिलन को तरसे बादल 

उमड़ घुमड़ बरखा आई 

बहकी बहकी चंचल तितली 

आकर्षण का केंद्र बनी 





रविवार, 1 नवंबर 2020

जी करता है... नवगीत

 


जी करता है बनकर तितली 

उच्च गगन में उड़ जाऊँ 

बादल को कालीन बना कर 

सैर चांद की कर आऊँ 


दूषित जग की हवा हुई है 

विष ने पाँव पसारे हैं 

अँधियारे की काली छाया 

घर को सुबह बुहारे है 


तमस रात्रि को सह न सकूँ अब 

उजियारे से मिल आऊँ 

बादल को कालीन बना कर 

सैर चांद की कर आऊँ 


अपने मग के अवरोधों को

ठोकर मार गिराऊँगी

शक्ति शालिनी दुर्गा हूँ मैं 

चंडी भी बन जाऊँगी 


इसकी उसकी बात सुनूँ ना

मस्ती में बहती जाऊँ 

बादल को कालीन बना कर 

सैर चांद की कर आऊँ 

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

इस गगन से परे

 गीत :इस गगन से परे (10,12)


इस गगन से परे, 

है मेरा एक गगन  

झूमते ख्वाब हैं  

नाचे चित्त हो मगन 

1

अपनी पीड़ा को 

खुद से परे कर दिया 

दीप उम्मीद का  

देहरी पर धर दिया 

अब धधकती नहीं 

मेरे चित्त में अगन ...इस गगन से... 

2

प्यारी खुशियों से 

वो जगमगाता सदा 

चंदा तारों से 

हरदम रहे जो लदा 

नाचती कौमुदी 

होता मन का रंजन .... इस गगन से...

3

हुआ उज्ज्वल धवल 

मेरे मन का प्रकोष्ठ 

गाल पर लालिमा 

मुस्कुराते हैं ओष्ठ

हर्ष से झूमता 

फिर से मेरा तन मन.... इस गगन से...


 



 

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

सुनो बेटियों

 सुनो बेटियों जौहर में तुम 

कब तक प्राण गँवाओगी। 

हावी होगा खिलजी वंशज

जब तक तुम घबराओगी।। 


रहना छोड़ो अवगुंठन में  

हाथों में तलवार धरो। 

चीर दो तुम शत्रु का सीना  

पीछे से मत वार करो।। 

डैनों में साहस भर लोगी 

तुम तब ही उड़ पाओगी। हावी.... 


दुर्गा हो तुम शक्ति स्वरूपा

महिषासुर संहार करो। 

दुर्बलताएँ त्यागो अपनी

हर विपदा को पार करो।। 

यूँ कब तक अबला बनकर तुम 

घुट घुट जीती जाओगी। हावी... 


अपनी क्षमता को पहचानो

पद दलिता बन क्यों जीना। 

दूषित नजरों से निकला जो 

विष अपमान का क्यों पीना।। 

कब तक लोक लाज में पड़कर 

खुद को ही भरमाओगी। हावी... 











 

मंगलवार, 19 मई 2020

अंतर के पट खोल...



नवगीत: 

अंतर के पट खोल (16 ,11) 

       
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अंतर के पट खोल तभी तो
                   मन होवे उजियार।
मानव योनि मिली है हमको 
                इसे न कर बेकार  ।।

अंतस में हो अँधियारा जब, 
             दिखता सबकुछ स्याह ।
मन अधीर हो अकुलाए अरु ,
                   दिखे नहीं तब राह।।

दुर्गम जब भी लगे मार्ग तब ,
                       शत्रु लगे संसार ।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                     मन होवे उजियार। ।

जीवन में संघर्ष भरा है,
                     इसका ना पर्याय ।
उद्यम ही कुंजी है इसकी ,
                    दूजा नहीं उपाय।।

घड़ी परीक्षण की जब आए ,
                      मान न मनवा हार।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                      मन होवे उजियार।।

अपनों का जब साथ मिले तो,
                        जीवन हो रंगीन।
दुख की बदरी भी छँट जाए ,
                     समाँ न हो गमगीन।।

निज हित के भावों को त्यागें,
                   कर लें कुछ उपकार।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
                      मन होवे उजियार।।

सुधा सिंह 'व्याघ्र✍️





सोमवार, 18 मई 2020

सामाजिक संचार

 गीत :(16,14)


सामाजिक संचार तंत्र ने ,
सबको अपना दास किया ।
ज्ञानवान मानव ने तब से, 
खुद को कारावास दिया ।।

कक्ष रोते, रोती रसोई ,  
स्वच्छता का भान नहीं ।
उनको बनना टिक -टॉक  स्टार ,
घर में बिलकुल ध्यान नहीं ।। 
इंस्टाग्राम सजाने खातिर, 
पत्नी ने अवकाश लिया।

मुखपोथी, टिक टॉक, लाइकी ,
अब तो घर में राज करें  ।
खिंचवाकर सुंदर तस्वीर , 
हम तो खुद पर नाज करें।। 
कम लाइक जब मिले देखकर, 
धक -धक , धक -धक करे जिया ।

स्वास्थ्य की अब नहीं है चिन्ता ,
तन को देखो स्थूल भए।
आभासी दुनिया से जुड़कर, 
रिश्ते -नाते भूल गए ।।
गोदी में संतान की जगह, 
लैपटॉप ने स्थान लिया ।।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

शुक्रवार, 8 मई 2020

संबंधों के बंध न छूटें...


गीत/नवगीत ::संबंधों  के  बंध न छूटें
मुखड़ा:16,16
अंतरा:16,14
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

संबंधों  के  बंध न छूटें ,
    आओ कुछ पल संवाद करें ।
माँ धरा को प्रेम से भर दें ,
      हर हृदय को आबाद करें ।।
                     1
 इर्ष्या की आँधी ने देखो
              सब पर घेरे डाले हैं ।
नहीं जुझारू डरे कभी भी
            वो तो हिम्मत वाले हैं।।
नफरत की आँधी रुक जाए
       आओ कुछ ऐसा नाद करें ।
                     2
लोभ मोह अरु मद मत्सर का
              जग सारा ही चेरा है।
असमंजस में रहे अहर्निश
                करता तेरा मेरा है।।
प्रेम सरित की धार बन बहें
        उर में इतना आल्हाद भरें ।
                       3
दीन -दुखी का बनें सहारा
           कर्तव्यों का भान करें।
तिरस्कार का शूल चुभे ना
         हर प्राणी का मान करें । ।
संतुष्टि की पौध को रोपें,
       अब कोई ना उन्माद करे।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

तुझे माना खुदा अपना

गीत 
 मापनी 14, 15


तुझे माना खुदा अपना 
तू ही मेरा सितारा है 
बिना तेरे नहीं जीना  
मेरे दिल ने पुकारा है 

1:
तुझे चाहा तुझे पूजा 
तेरी ख्वाहिश सदा की है 
तेरे ही वास्ते मैंने 
सदा रुसवाईयां ली हैं
फँसी है नाव तूफ़ाँ में 
तू ही मेरा किनारा है 

2:
नहीं तुझसे जुदा होना 
मेरे दिल ने यही ठाना 
कभी मत छोड़ कर जाना 
मैंने सबकुछ तुझे माना 
मिरी खातिर ज़मीं पर ही 
खुदा ने तुझे उतारा है 

3:
अब तलक तो हम अकेली 
राहों में ही भटकते थे 
आँसुओं की बारिशों में 
सदा ही भीगा करते थे 
कि इस जालिम जमाने से 
इश्क़ हरदम ही हारा है 













रविवार, 23 फ़रवरी 2020

याद हमें भी कर लेना.... नवगीत

नवगीत 

विधा :कुकुभ छंद (मापनी16,14) 




पल पल हम हैं साथ तुम्हारे *
वरण हमारा कर लेना *
परम लक्ष्य संधान करो जब,*
याद हमें भी कर लेना*

साथ मिले जब इक दूजे का, *
कुछ भी हासिल हो जाए ।*
शूल राह से दूर सभी हो, *
घने तिमिर भी छँट जाएँ।। *
मुट्ठी में उजियारा भर कर, *
दूर अँधेरा कर देना। *
परम लक्ष्य संधान करो जब, *
याद हमें भी कर लेना ।। *

नहीं सूरमा डरे कभी भी, *
कठिनाई कितनी आई। *
रहे जूझते जो लहरों से,
ख्याति कीर्ति उसने पाई।। *
कष्टों से भयभीत न होना, *
बात गांठ यह कर लेना। *
परम लक्ष्य संधान करो जब, *
याद हमें भी कर लेना।। *

अभी उजाला हुआ, सखे हे! *
मानव हित कुछ कर जाना। *
पथ में बैरी खड़े मिलेंगे, *
मत पीछे तुम हट जाना।। *
जब जब मुल्क पुकारे तुमको,
कलम छोड़ शर धर लेना।
परम लक्ष्य संधान करो जब, *
याद हमें भी कर लेना ।। *

पल पल हम हैं साथ तुम्हारे *
वरण हमारा कर लेना *
परम लक्ष्य संधान करो जब,*
याद हमें भी कर लेना*






सोमवार, 27 जनवरी 2020

कैसी ये प्यास है! (गीत )




कैसी ये प्यास है!! (गीत)
धुन :हुई आँख नम और ये दिल मुस्कुराया



मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!
क्यों ये बुझती नहीं, कैसी ये प्यास है!!

बंद दरवाजे हैं, बंद हैं खिड़कियाँ!
ले रहा है कोई, मन में ही सिसकियाँ!!
क्यों घुटन है भरी, कैसी उच्छ्वास है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!!

प्रेम भूले सभी, मिलती रुसवाइयाँ!
भीड़ में बढ़ रही देखो तन्हाइयाँ!!
कोई अपना कहाँ, अब कहो पास है!
मैं न जानू सनम, कैसा अहसास है!!

है बहारों का मौसम बता दो कहाँ!
ठंडी पुरवाइयां चलके ढूंढे वहाँ!!
यूँ लगे मिल गया, जैसे वनवास है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!!

खेल किस्मत का कोई भी समझा नहीं!
परती धरती हमेशा से परती रही!!
ढ़ो रही मनुजता, अपनी ही लाश है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है !!

सुधा सिंह 'व्याघ्र' ✍️









बुधवार, 25 दिसंबर 2019

माटी मेरे गाँव की..

माटी मेरे गाँव की 
विधा :मुक्त गीत

माटी मेरे गाँव की, मुझको रही पुकार।
क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।

बूढ़ा पीपल बाँह पसारे ।
अपलक तेरी राह निहारे।।
अमराई कोयलिया बोले।
कानों में मिसरी सी घोले।।
ऐसी गाँव की माटी मेरी
तरसे जिसको  संसार।।

क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।

स्नेहिल रस की धार यहाँ।
मलयज की है बहार यहाँ।।
नदिया की है निर्मल धारा।
शीतल जल है सबसे प्यारा।।
भोरे कुक्कुट बांग लगाए
मिला सहज उपहार ।।

क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।

माँ अन्नपूर्णा यहाँ विराजें।
ढोल मंजीरे मंदिर बाजे।।
खलिहानों में रत्न पड़े हैं।
हीरे - मोती खेत जड़े हैं।।
मन की दौलत पास हमारे
है सुंदर व्यवहार।

क्यों मुझको तुम भूल गए आ जाओ एक बार।।

पुकारती पगडंडियाँ।
इस ओर फिर कदम बढ़ा।।
माटी को आके चूम लो।
एक बार गांव घूम लो।।
हम अब भी अतिथि को पूजें
हैं ऐसे संस्कार।।

क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।

रविवार, 17 नवंबर 2019

मौन ही करता रहा मौन से संवाद

मौन 


नवगीत :

मौन ही करता रहा ,मौन से संवाद।
ख्वाब भीगे अश्रु से , हुए धूमिल नाद।।

प्रिय तुम्हारी याद में ,रहा विकल ये मन ।
न कोई उम्मीद थी ,ना आस की किरण ।
मिली हमको जिन्दगी, दुख जहांँ आबाद ।
मौन ही करता रहा , मौन से संवाद।।

आसमां में चाँद भी ,रो रहा दिन रात।
ओस की हर एक बूंद ,सह रही आघात।।
न कोई उल्लास अब ,न कोई अनुनाद।
मौन ही करता रहा मौन से संवाद ।

दूर अब प्रिय ना रहो, मन सदा अकुलाय।
प्यार में बदनामियां, अब सही न जाए।।
क्या उन्हें समझाएँ, क्यों करें प्रतिवाद।
मौन ही करता रहा, मौन से संवाद ।।

सुधा सिंह 🦋




    

रविवार, 3 नवंबर 2019

आस.... (विधा :गीत )




आस
आस 
विधा :गीत
 दिनांक :2.11.19
 विषय :आस


 पलकों में सपने सजाए, आस मन पलती रही ।
 मन उजाला भर गया, और धुंध भी छटती रही ।।

 वो मिलेगा एक दिन, चाहा था जिसको ऐ सखी ।
 थाम कर उम्मीद का दामन, चली मैं उस गली ।।
पांँव में छाले पड़े, और याद में तिल - तिल जली।
पलकों में सपने सजाए, आस मन पलती रही ।।

 उनकी मीठी बातों ने, पल पल हँसाया था मुझे ।
 ख्वाबों ने आ आके, नींदों में जगाया था मुझे।।
 जिन्दगी सुख दुख के पंखे, से सदा झलती रही।
 पलकों में सपने सजाए, आस मन पलती रही ।।

 आज खुशियों के गगन में, सुख का सूरज है उगा।
 निविड़ तम को भेद करके, भोर भी है अब जगा।।
 प्रिय मिलन की प्यास मेरी , आज है बुझती रही।
 पलकों में सपने सजाए, आस मन पलती रही ।।


 सुधा सिंह 🦋 

सोमवार, 5 मार्च 2018

चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है...... प्रेम गीत


धुन:
तुम्हें प्यार करते हैं, करते रहेंगे।
कि दिल बनके दिल में.......


चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है,
ये दिल भी मेरा आशिकाना हुआ है।
छाई है मदहोशी चारों तरफ,
सुर्ख फूलों पे भँवरा दिवाना हुआ है।

चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है,
ये दिल भी मेरा आशिकाना हुआ है।

बागों में चिड़िया चहकने लगी है,
कलियाँ भी खिलकर महकने लगी है।
कि गुम है मेरे होश चाहत में तेरी ,
मेरा होश मुझसे बेगाना हुआ है।

चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है,
ये दिल भी मेरा आशिकाना हुआ है।

फिजाओं में बिखरी है खुशबू रूमानी,
हवाये भी कहती हमारी कहानी ।
है बिछी चांदनी देखो चारों तरफ़,
कि शमा में मगन परवाना हुआ है।

चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है,
ये दिल भी मेरा आशिकाना हुआ है।

आँचल मेरा अब ढलकने लगा है,
पपीहा पीहू पीहू बोलन लगा है ।
उठती हैं दिल में तरंगे कई ,
उन तरंगों में दिल शायराना हुआ है।

चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है,
ये दिल भी मेरा आशिकाना हुआ है।

टिप - टिप बरसता है बारिश का पानी,
नीर तन में, अगन अब लगाने लगा है ।
तुम बिन मुझे अब तो भाए न कोई,
क्यूँ ये सारा जमाना बेगाना हुआ है।

चलो आओ मौसम सुहाना हुआ है,
ये दिल भी मेरा आशिकाना हुआ है।